नई दिल्ली: लगता है कोरोना महामारी के संकट को मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के लिए एक अवसर के तौर पर देख रही है. कृषि क्षेत्र और कृषि उत्पादों के सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो घोषणाएं की हैं उन पर सरकार अब तेजी से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है.


एबीपी न्यूज़ को जानकारी मिली है कि सरकार जल्द ही अध्यादेशों के जरिए एक नया कानून बनने और एक अन्य कानून में बदलाव पर विचार कर रही है. पहला अध्यादेश किसानों की ओर से अपनी फसलों को बेचने के सम्बंध में है जबकि दूसरा अध्यादेश आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में बदलाव से जुड़ा है.


केंद्रीय कैबिनेट की अगली बैठक में दोनों ही कानून के बारे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा करते वक्त जिक्र किया था. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक 70 सालों के बाद अब वक्त आ गया है कि किसानों को उन बन्धनों से मुक्त किया जाए जो उन्हें अपने उत्पाद का सही मूल्य दिलाने में बाधक हैं.


अभी किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए उस राज्य के कृषि उत्पाद बाजार समिति कानून का पालन करना पड़ता है. कानून के मुताबिक किसान अपना अनाज अपने राज्य की ओर से अधिसूचित बाजार में ही बेच सकता है. एबीपी न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक मोदी सरकार जिस नए केंद्रीय कानून बनाने पर विचार कर रही है उसमें किसानों को इस बात की छूट दी जाएगी कि वो अपना अनाज किस मंडी में बेचना चाहता है.


आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन करने के लिए भी अध्यादेश लाने पर विचार हो रहा है. संशोधन के जरिए सरकार का कृषि उत्पादों के सप्लाई चेन को मजबूत करने का प्रस्ताव है. संशोधन के बाद आवश्यक वस्तु रखने की स्टॉक सीमा खत्म कर दी जाएगी. सूत्रों के मुताबिक स्टॉक सीमा या तो प्राकृतिक आपदा जैसी असाधारण परिस्थितियों में लगाई जा सकेगी या फिर खाने पीने के दाम में असाधारण बढ़ोत्तरी होने पर. स्टॉक सीमा के जरिए आम तौर पर बढ़ते दाम को काबू करने की कोशिश की जाती है.


कृषि सुधारों के प्रयास पहले भी होते रहे हैं लेकिन कृषि का विषय राज्य का होता है. लिहाजा राज्यों की ओर से विरोध होता आया है. हालांकि कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का कहना है कि विपत्ति के सभी राज्य सरकार सहमत हो जाएंगी और इन बदलावों को स्वीकार कर लेंगी. अध्यादेश के जरिए जो कानून बनता है उसे छह महीने के भीतर संसद से भी पारित करवाना अनिवार्य होता है.


ऐसे में सभी राज्य सरकारों और पार्टियों का सहमत होना जरूरी होता है. एक संवैधानिक मसला ये भी है कि जब कृषि राज्य सरकारों का विषय है तो क्या इस मामले में केंद्र सरकार अपनी तरफ से कोई कानून बना सकती है ? कृषि मंत्रालय के सूत्रों का दावा है कि संसद से पारित कानून ही प्रभावी माना जाएगा.


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