Judges Asset Declaration Rules: केंद्र सरकार ने एक संसदीय समिति को अवगत कराया है कि वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की संपत्तियों की घोषणा के लिए वैधानिक प्रावधान की प्रक्रिया निर्धारित करने के वास्ते नियम बनाने पर विचार कर रही है. विधि मंत्रालय में न्याय विभाग ने कहा कि इस संबंध में शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के साथ परामर्श शुरू कर दिया गया है. विभाग ने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर उसके (रजिस्ट्री के) जवाब का इंतजार है.
कार्रवाई रिपोर्ट में दर्ज सरकार की प्रतिक्रिया के आधार पर विधि और कार्मिक विभाग से संबंधित स्थायी समिति ने रजिस्ट्री के साथ परामर्श प्रक्रिया को तेज करने के लिए कहा, ताकि शीर्ष अदालत और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की ओर से उनकी प्रारंभिक नियुक्ति पर संपत्ति की घोषणा संबंधी नियमावली में वैधानिक प्रावधान किए जा सकें. हाल ही में संपन्न बजट सत्र के दौरान ''न्यायिक प्रक्रियाओं और उनके सुधारों'' पर अपनी पिछली रिपोर्ट पर समिति की कार्रवाई रिपोर्ट पिछले सप्ताह संसद में पेश की गई थी.
संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को दाखिल करना होगा सालाना रिटर्न
अपनी पिछली रिपोर्ट में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा था कि एक सामान्य प्रथा के रूप में सभी संवैधानिक पदाधिकारियों और सरकारी सेवकों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होगा.
सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति को रिटर्न दाखिल करना चाहिए- समिति
समिति की राय थी, ''सुप्रीम कोर्ट ने इस हद तक व्यवस्था दी है कि जनता को सांसद या विधायक के चुनाव में खड़े लोगों की संपत्ति जानने का अधिकार है. जब ऐसा है, तो यह दलील गलत है कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है. सार्वजनिक पद पर आसीन और सरकारी खजाने से वेतन पाने वाले किसी भी व्यक्ति को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का वार्षिक रिटर्न दाखिल करना चाहिए.''
'न्यायाधीशों की संपत्ति घोषणा से प्रणाली में अधिक भरोसा जगेगा'
समिति ने यह भी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और 25 हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की ओर से संपत्ति की घोषणा से प्रणाली में अधिक भरोसा जगेगा और इसकी विश्वसनीयता बढ़ेगी. इसमें कहा गया है कि इस मामले में विचार जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के साथ परामर्श शुरू करने के बाद समिति को उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार है.