Electricity Amendment Bill सरकार शीतकालीन सत्र में करेगी पेश, जानिए विधेयक का क्यों विरोध कर रहे हैं किसान नेता?
Electricity Amendment Bill: बिजली संशोधन बिल की सबसे बड़ी बात ये है कि ये वो बिल है जिसका जिक्र आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने पीएम को भेजे छह सूत्री मांगों में किया गया है.
Electricity Amendment Bill: 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र के दौरान सरकार ने पेश करने के लिए जिन बिलों को सूचीबद्ध किया है उनमें एक अहम बिल बिजली क्षेत्र में सुधार से जुड़ा है. बिजली कानून 2003 में संशोधन के लिए लाए जाने वाले इस प्रस्तावित बिल के जरिए बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज से लेकर ग्राहकों से वसूले जाने वाले बिजली बिल तक कुछ बड़े बदलाव की तैयारी है. हालांकि, बिल के कुछ पहलुओं को लेकर पहले से ही विवाद भी चल रहा है.
बिजली संशोधन बिल की सबसे बड़ी बात ये है कि ये वो बिल है जिसका जिक्र आंदोलन कर रहे किसान संगठनों ने पीएम को भेजे छह सूत्री मांगों में किया गया है. किसान संगठन इस बिल को ठंडे बस्ते में डालने की बात कर रहे हैं. छह सूत्री मांगों के लिए पीएम मोदी को लिखे पत्र में किसान संगठनों ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि उन्हें बिल के किन बिंदुओं पर आपत्ति है.
माना जा रहा है कि किसान नेताओं को संशोधन बिल के सेक्शन 65 में किए जा रहे बदलाव पर सबसे ज्यादा आपत्ति है, जिसमें सब्सिडी का प्रावधान है. संशोधन बिल में वितरण कंपनियों को सब्सिडी देने की बजाए सीधे ग्राहकों के खाते में सब्सिडी भेजने का प्रावधान किया गया है. बिजली कानून 2003 के तहत राज्य सरकारों के लिए बिजली वितरण कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर एडवांस या अग्रिम भुगतान करने का प्रावधान है.
बिजली दर करना पड़ेगा महंगा
2003 के कानून के तहत एडवांस सब्सिडी को एक तरह से वितरण कंपनियों की आमदनी के रूप में देखा जाता है और सब्सिडी की रकम जोड़कर ही बिजली की दर निर्धारित की जाती है. नए बिल में बिजली वितरण कंपनियों को लागत के आधार पर ग्राहकों से पैसे लेने की छूट मिलेगी, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि बिजली उत्पादन की लागत ग्राहकों से ली जा रही बिजली की दर से 47 पैसे प्रति यूनिट ज्यादा है. ऐसे में आशंका है कि अगर सब्सिडी, वितरण कंपनियों की जगह सीधे ग्राहकों के खाते में भेजी जाएगी, तो वितरण कंपनियों का घाटा पूरा करने के लिए बिजली दर महंगा करना पड़ेगा.
सब्सिडी सीधे खाते में भेजने का मतलब ये भी होगा कि ग्राहकों को पहले बिजली बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा. मसलन, अगर किसी का बिजली बिल 1000 रुपये आता है, तो उसे इसका पूरा भूगतान करना पड़ेगा, क्योंकि खाते में सब्सिडी का पैसा बिल भरने के बाद ही आएगा, जैसा एलपीजी सब्सिडी के मामले में होता है. हालांकि, विशेषज्ञ बिजली की दर और वितरण को तार्किक बनाए जाने की वकालत कर रहे हैं.
ग्राहकों के पास मीटर लगा होना जरूरी
इतना ही नहीं, खाते में सब्सिडी भेजने में एक अन्य समस्या ये है कि जो लोग किराए के मकान में रहते हैं, लेकिन बिजली की मीटर मकान मालिक के साथ ही साझा करते हैं, उन्हें सब्सिडी कैसे दी जाएगी? ऐसे में ये तभी संभव हो सकेगा, जब सभी ग्राहकों के पास मीटर लगा हो, जबकि फिलहाल ऐसा नहीं है.
किसानों की आपत्ति इस प्रावधान को लेकर भी है. 2003 के कानून में क्रॉस सब्सिडी को धीरे-धीरे खत्म करने की बात कही गई थी और इसकी रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी नियामक आयोगों को दी गई थी, लेकिन प्रस्तावित बिल में राष्ट्रीय बिजली दर नीति के मुताबिक क्रॉस सब्सिडी खत्म करने की वकालत की गई है. क्रॉस सब्सिडी का मतलब होता है उपभोक्ताओं के एक वर्ग से बिजली की ज्यादा कीमत लेकर अन्य दूसरे वर्गों को सस्ती दर पर बिजली देना.
राज्यों की आपत्ति
2003 के बिजली कानून में किसी राज्य में राज्य बिजली नियामक आयोग के गठन के लिए चयन समिति बनाने का अधिकार उस राज्य की सरकार के पास है, जबकि केंद्रीय बिजली नियामक आयोग के गठन के लिए चयन समिति बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, लेकिन संशोधन बिल में केंद्र और राज्य बिजली नियामक आयोग के गठन के लिए एक ही चयन समिति बनाने का प्रावधान किया गया है.
राज्य सरकारों द्वारा गठिन चयन समिति में उस राज्य का मुख्य सचिव भी सदस्य होता है, लेकिन बिल में प्रस्तावित चयन समिति में सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या रिटायर्ड जज को चेयरमैन, जबकि केंद्रीय बिजली सचिव रोटेशन के आधार पर दो राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र सरकार के एक अन्य सचिव को सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया है. मतलब चयन समिति में एक समय में केवल किसी दो राज्य के मुख्य सचिव ही शामिल हो सकेंगे. इसके अलावा वितरण के निजीकरण और वितरण में लाइसेंस राज खत्म करने पर भी राज्यों को आपत्ति है. इस मुद्दे पर ममता बनर्जी समेत कई राज्यों ने केंद्र के सामने अपनी नाराजगी दर्ज करा रखी है.
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