PM Modi US Visit: अफगानिस्तान के हालात और आतंकवाद को पालने पहुंचने वाले पाकिस्तान की कारस्तानियां भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच 24 सितंबर को व्हाइट हाउस में होने वाली मुलाकात के दौरान चर्चा की मेज पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा. भारत की दलील होगी कि दोहा वार्ताओं में किए वादों और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 की अपेक्षाओं के विपरीत जमे तालिबान को जल्दबाजी में मान्यता देना दुनिया के लिए घातक हो सकता है.
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति बाइडेन के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बातचीत में निश्चित तौर पर अफगानिस्तान के हालात और दक्षिण एशिया की मौजूदा स्थितियों पर चर्चा होगी. साथ ही इस बारे में भी बात होगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव की शक्ल में पारित गई अपेक्षाओं के पैमाने पर तालिबान अभी तक किसी भी तरह खरा उतरता नजर नहीं आ रहा है. इतना ही नहीं, जिस तरह से उन्हें बाहर से संचालित किया जा रहा है वो किसी भी तरह अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को आश्वस्त करने वाली तस्वीर नहीं बनाता है.
भारत तालिबान के कठपुतली निजाम और उसे चलाती पाकिस्तानी ऊंगलियों का मुद्दा भी उठाएगा. आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि विभिन्न तालिबानी धड़ों के बीच इस समय चल रही खींचतान और एक गुट के बढ़ते दबदबे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. जाहिर तौर पर भारत इस बात पर जोर देगा कि सिराजुद्दीन हक्कानी गुट को मिल रही तरजीह और पर्दे के पीछे से पाकिस्तानी नियंत्रण चिंता बढ़ाने वाली बात है.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने का मिशन
गौरतलब है कि पाकिस्तान की इमरान खान सरकार इन दिनों काबुल की सत्ता पर काबिज हुए तालिबान के लिए जमकर बैटिंग कर रहा है. पाकिस्तान तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने के मिशन में भी जमकर जुटा है. हालांकि तालिबान के मौजूदा तेवर और कलेवर देखकर फिलहाल किसी भी देश ने उन्हें औपचारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है.
ध्यान रहे कि तालिबान और उसका हिमायती पाकिस्तान लगातार इस बात का दबाव बना रहे हैं कि अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी मुल्क अफगानिस्तान के लिए आर्थिक मदद न केवल बहाल करें बल्कि बढ़ाए. तालिबानी नेता भी अमेरिका को दोहा समझौते की दुहाई देकर करोड़ों डॉलर की मदद मांग रहे हैं. साथ ही अफगानिस्तान सरकार के अंतर्राष्ट्रीय खातों में जमा पैसों पर भी अबाध अधिकार चाह रहे हैं.
अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों की तरफ से अफगानिस्तान को मानवीय आधार पर सहायता मुहैया कराने पर बात हो रही है. हालांकि भारत समेत अन्य देशों को चिंता है कि मदद के डॉलरों से तालिबान न केवल अपनी ताकत बढ़ाएगा बल्कि अफगानिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों तक भी इसका हिस्सा पहुंचाएगा. भारत की खास फिक्र जैश ए मोहमद और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी गुटों के अफगानिस्तान में मौजूद नेटवर्क को लेकर है जो तालिबान के साथ भी करीबी रिश्ते रखते हैं. इतना ही नहीं, इन आतंकी गुटों के तार भी उसी आईएसआई से जुड़े हैं जो तालिबान के लिए भी रिंगमास्टर है.
भारत का आग्रह होगा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 30 अगस्त को पारित प्रस्ताव 2593 के पैमानों पर तालिबान को जवाबदेह बनाया जाए और उसका आंकलन किया जाए. इस परीक्षा के आधार पर ही उसे पाक किया जा सकता है क्योंकि अभी तक अफगानिस्तान में तालिबान ने न तो समाज के सही प्रतिनिधित्व वाली सरकार बनाई है और न ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया से सत्ता हासिल की है.
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