संघ प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए फैसले का स्वागत किया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को किसी भी प्रकार की हार या जीत मानने की बात से इंकार किया है.
फैसले का स्वागत करते हुए मोहन भागवत ने कहा, ''हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं. ये केस कई दशकों से चल रहा था और अब ये अपने सही अंत पर पहुंचा है. इसे जीत या हार की तरह नहीं देखा जाना चाहिए. इसी के साथ हम समाज के सभी लोगों की कोशिशों का भी स्वागत करना चाहूंगा. सभी शांति बनाए रखें.''
भागवत ने कहा दशकों तक चली न्यायिक प्रक्रिया के बाद राम जन्मभूमि से संबंधित सभी पहलुओं का बारीकी से विचार हुआ है सभी पक्षों का मूल्यांकन हुआ. उन्होंने कहा कि संपूर्ण देश वासियों से अनुरोध है कि विधि और संविधान के दायरे में रहकर इस निर्णय का स्वागत करें. इस विवाद की समाप्ति की दिशा में लाने की पहल और सरकार की ओर से होने वाली पहल होगी. हमें विश्वास है अतीत की सभी बातों को भुलाकर सभी राम जन्मभूमि के निर्माण के लिए साथ मिलजुल कर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करेंगे.
इसके अलावा एबीपी न्यूज के सवाल का भी भागवत ने जवाब दिया. एबीपी न्यूज ने मोहन भागवत से पूछा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में हीं 5 एकड़ जमीन देने की बात कही है? ऐसे में क्या उसका विरोध किया जाएगा क्योंकि पहले हिंदु संगठनों का कहना था कि मुस्लिमों को अयोध्या की सीमा से बाहर ही मस्जिद के लिए जमीन दी जाए?
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इसके जवाब में मोहन भागवत ने कहा कि इस बात का फैसला सरकार को लेना है. ये सरकार तय करेगी कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को वो किस तरह शांति से निपटाती है.
आपको यहां बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ विवादित जमीन का पूरा टुकड़ा रामलला पक्ष को दे दिया. इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भगवान राम के अस्तित्व को माना है और इस पर किसी प्रकार के विवाद होने की बात से इंकार किया है. हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि केवल आस्था के बल पर किसी के हक में फैसला नहीं दिया जा सकता.
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हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी वैकल्पिक जमीन देने की बात कही है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार तीन महीने में ट्र्स्ट बना कर फैसला करे. ट्रस्ट के मैनेजमेंट के नियम बनाए, मन्दिर निर्माण के नियम बनाए. विवादित जमीन के अंदर और बाहर का हिस्सा ट्रस्ट को दिया जाए.'' कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ की वैकल्पिक ज़मीन मिले. या तो केंद्र 1993 में अधिगृहित जमीन से दे या राज्य सरकार अयोध्या में ही कहीं दे.