हर मस्जिद में मंदिर खोजते लोगों को संघ प्रमुख मोहन भागवत ने नसीहत क्या दे दी, खुद मोहन भागवत संतों के निशाने पर आ गए. लेकिन मोहन भागवत ने जो बयान दिया क्या वो संघ की 100 साल से चली आ रही हिंदुत्व की परिपाटी से किनारा है या फिर मोहन भागवत का सीएम योगी और कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करने वालों को इशारा है. आखिर क्या हैं मोहन भागवत के बयान के मायने और क्यों अपने एक बयान के बाद संतों के निशाने पर आ गए हैं मोहन भागवत, आज बात करेंगे विस्तार से.
जाहिर है कि मोहन भागवत का ये इशारा उन तमाम मस्जिदों की खुदाई को लेकर है, जहां मंदिर होने का दावा किया जा रहा है. सबसे ज्यादा दावे भी उत्तर प्रदेश से ही आ रहे हैं, तो इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर इशारा भी माना जा रहा है. लेकिन ये कोई पहली बार नहीं है, जब संघ प्रमुख मोहन भागवत इस तरह से मंदिर-मस्जिद विवादों से बचने की नसीहत दे रहे हैं. जून 2022 में भी मोहन भागवत ने यही कहा था कि हर रोज एक मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं देखा जा सकता.
इस बयान के बाद भी भागवत कुछ कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए थे, लेकिन अब मस्जिद में मंदिर के बाद उन्होंने धर्म को लेकर भी कुछ ऐसा कह दिया है जो कुछ संतों को हजम नहीं हो रहा है. उन्होंने मस्जिद-मंदिर की बात को ही आगे बढ़ाते हुए कहा है कि धर्म का अधूरा ज्ञान अधर्म करवाता है.
जाहिर है कि भागवत का ये बयान कुछ संतों को लेकर है, जिन्हें हर मस्जिद में ही मंदिर देखना है. इसी वजह से मोहन भागवत के इस बयान पर पहला पलटवार किया है जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने, जिन्होंने भागवत के बयान को अदूरदर्शी बताया है और कहा है कि संघ हमारा शासक नहीं है और हम संभल में अपना मंदिर लेकर रहेंगे.
ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद तो एक कदम और आगे बढ़कर भागवत पर ‘राजनीतिक सुविधा’ के मुताबिक बयान देने का आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने कहा है कि जब उन्हें सत्ता प्राप्त करनी थी, तब वह मंदिर-मंदिर करते थे अब सत्ता मिल गई तो मंदिर नहीं ढूंढ़ने की नसीहत दे रहे हैं.
जब इतनी बात हो ही गई तो कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर भी खामोश नहीं रहे. उन्होंने संघ प्रमुख के सम्मान की बात करते हुए कहा कि अगर हम भगवान कृष्ण और भोलेनाथ के मंदिरों को नहीं बचा सके तो काहे के कथावाचक और काहे के सनातनी. हम अपनी भावनाएं बता रहे हैं कि जब तक हमारे मंदिर हमें नहीं मिल जाएंगे, तब तक कलेजे में लगी आग नहीं बुझ सकेगी.
भागवत के खिलाफ संतों के ये जो सुर हैं, वो अभी खामोश नहीं होने वाले हैं, क्योंकि ये वक्त महाकुंभ है. प्रयागराज के महाकुंभ में लाखों संत जुटने वाले हैं, जहां धर्म को लेकर व्यापक विमर्श होना है. और संघ प्रमुख ने मस्जिद-मंदिर पर बयान देकर इस पूरे विमर्श को शायद खुद के ऊपर केंद्रित कर लिया है, जिससे आने वाले दिन में सबसे ज्यादा परेशानी बीजेपी को उठानी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी न तो संघ प्रमुख की मुखालफत कर सकती है और न ही संतों की अनदेखी. लिहाजा मोहन भागवत बनाम संतों की इस जुबानी जंग में बीजेपी को हर एक कदम फूंक-फूंककर रखना पड़ेगा, जिसमें सबसे ज्यादा परेशानी सीएम योगी आदित्यनाथ को होने वाली है.