राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार (9 सितंबर, 2024) को कहा कि धर्म का अर्थ सिर्फ पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक अवधारणा है जिसमें सत्य, करुणा, तपश्चर्या (समर्पण) शामिल है. मोहव भागवत ने यह भी बताया कि हिंदू का असली मतलब क्या है. उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द एक विशेषण है जो विविधताओं को स्वीकार करने का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि भारत वसुधैव कुटुम्बकम के विचार को आगे बढ़ाने और एक उद्देश्य के लिए अस्तित्व में आया.
मोहन भागवत ने डॉ. मिलिंद पराडकर द्वारा लिखित पुस्तक तंजावरचे मराठे' के विमोचन के अवसर पर यह बात कही. उन्होंने कहा कि कुछ तत्व देश के विकास की राह में बाधा पैदा कर रहे हैं क्योंकि ये लोग भारत का विकास नहीं चाहते हैं. मोहन भागवत ने यह कहा कि ऐसे लोगों से डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में भी ऐसी ही स्थिति थी, लेकिन धर्म की शक्ति का उपयोग करके इससे निपटा गया था.
मोहन भागवत ने कहा कि अतीत में भारत पर बाहरी आक्रमण काफी हद तक दिखाई देते थे, इसलिए लोग सतर्क रहते थे, लेकिन अब वे विभिन्न रूपों में सामने आ रहे हैं. उन्होंने कहा, 'जब ताड़का ने (रामायण में एक राक्षसी ने) आक्रमण किया, तो बहुत अराजकता फैल गई और वह (राम और लक्ष्मण द्वारा) केवल एक बाण से मारी गई, लेकिन पूतना (राक्षसी जो शिशु कृष्ण को मारने आई थी) के मामले में, वह (शिशु कृष्ण को) स्तनपान कराने के लिए मौसी के वेश में आई थी, लेकिन चूंकि वह कृष्ण थे (उन्होंने उसे मार डाला).'
आरएएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'आज की स्थिति भी वैसी ही है. हमले हो रहे हैं और वे हर तरह से विनाशकारी हैं, चाहे वह आर्थिक हो, आध्यात्मिक हो या राजनीतिक.' उन्होंने कहा, जिन लोगों को डर है कि अगर भारत का व्यापक पैमाने पर विकास होता है तो उनके कारोबार बंद हो जाएंगे, ऐसे तत्व देश के विकास की राह में बाधा उत्पन्न करने के लिए अपनी सारी शक्ति का इस्तेमाल कर रहे हैं'. वे योजनाबद्ध तरीके से हमले कर रहे हैं, चाहे वे भौतिक हों या सूक्ष्म, लेकिन डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में भी ऐसी ही स्थिति थी, जब भारत के उत्थान की कोई उम्मीद नहीं थी.
मोहन भागवत ने कहा कि भारत को परिभाषित करने वाली एक चीज है 'जीवनी शक्ति'. उन्होंने कहा, 'जीवन शक्ति हमारे राष्ट्र का आधार है और यह धर्म पर आधारित है जो हमेशा रहेगा.' आरएसएस प्रमुख भागवत ने कहा कि धर्म सृष्टि के आरंभ में था और अंत तक इसकी (धर्म की) आवश्यकता रहेगी.
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