No-Confidence Motion: विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' आज यानी बुधवार (26 जुलाई) को केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहा है. एक दिन पहले मंगलवार को विपक्षी गठबंधन दलों की बैठक में अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला हुआ था. खास बात ये है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है, ऐसे में आइए जानते हैं कि इस प्रस्ताव को लाने का विचार कैसे आया और इस पर सभी दलों में सहमति कैसे बनी?


हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव का आइडिया सोमवार की शाम को आया, जब 'इंडिया' के सहयोगी दल के एक वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सामने इसका जिक्र किया. 


प्रस्ताव का गिरना निश्चित, फिर क्यों ला रहा विपक्ष?


मंगलवार (25 जुलाई) को जब विपक्षी नेताओं की बैठक खरगे के कार्यालय में शुरू हुई तो उन्होंने इस प्रस्ताव की घोषणा की और सभी नेताओं से इस मुद्दे पर उनकी राय मांगी. इस प्रस्ताव पर सभी दलों ने सहमति जताई और आगे बढ़ने का फैसला किया गया.


दरअसल विपक्ष जानता है कि अविश्वास प्रस्ताव पास होना संभव नहीं है, क्योंकि एनडीए के पास 332 सांसदों का समर्थन है. बावजूद, इसके प्रस्ताव के पीछे बड़ी रणनीति है. एचटी से एक विपक्षी गठबंधन के नेता ने कहा, ''परिणाम पूर्व निश्चित है, लेकिन अगर अविश्वास प्रस्ताव आता है तो प्रधानमंत्री बोलने के लिए मजबूर होंगे और वे बहस से बचने की कोशिश करते हैं तो ये नैतिक जीत होगी.''


टीएमसी ने मांगा था 24 घंटे का समय


एबीपी न्यूज के सूत्रों के अनुसार, मंगलवार को विपक्षी गठबंधन "इंडिया" की बैठक में सभी दल सहमत थे, लेकिन टीएमसी ने अपनी राय जाहिर करने के लिए 24 घंटे का समय मांगा. हालांकि, करीब 45 मिनट बाद वो भी सहमत हो गई. सूत्रों के मुताबिक लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और मनीष तिवारी को इसकी रूपरेखा तैयार करने और सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की जिम्मेदारी दी गई है. अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है.


बुधवार को होगी बैठक


बुधवार सुबह 10 बजे विपक्षी दलों ने एक बार फिर से मिलेंगे, जहां अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी सांसदों के हस्ताक्षर लिए जाएंगे. वहीं, कांग्रेस ने लोकसभा के अपने सभी सांसदों को बुधवार सुबह 10.30 बजे उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया है. विपक्षी दलों की रणनीति यह है कि अविश्वास प्रस्ताव के बहाने विपक्षी दल विस्तार से मणिपुर का मुद्दे पर सरकार को घेर सकेंगे और पीएम मोदी को चर्चा का जवाब देना होगा.


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