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मानसून स्पेशल: कालिदास ने 'मेघदूत' में बादलों का जितना खूबसूरत वर्णन किया है वैसा शायद ही किसी ने किया हो

कालिदास संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार थे. कालिदास ने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की. कालिदास अपनी अलंकार युक्त सुंदर सरल और मधुर भाषा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं.

Rain and Literature: आसमान पर इठलाते काले बादल, बारिश की आस वाली आंखों को उम्मीद देते है तो रिमझिम फुहारों का एहसास मन को सुकून...इनसे किसानों के चेहरों से चिंता वाली लकीरें धुलकर खुशियां खिल जाती हैं तो खेतों की तपती दोपहरी में लहलहाती फसलों की हरियाली वाली तस्वीर उभरने लगती है. अपने अंदर बारिश की बूंदों को समेटे ये मंडराते हुए मेघ कुछ के लिए राहत तो कुछ के लिए मोहब्बत का पैगाम लाते हैं. कुछ के लिए बचपन की तो कुछ के लिए जवानी की अल्हड़ यादें लाते हैं. प्रेमी से दूर प्रेयसी के विरह की तपिश और बढ़ाते हैं तो कभी दोस्त - सखा बनकर सन्देश पहुंचाते हैं.

ज़िन्दगी के हर कोने को छूने वाले इस मेघ और बारिश की बूंदो से साहित्य भी खूब सराबोर हुआ है.तो आइये मेघों वाले इस मौसम का स्वागत एक अलग अंदाज में करते हैं...

बादलों की महिमा, मेघ बरसाने से पहले और बरसाने के बाद क्या होती है इसका जिक्र अलग-अलग भाषाओं के साहित्यकारों ने किया है. आज हम आपको महाकवि कालिदास द्वारा रचित खण्डकाव्य 'मेघदूत' के बारे में बताने जा रहे हैं. पहले के जमाने में संचार के साधनों में पशु-पक्षी समेत कई चीजें आती थी, इसलिए विरही यक्ष का संदेश-वाहक कवि कालिदास ने मेघ (बादल) को बनाया जिसमें विरह-व्यथा के मार्मिक वर्णन का प्राकृतिक चित्रण भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. 'मेघदूत' में कालिदास ने मेघ (बादल) का जितना खूबसूरत वर्णन किया है उतना शायद ही कोई और कर पाया हो.

क्या है मेघदूत खण्डकाव्य

कालिदास का ‘मेघदूत’ हालांकि छोटा-सा काव्य-ग्रन्थ (खण्डकाव्य) है किन्तु इसके माध्यम से प्रेमी के विरह का जो वर्णन उन्होंने किया है उसका अन्य उदाहरण मिलना असंभव है. कालिदास ने जब आषाढ़ माह के पहले दिन आकाश पर मेघ उमड़ते देखे तो उनकी कल्पना ने उड़ान भरकर उनसे यक्ष और मेघ के माध्यम से विरह-व्यथा का वर्णन करने के लिए ‘मेघदूत’ की रचना करवा डाली. मेघदूत के दो भाग हैं -पूर्वमेघ और उत्तरमेघ.

मानसून स्पेशल:  कालिदास ने 'मेघदूत' में बादलों का जितना खूबसूरत वर्णन किया है वैसा शायद ही किसी ने किया हो

क्या है इसकी कहानी

अलका नगरी के राजा धनराज कुबेर अपने सेवक यक्ष को कर्तव्यहीनता के कारण एक साल के लिए नगर- निष्कासन का शाप दे देते हैं. दरअसल कुबेर शिवभक्त होते हैं और वह रोज शिव की पूजा करते वक्त 100 कमल का फूल उन्हें चढाते हैं. एक दिन वह 99 फूल चढ़ाने के बाद जैसे ही 100वें श्लोक का उच्चारण करते हुए फूल के लिए हाथ बढाते हैं तो उन्हें 100वां कमल का फूल नहीं मिला. इस कारण वह क्रोधित हो गए. उनकी पूजा अधूरी रह गई. यक्ष से पूछने पर उसने बताया कि एक फूल उसने अपनी पत्नी के जूड़े में लगा दिया था. बस इसी के बाद कुबेर ने यक्ष को एक साल अपनी पत्नी से अलग रहने का शाप दिया.

इसके बाद यक्ष अलका नगरी से सुदूर दक्षिण दिशा में रामगिरि के आश्रमों में जाकर रहने लगता है. यक्ष ने जैसे-तैसे 8 महीने का समय तो निकाल लिया लेकिन अपनी पत्नी से विरह का दुख उसे आषाढ़ मास के पहले दिन रामगिरि पर एक मेघखण्ड को देखते ही होने लगा. यक्ष अपनी पत्नी यक्षी की याद से व्याकुल हो उठता है. विरही यक्ष अपनी प्रियतमा के लिए छटपटाने लगता है और फिर उसने सोचा कि शाप के कारण तत्काल अल्कापुरी लौटना तो उसके लिए संभव नहीं है, इसलिए क्यों न संदेश भेज दिया जाए. कहीं ऐसा न हो कि बादलों को देखकर उनकी पत्नी विरह में प्राण दे दे और फिर उसने बादलों द्वारा अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजने का निर्णय किया.

इसके बाद रामगिरि से विदा लेने का अनुरोध करने पर यक्ष, मेघ को रामगिरि से अलका तक का रास्ता सविस्तार बताता है. मार्ग में कौन-कौन से पर्वत पड़ेंगे जिन पर कुछ क्षण के लिए मेघ को विश्राम करना है, कौन-कौन सी नदियां जिनमें मेघ को थोड़ा जल ग्रहण करना है और कौन-कौन से ग्राम अथवा नगर पड़ेंगे, जहां बरसा कर उसे शीतलता प्रदान करना है या नगरों का अवलोकन करना है, इन सबका उल्लेख करता है. इसी उल्लेख में कालिदास ने यक्ष के माध्यम से बादलों का सबसे खूबसूरत चित्र खिंचा है.

मेघ (बादल) का और बरसात के बाद के दृष्य का बेहतरीन चित्रण

कालीदास ने मेघ का यक्ष के शब्दों में बखूबी वर्णन किया है. यक्ष बादलों से कहता है, ''हे मेघ जब तुम आकाश में उमड़ते हुए उठोगे तो प्रवासी पथिकों की स्त्रियां मुंह पर लटकते हुए घुंघराले बालों को ऊपर फेंककर इस आशा से तुम्‍हारी ओर टकटकी लगाएंगी कि अब प्रियतम अवश्‍य आते होंगे. तुम्‍हारे घुमड़ने पर कौन-सा जन विरह में व्‍याकुल अपनी पत्‍नी के प्रति उदासीन रह सकता है, यदि उसका जीवन मेरी तरह पराधीन नहीं है?..''

वहीं बारिश होने के बाद क्या-क्या होगा इसका बहुत खूबसूरत वर्णन किया गया है. बरसात होने पर क्या होगा इसके बारे में यक्ष बताता है, ''पुष्पित कदम्ब को भ्रमर मस्त होकर देख रहे होंगे, पहला जल पाकर मुकुलित कन्दली को हरिण खा रहे होंगे और गज प्रथम वर्षाजल के कारण पृथिवी से निकलने वाली गन्ध सूंघ रहे होंगे-इस प्रकार भिन्न-भिन्न यिाओं को देखकर मेघ के गमन मार्ग का स्वत:अनुमान हो जाता है. प्रकृति से मनुष्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है. यही कारण है कि वह मनुष्य के अंतकरण को प्रभावित करती है. ''

यक्ष पहाड़ों से निकलने वाले बादल का बहुत खूबसूरत वर्णन करता है और कहता है जब काले बादल उन पहाड़ों में दिखते हैं तो कृष्‍ण की छवी बन जाती है. यक्ष कहता है, '' हे मेघ जब तुम उन पहाड़ों से निकलोगे तो तुम्‍हारा सांवला शरीर और भी अधिक खिल उठेगा, जैसे झलकती हुई मोरशिखा से गोपाल वेशधारी कृष्‍ण का शरीर सज गया था.''

वर्षा ऋतु का इतंजार सबसे ज्यादा किसानों को होता है और इसको बखूबी कालीदास ने यक्ष के जरिए बताया है. यक्ष बादलों से माल क्षेत्र के पठारी (बुन्देलखंड) के इलाकों पर बरसने को कहता है जहां किसान ने फसल बोने के लिए जोती हुई खेत में बरसात का पानी गिरने का इंतजार कर रहा हो. यक्ष कहते हैं, ''हे मेघ..खेती का फल तुम्‍हारे अधीन है - इस उमंग से ग्राम-बधूटियां भौंहें चलाने में भोले, पर प्रेम से गीले अपने नेत्रों में तुम्‍हें भर लेंगी. माल क्षेत्र के ऊपर इस प्रकार उमड़-घुमड़कर बरसना कि हल से तत्‍काल खुरची हुई भूमि गन्‍धवती हो उठे.''

यक्ष मेघ को उत्‍तर दिशा उज्जैन के महलो में ठहरने को कहते हैं और साथ ही कहते हैं कि बरसात में उस नागर की स्त्रियों के नेत्रों की चंचलता को न देखा तो ठगा हुआ महसूस करोगे. वह कहते हैं, '' उज्‍जयिनी के महलों की ऊंची अटारियों की गोद में बिलसने से विमुख न होना. बिजली चमकने से चकाचौंध हुई वहां की नागरी स्त्रियों के नेत्रों की चंचल चितवनों का सुख तुमने न लूटा तो समझना कि ठगे गए. वहां घरों के पालतू मोर भाईचारे के प्रेम से तुम्‍हें नृत्‍य का उपहार भेंट करेंगे. वहां फूलों से सुरभित महलों में सुन्‍दर स्त्रियों के महावर लगे चरणों की छाप देखते हुए तुम मार्ग की थकान मिटाना.''

इस तरह कालीदास के मेघदूत के पहले भाग ''पूर्वमेघ'' में बादलों का खूबसूरत वर्णन किया गया है. वहीं इस खण्ड काव्य के दूसरे भाग ''उत्तरमेघ'' में यक्ष के संदेश का वर्णन है.

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