Morbi Bridge Collapse: गुजरात में मोरबी जिले की माछू नदी पर बना केबल ब्रिज यानी झूलता पुल टूटकर गिर गया. इस हादसे में 134 लोगों की जान चली गई. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस हादसे के बाद घायलों से मिलने मोरबी के अस्पताल पहुंचे और लोगों के दुख में शामिल हुए. इस पुल को सात महीने तक बंद रखा गया था और दो करोड़ रुपये देकर इसकी मरम्मत कराई गई थी. 26 अक्टूबर को पुल आम लोगों के लिए खोल दिया गया. पुल के खुलने के पांचवें दिन ऐसा हादसा हुआ, जिसने पुलिस प्रशासन से लेकर पुल की मरम्मत करने वाली कंपनी को कटघरे में खड़ा कर दिया है.


मुनाफा कमाने के लिए जल्दबाजी में पुल को खोला


मोरबी में माछू नदी पर बने इस पुल की मरम्मत का काम ओरेवा कंपनी को सौंपा गया था. पुल की मरम्मत के बाद इसे गुजराती नव वर्ष पर खोला गया था. कहा जा रहा है कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के पुल को खोल दिया गया था. ब्रिज पर जाने के लिए व्यस्कों के लिए टिकट का दाम 17 रुपये है, जबकि बच्चों का टिकट 12 रुपये में लेना होता है. लेकिन कंपनी ने पुल के रिनोवेशन का काम खत्म किया है या नहीं, इसकी जानकारी के बिना ही पुल को खोल दिया गया था.


छुट्टियों का दिन था और पैसे लेकर क्षमता से ज्यादा लोगों को पुल पर जाने की अनुमति दे दी गई. 100 लोगों की क्षमता वाले पुल पर 300 से 400 लोग चढ़ गए थे. पैसे कमाने के लिए क्षमता से ज्यादा टिकट बेचे गए थे. कहीं बोर्ड नहीं लगाया गया था कि पुल की क्षमता कितनी है, कितने लोग पुल पर एक साथ चढ़ सकते हैं. 


ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर 100 लोगों की क्षमता वाले पुल पर 300-400 लोग कैसे पहुंच गए. कंपनी भीड़ के बावजूद लोगों को टिकट क्यों जारी करती रही. 


लापरवाही में चली गई 134 लोगों की जान


लापरवाही में हुए इस बड़े हादसे का गुनहगार मानते हुए पुल का रिनोवेशन करने वाली कंपनी ओरेवा ग्रुपर पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया गया है. इसकी जांच के लिए कमेटी बना दी गई है. कंपनी पर 304, 308 और 114 के तहत क्रिमिनल केस दर्ज किया गया है. मामले की जांच शुरू कर दी गई है. बताया जा रहा है कि कंपनी को मार्च 2022 में 15 साल के लिए मैनेजमेंट का कॉन्ट्रैक्ट मिला था. ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है और कोर्ट में 14 नवंबर को इसकी सुनवाई होगी.


जानिए पुल का पूरा इतिहास 


माछू नदी पर बना केबल ब्रिज 143 साल पुराना है. आजादी से पहले 1887 के आसपास इस पुल का निर्माण ब्रिटिश शासन काल में हुआ था. मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी रावाजी ठाकोर ने इस पुल का निर्माण कराया था. यह पुल ऋषिकेश के राम-झूला और लक्ष्मण झूला पुल की तरह झूलता हुआ सा नजर आता था, इसलिए इसे झूलता पुल भी कहते थे. इस पुल की कुल लंबाई - 765 फुट थी और चौड़ाई साढ़े चार फुट (1.25 मीटर) थी. यह पुल दरबार गढ़ पैलेस को लखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज से जोड़ता था.


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