मध्य प्रदेश के भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के खिलाफ दायर याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने को सुप्रीम कोर्ट सोमवार (15 जुलाई, 2024) को तैयार हो गया. कोर्ट मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. यह भोजशाला मध्ययुगीन है, जिस पर हिंदू और मुसलमान दोनों ही अपना दावा करते हैं. मंगलवार के हिंदू यहां पूजा करते हैं और मुसलमान शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं.
मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी ने सप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश चुनौती दी गई थी. 11 मार्च को हाईकोर्ट ने पूजा स्थल का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह किस समुदाय का है.
11 मार्च को हाईकोर्ट ने दिया था सर्वेक्षण का निर्देश
हाईकोर्ट ने अपने 11 मार्च के आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को छह सप्ताह के भीतर भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था और 4 जुलाई को 15 तारीख तक रिपोर्ट सब्मिट करने का आदेश दिया था. जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की इन दलीलों का संज्ञान लेने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की कि एएसआई ने पहले ही अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है. उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि हिंदू पक्ष ने लंबित याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है.
सर्वे में एएसआई को क्या मिला?
एएसआई के वकील हिमांशु जोशी ने सोमवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ को 2000 से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट सौंप दी. एडवोकेट हरि शंकर ने बताया कि भोजशाला में 94 टूटी हुई मूर्तियां मिली हैं. न्यूज एजेंसी एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि एएसआई की रिपोर्ट से साफ हो गया है कि वहां एक हिंदू मंदिर था और वहां सिर्फ हिंदुओं को पूजा करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि साल 2003 में एएसआई की तरफ से नमाज की इजाजत दिए जाने का आदेश गैरकानूनी है. उन्होंने कहा कि वहां से टूटी हुई मूर्तियां मिली हैं, जिन्हें देखकर कोई भी बता सकता है कि वहां मंदिर था.
मंगलवार को हिंदू पूजा और शुक्रवार को मुस्लिम पढ़ते हैं नमाज
7 अप्रैल, 2003 को एएसआई ने एक व्यवस्था की थी, जिसके तहत हिंदू भोजशाला परिसर में मंगलवार को पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करते हैं. यह भोजशाला 11वीं सदी की बताई जाती है, जिसका संरक्षण एएसआई करता है. 1 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था.
हिंदू भोजशाला को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला मस्जिद कहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर जवाब मांगते हुए कहा था कि विवादित सर्वेक्षण के नतीजों पर उसकी अनुमति के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए.
पीठ ने कहा था, 'यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी भौतिक खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे संबंधित परिसर का चरित्र बदल जाए.' एमपी हाईकोर्ट ने 11 मार्च को अपने 30 पेज के आदेश में कहा था, 'एएसआई के महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में एएसआई के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा व्यापक रूप से तैयार उचित दस्तावेजी रिपोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह की अवधि के भीतर इस अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए.' हाईकोर्ट का यह आदेश हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस (HFJ) नामक एक संगठन द्वारा दायर एक अर्जी पर आया था.