मध्यप्रदेश में हुए उपचुनावों में बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल कर साबित कर दिया है कि प्रदेश में उसका कोई सानी नहीं है. प्रदेश में उन्नीस जिलों में हुए 28 उपचुनावों के परिणामों को लेकर बहुत कयास लगाए जा रहे थे. जानकार इन चुनावों को बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही थी, लेकिन परिणाम आए तो सारे अनुमान झूठे साबित हुए. बीजेपी ने 19 सीटें जीतकर बता दिया कि बीजेपी से जीतना अब मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा है.
इन हैरतअंगेज परिणाम के कई मायने हैं जिनमें सबसे खास बात ये है कि बीजेपी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश की जनता ने फिर भरोसा जताया है. शिवराज सभाओं में कहते थे कि मैं तो टेंमपरेरी मुख्यमंत्री हूं मुझे पक्का कर दीजिये तो अब जनता ने उनको पक्की और मजबूत सरकार सौंप कर प्रदेश को विकास पथ पर चलाने की जिम्मेदारी दे दी है.
बिना ब्रेक के शिवराज शासन
बीजेपी सरकार बहुमत से आठ सीट दूर थी मगर अब जनता ने उसे आठ से दोगुनी ज्यादा सीट देकर आश्वस्त कर दिया है कि सरकार की गाड़ी बिना किसी ब्रेक के चलाओ. शिवराज सिंह के लिये ये चुनाव जीतना आसान नहीं था. शिवराज सिंह का कहना है कि ये चुनाव उन्होंने शून्य से शुरू किया था. सारी परिस्थितियां बीजेपी के खिलाफ थी मगर कार्यकर्ताओं की मेहनत और बेहतर प्रबंधन ने पार्टी को भारी मतों से जीत दिलायी.
बीएसपी ने बिगाड़े कांग्रेस के समीकरण
बीजेपी को इन चुनावों में जो झटका मिला वो ग्वालियर चंबल संभाग से ही मिला है. जहां से प्रदेश के तीन वर्तमान मंत्री चुनाव हार गए हैं. इस इलाके में 16 सीटों पर चुनाव थे मगर कांग्रेस यहां जितनी सीट जीतनी चाह रही थी, वो जीत नहीं सकी और यहां पर उतरी बीएसपी ने उसके समीकरण बिगाड़ दिए. चुनाव को करीब से जानने वाले बताते हैं कि बीएसपी को भी ताकत बीजेपी से ही मिली.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों की जीत
कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पच्चीस साथियों पर जो गद्दारी का बिल्ला कांग्रेसी नेताओं ने लगाया था उसको जनता ने स्वीकार नहीं किया और सिंधिया के साथ छोड़कर आए विधायक और मंत्रियों को भारी मतों से जीताया. आमतौर पर उपचुनावों में इतने अंतर से जीतना मुश्किल होता है मगर इस जीत को भी बीजेपी ने संभव कर दिखाया जो लंबे समय तक याद रखा जाएगा.
कमलनाथ पर उठे सवाल
अब प्रश्न कांग्रेस पर है कि कमलनाथ की अगुआई में पार्टी ने बेहतर प्रबंधन और अच्छे प्रत्याशियों के साथ चुनाव लड़ा लेकिन परिणाम अनुकूल नहीं रहे. ये चुनाव परिणाम देखने के बाद ऐसा लगता है कि 2019 के चुनाव परिणामों का ये अगला रूप है. लोकसभा के परिणामों में भी ऐसी भारी जीत बीजेपी के उम्मीदवारों को मिली थी और अब भी वैसी ही जीत हासिल हुई है. इन चुनाव ने कमलनाथ के भविप्य की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं. क्या वो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ेंगे या फिर अगले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की चुनाव लड़ाएंगे.
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