Madhya Pradesh Election: मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं के बीच दल-बदल देखा जा रहा है. बीजेपी में सत्ता विरोधी लहर की अटकलें हैं. पिछले तीन महीने में बीजेपी के तीन नेता कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. 


राज्य में 'महाराज' के नाम से मशहूर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के दो वफादारों ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. कांग्रेस में जाने वाले नेताओं ने कहा है कि बीजेपी में उन्हें तवज्जो नहीं मिल रही थी, इसलिए पार्टी छोड़ दी. बीजेपी पर गुटबाजी के चलते नेताओं के पलायन के आरोप लग रहे हैं.


2018 में कांग्रेस ने बेहद मामूली अंतर से विधानसभा चुनाव जीता था, इसलिए साल के अंत में होने वाले चुनाव के लिए बीजेपी सर्तकता से अपने प्लान पर काम कर रही है. इसकी एक बानगी 27 जून को देखने को मिली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में 'मेरा बूथ-सबसे मजबूत' अभियान शुरू किया. 


क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के वफादार दे रहे दगा?


मार्च में बीजेपी नेता यादवेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे. 14 जून को शिवपुरी के एक बीजेपी नेता बैजनाथ सिंह यादव ने एक बड़ी कार रैली निकालकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था. वहीं, 26 जून को शिवपुरी जिले में बीजेपी के उपाध्यक्ष रह चुके और सिंधिया के वफदार नेता राकेश कुमार गुप्ता कांग्रेस में शामिल हो गए थे. उन्होंने भी एक बड़ी कार रैली निकाली थी. 


बैजनाथ सिंह यादव और राकेश कुमार गुप्ता सिंधिया के वफादार माने जा रहे थे. माना जा रहा है कि दोनों के साथ उनके सैकड़ों समर्थक भी कांग्रेस में चले गए जो स्थानीय जिला और पंचायत पर विभिन्न पदों पर थे. दोनों नेताओं ने कहा कि वे टिकट पाने के लिए कांग्रेस में नहीं लौटे हैं, बल्कि कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं.


बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में जाने वाले नेताओं ने क्या कहा?


इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बैजनाथ सिंह यादव ने कहा, ''बीजेपी में घुटन सी लग रही था. मैंने छोड़ा क्यों कि वहां खुद को सम्मानित महसूस नहीं कर रहा था. बीजेपी नेताओं ने मेरे साथ ठीक से बर्ताव नहीं किया. इसलिए मेरे पास पार्टी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.''


राकेश कुमार गुप्ता ने भी ऐसा ही हाल बयां किया. उन्होंने कहा, ''हमने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ी थी और सोचा था कि कुछ सम्मान मिलेगा लेकिन वैसा नहीं हुआ. मैं मार्च में उनसे (सिंधिया) मिला और बताया कि मुझे नहीं लगता है कि मैं पार्टी में हूं. उन्होंने मुझे इसे कुछ वक्त देने और एडस्ट करने के लिए कहा. मेरी उनसे कभी लंबी बात नहीं हुई जिसका उन्होंने वादा किया था. मैंने बस छोड़ दिया. वह (सिंधिया) उन कार्यक्रमों में शामिल हुआ करते थे जहां उन्होंने बीजेपी नेताओं को जगह देने की कोशिश की और हमारे बारे में भूल गए.''


रिपोर्ट में एक कांग्रेस नेता के हवाले से लिखा गया, ''बीजेपी में पूर्व कांग्रेस नेताओं और बीजेपी के दिग्गजों की बीच तनाव के कारण अंदरूनी कलह हो रही है. वे (बीजेपी) उन्हें (पूर्व कांग्रेस नेताओं को) जगह नहीं दे पा रहे हैं.''


बीजेपी का प्लान क्या होगा?


बता दें कि 230 सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा के 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 114 और बीजेपी ने 107 सीटें जीती थीं. मध्य प्रदेश में बहुमत का आंकड़ा 112 सीटों का है. मार्च 2020 में कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के चलते 22 नेता ने पाला बदलकर बीजेपी में शामिल हो गए थे. इस वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी और बीजेपी ने सत्ता में वापसी कर ली थी.


अगर सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए नेताओं का असंतुष्ट होने का सिलसिला जारी रहता है तो बीजेपी के मुश्किल खड़ी हो सकती है. इससे बीजेपी की ओर से शुरू किए गए बूथ स्तर के अभियान पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिए पार्टी को और जोर लगाना पड़ सकता है.


क्या बीजेपी वाकई सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है?


मध्य प्रदेश को लेकर हाल में एबीपी न्यूज के लिए सी-वोटर ने ओपनियन पोल किया था, जिसमें आज चुनाव होने की सूरत में बीजेपी को 106 से 118 सीटें और कांग्रेस को 108 से 120 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया था. बीजेपी प्रवक्ता केके शर्मा ने 27 जून को एबीपी न्यूज से कहा था कि बीजेपी चौथी बार अपनी सरकार पूरी कर रही है और पोल में जो आंकड़ा आया है, उसका सीधा मतलब है कि सरकार को लेकर कोई एंटी इनकम्बेंसी जैसा फैक्टर नहीं है. उन्होंने कहा था कि अगर सत्ता विरोधी लहर होती तो आंकड़े बहुत नीचे आते. कुछ एक विश्लेषकों ने भी ऐसी ही राय जाहिर की थी. बहरहाल, चुनाव के नतीजे ही अटकलों पर विराम लगाएंगे.


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