MP Election 2023: मध्य प्रदेश में कहां कैसा है बीजेपी और कांग्रेस का समीकरण, समाजवादी पार्टी और BSP बिगाड़ पाएगी खेल?
MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश विधासभा चुनाव की जोर-शोर से चल रही तैयारियों के बीच जानें कि किस क्षेत्र में कौन मजबूत है? कौन सी पार्टी को पिछली बार कहां कितनी सीटें मिली थी?
MP Election 2023: मध्य प्रदेश में प्रचार के अब ज्यादा दिन नहींं बचे हैं. प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग बदलाव दिखने लगे हैं. शुरुआत में जिन इलाकों में कांग्रेस बढ़त पर थी अब वहां पर बीजेपी मुकाबले में आ गई है. ऐसे ही कई जगहों पर बीजेपी आगे थी तो कांग्रेस उसको टक्कर देने के करीब है. ऐसे में सभी जिलों में समीकरण बदल रहे हैं. ये समीकरण क्यों बदल रहे हैं. विशेषज्ञों से समझते हैं.
मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में आ गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सभाएं जोरों पर है. बसपा सुप्रिमो मायावती और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी प्रदेश में सभाएं कर अपनी पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की है. राज्य के चुनाव को हम इलाकों के आधार पर बांट कर इन दिनों बह रही हवा का रुख जानने की कोशिश करें तो कुछ यूं होगा.
ग्वालियर चंबल इलाका
प्रदेश के इस उत्तरी इलाके में कुल 34 सीटें हैं. इनमें कांग्रेस को 27 बीजेपी को पांच और दो अन्य के खाते में गई थी. बीजेपी सरकार के गिरने का यह ही इलाका कारण बना था. राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर ने कहा कि प्रचार जब शुरू हुआ तो बीजेपी को भरोसा था कि कांग्रेस से बीजेपी में आए नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के यहां पर बीजेपी के पक्ष में माहौल बदलेगा. केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर को भी इसी इलाके की दिमनी से चुनाव मैदान में उतारा गया, लेकिन ऐसा नहींं हुआ. कमोबेश सीटों का गुणा भाग में ज्यादा बदलाव दिख नहीं रहा. वजह यहां के जातीय समीकरण है, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के मजबूत नेताओं ने टिकट नहींं मिलने पर बसपा का दामन थामा है. ऐसे में बसपा फिर दो से तीन सीटें जीतने की स्थिति में है.
बुंदेलखंड बघेलखंड
उत्तर प्रदेश की सीमा से जुडा ये बडा इलाका है. यहां की 56 सीटों पर पिछली बार बीजेपी ने बढ़त बनायी थी और विंध्य से कांग्रेस का सफाया हो गया था. बीजेपी ने 38 और कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन सारे विश्लेषक मान रहे हैं कि कांग्रेस ने अपनी स्थित बेहतर की है. खासकर विंध्य इलाके में और पार्टी सीटों की संख्या बढाएगी. नवदुनिया के संपादक संजय मिश्रा ने कहा कि बीएसपी की उपस्थिति यहां पर कई पार्टियों का खेल प्रभावित करेगी.
महाकौशल
मध्य भारत का ये इलाका हमेशा से बीजेपी कांग्रेस दोनों का गढ़ रहा है. पिछली बार कांग्रेस ने यहां बेहतर करने की कोशिश की थी. इलाके की 38 सीटों में से कांग्रेस ने 24 तो बीजेपी ने 13 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार कांग्रेस के लिए आसान नहींं है. राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर ने बताया कि ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने अपने दो सांसदों को उतार कर कांग्रेस को घेरा है. इस इलाके में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का भी अपना प्रभाव है जो कि असर डालेगा.
मध्य भारत
भोपाल के आसपास के जिलों का ये इलाका हमेशा से बीजेपी का गढ़ रहा है. बीजेपी ने यहां से हर चुनाव में बहुत सीटें जीती है. कुल 36 में से 23 बीजेपी ने तो 13 कांग्रेस के खाते में गई थी. इस बार के ओपिनियन पोल में भी इस इलाके में बीजेपी को बढ़त मिली है, ये ही कारण है कि कि यहां मुकाबला बीजेपी कांग्रेस के बीच सीधा होता है. कोई तीसरी पार्टी का जोर यहां पर नहीं है. कमोबेश स्थिति में बदलाव नहींं होगा.
मालवा निमाड़
सरकार की चाबी हमेशा से मालवा निमाड के पास रही है. 66 सीटों वाले इस इलाके में पिछली बार बीजेपी ने 28 तो कांग्रेस ने 35 सीटों पर जीत हासिल की थी. इस कारण बीजेपी सत्ता में नहींं आ पाई. इस इलाके में बडी संख्या में आदिवासी सीटें हैं, जो कि कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है.
राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर ने कहा कि पिछली बार आदिवासी वोटर बीजेपी से नाराज थे और जयस ने भी बीजेपी को नुकसान पहुंचाकर कांग्रेस की बढ़त बनाई, लेकिन इस बार मुकाबला कांटे वाला है. बीजेपी को फिर यहां से सीटें जीतने की उम्मीद है.
संजय मिश्रा ने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस को कुछ सीटों पर बीएसपी एवं सपा से कडी टक्कर मिल रही है. बीजेपी और कांग्रेस ने जिन नेताओं को टिकट नहींं दिया तो उन्होंने इन पार्टियों का हाथ थामा है. इस कारण कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो गया हे. बीएसपी और सपा दोनों पार्टियों (कांग्रेस और बीजेपी) को कहीं पर भी नुकसान पहुंचा सकतीं है.
बता दें कि मध्य प्रदेश के हर इलाके में अलग-अलग तरीके से चुनाव लडा जाता है. मुद्दे और प्रचार के तरीके अलग होते हैं, लेकिन शुरुआत में इन इलाकों में जो बढ़त देखी गई है वो कुछ कम हो रही है. कितनी कम होगी और जीत हार का अंतर कितना होगा? ये तो तीन दिसंबर को विधानसभा चुनाव के परिणाम से ही पता लेगगा.
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