ग्लोबल परिदृश्य बेहद तेजी से बदल रहा है. चाहे दक्षिणइ चीन सागर हो या अफगानिस्तान हो, ये सब जियो-पॉलिटिक्स की देन है. इसलिए बेहद जरूरी है कि भारत अपनी रक्षा प्रणाली मजबूत करे. ये कहना है देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का, जो गुरूवार को इजरायल की मदद से तैयार की गई एमआरसैम मिसाइल सिस्टम के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के मौके पर राजस्थान के जैसलमेर में बोल रहे थे.
राजनाथ सिंह के मुताबिक, आज ग्लोबल परिदृश्य काफ़ी तेजी, और अप्रत्याशित तरीके से बदल रहा है. इसमें, देशों के आपसी समीकरण भी अपने हितों के अनुसार तेजी से बदल रहे हैं. चाहे साउथ चायना सी हो या हिंद महासागर क्षेत्र या फिर मध्य एशिया और अफगानिस्तान, हर जगह अनिश्चितता की स्थिति देखी जा सकती है. राजनाथ सिंह के मुताबिक, बदलते जियो-पॉलिटिक्स का प्रभाव ट्रेड, इकोनॉमी, पावर पॉलिटिक्स और उसी एवज़ में सुरक्षा पर भी देखा जा सकता है. ऐसी स्थिति में, हमारी सुरक्षा की मजबूती और आत्मनिर्भरता एक उपलब्धि न होकर एक जरूरत बन जाती है.
भारत ने इजरायल की मदद से तैयार की
गुरूवार को अपने जैसलमेर दौरे के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मीडियम रेंज सर्फस टू एयर मिसाइल एमआरसैम को वायुसेना के जंगी बेंडे में शामिल किया. मध्यम दूरी की जमीन से आसमान में वार करने वाली एमआरसैम मिसाइल भारत ने इजरायल की मदद से तैयार की है. इस मिसाइल का नेवल-वर्जन, बराक-8 भारतीय नौसेना पहले से इस्तेमाल करती आ रही है.
जैसलमेर एयरबेस पर एमआरसैम को भारतीय वायुसेना की 2204 स्कॉवड्रन में शामिल किया गया. इस स्कॉवड्रन को इनविंसिवल के नाम से भी जाना जाता है. वायुसेना ने एमआरसैम को 'गेम चेंजर' का नाम दिया है. कार्यक्रम के दौरान राजनाथ सिंह के अलावा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत, वायुसेना प्रमुख आरकेएस भदौरिया, डीआरडीओ चैयरमैन, डॉक्टर जी. सथीश रेड्डी और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्री (आईएआई) के वरिष्ट अधिकारी मौजूद थे.
मीडियम रेंज सर्फस टू एयर मिसाइल यानि एमआरसैम की रेंज 70-110 किलोमीटर तक की है और इसका इस्तेमाल एयर-डिफेंस के लिए किया जाता है. इस सुपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल आसमान में दुश्मन के ड्रोन, हेलीकॉप्टर और फाइटर जेट्स को मार गिराने के लिए किया जाता है. इजरायल की आईएआई यानि इजरायल एयरो इंडस्ट्री की मदद से डीआरडीओ और बीडीएल यानि भारत डायनेमिक्स लिमिटेड ने एमआरसैम मिसाइल को तैयार किया है. डीआरडीओ थलसेना के लिए भी इस एमआरसैम मिसाइल का निर्माण कर रही है और हाल ही में इसके सफल परीक्षण भी किए गए थे.
एक लॉन्चर में 08 मिसाइल होती हैं
वायुसेना को बीडीएल से एमआरसैम की कुल 18 फाइटिंग यूनिट मिलनी हैं. एक यूनिट में तीन बैटरी होती हैं. हर बैटरी में तीन लॉन्चर और एक लॉन्चर में 08 मिसाइल होती हैं. डीआरडीओ और बीडीएल का दावा है कि एमआरसैम से एक साथ 24 मिसाइल दागी जा सकती हैं, जो दुश्मन के 16 टारगेट को तबाह कर सकती हैं. फिलहाल वायुसेना को बीडीएल से एक फाइटिंग यूनिट मिली है.
भारत को पास फिलहाल शॉर्ट रेंज के लिए आकाश मिसाइल सिस्टम है और मीडियम रेंज के लिए एमआरसैम हओ गई है. लॉन्ग रेंज यानि 400 किलोमीटर के लिए भारत रूस से एस-400 मिसाइल खरीद रहा है, जो इस साल के अंत तक वायुसेना को मिलने की संभावना है.
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