कर्नाटक हाईकोर्ट ने भूखंड आवंटन घोटाले की जांच की आवश्यकता पर जोर देते हुए मंगलवार (24 सितंबर, 2024) को कहा कि अगर मुख्यमंत्री सिद्धरमैया सत्ता में नहीं होते तो इतना बड़ा लाभ नहीं मिल पाता. कोर्ट सिद्धरमैया की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. कोर्ट ने कहा कि हो सकता है कि अपराध में संलिप्तता के डर से हस्ताक्षर न किया हो या सिफारिश न की हो, लेकिन इसका लाभ उनकी पत्नी को मिला है, जैसा लाभ किसी आम व्यक्ति को नहीं मिल सकता था.


हाईकोर्ट ने घोटाले के सिलसिले में राज्यपाल थावरचंद गहलोत की ओर से दिए गए जांच के आदेश के खिलाफ मुख्यमंत्री सिद्धरमैया की याचिका खारिज कर दी. थावरचंद गहलोत ने मैसुरु शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) के भूखंड आवंटन घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच शुरू करने की अनुमति दी थी, जिसे सिद्धरमैया ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.


कोर्ट ने सिद्धरमैया की अर्जी पर कहा कि क्यों जांच नहीं होनी चाहिए ये मुझे समझ नहीं आ रहा है. जज ने कहा, 'ये बात स्वीकार करना मुश्किल है कि लाभार्थी जिसके लिए मुआवजा 3.56 लाख रुपये निर्धारित किया गया और वह 56 करोड़ रुपये हो गया, वह लाभार्थी मुख्यमंत्री का परिवार नहीं है. कैसे और क्यों मुख्यमंत्री के परिवार के लिए नियम बदले गए, इसकी जांच जरूर हैं, अगर इसको भी जांच की जरूरत नहीं है. अगर इस सबके बाद भी जांच की जरूरत नहीं है तो फिर ये मुझे समझ नहीं आ रहा कि किस केस में जांच होनी चाहिए. लाभार्थी याचिकाकर्ता का परिवार है और जो लाभ मिला है वो काफी ज्यादा है. अगर लाभार्थी कोई अजनबी होता तो कोर्ट याचिकाकर्ता के लिए बाहर का रास्ता खोल देता, लेकिन ऐसा है नहीं.'


कोर्ट ने कहा, '... न्यायालय का सुविचारित मत है कि इस मामले की जांच की आवश्यकता है, क्योंकि यदि याचिकाकर्ता सत्ता में नहीं होता, तो उसे इस तरह का व्यापक लाभ नहीं मिल पाता. ऐसा लाभ न तो कभी किसी आम आदमी मिला है, न ही भविष्य में मिल सकता है.' आदेश में कहा गया है कि यह सुनने में नहीं आया कि एक आम आदमी को इतनी जल्दी ये लाभ मिल गया हो और समय-समय पर नियमों में ढील दी गई हो.


जज ने कहा, 'इसलिए, हो सकता है कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम के तहत अपने खिलाफ अपराध की संलिप्तता की आशंका के मद्देनजर अपना हस्ताक्षर न किया हो, या कोई सिफारिश न की हो या कोई निर्णय न लिया हो, लेकिन लाभार्थी कोई अजनबी नहीं है. इन कृत्यों का लाभ याचिकाकर्ता की पत्नी को मिला है.'


हाईकोर्ट ने कहा, 'यह याचिकाकर्ता की ओर से खुद सार्वजनिक रूप से की गई खुली घोषणा है कि अगर एमयूडीए उन्हें 62 करोड़ रुपये देता है, तो वह संपत्ति वापस कर देंगे.' जज ने कहा कि अगर यह एक आम आदमी का मामला होता, तो वह जांच का सामना करने से नहीं कतराता. कोर्ट ने कहा, 'इसमें संदेह छिपा हुआ है, बड़े-बड़े आरोप लगे हैं और 56 करोड़ रुपये का लाभार्थी मुख्यमंत्री (याचिकाकर्ता) का परिवार है. इन पहलुओं से और उपरोक्त आधार पर विश्लेषण करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि जांच आवश्यक है.'


मुख्यमंत्री के खिलाफ राज्यपाल को शिकायत करने वाले कार्यकर्ता अब्राहम के खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में कोर्ट ने कहा कि व्हिसलब्लोअर को कभी-कभी ऐसे आरोपों का सामना करना पड़ता है. कोर्ट ने कहा कि तीसरे प्रतिवादी (अब्राहम) की आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, जबकि जो कुछ भी कहा गया है वह रिकॉर्ड के विपरीत है. उन्होंने कहा, 'तीसरे प्रतिवादी की आपराधिक पृष्ठभूमि का प्रस्तुतीकरण उस वास्तविक मुद्दे को ढक नहीं सकता, जिसे उसने राज्यपाल के समक्ष रखा है.'


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