उत्तर प्रदेश की वाराणसी एमपी-एमएलए कोर्ट ने 31 साल पहले कांग्रेस नेता अवधेश राय के मर्डर मामले में पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी को बीते सोमवार यानी 5 जून को उम्रकैद की सजा सुनाई है. इसके साथ ही उसे 1 लाख 20 हजार का जुर्माना भी देना होगा. 


पिछले 9 महीने में ये पांचवा केस है जिसमें मुख्तार अंसारी को सजा मिली है. इससे पहले हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने गैंगस्टर एक्ट के तीन और लखनऊ के जेलर पर हमले के एक मामले में सजा सुनाया था. इन मामलों में उसे पांच साल से लेकर दस साल तक की सजा सुनाई गई थी.


अवधेश राय हत्याकांड पहला मामला है जिसमें उसे आजीवन कारावास की सजा मिली है. मुख्तार को उम्र कैद की सजा से पहले 29 अप्रैल 2023 को सजा सुनाई गई थी. इसमें उसे 10 साल की जेल हुई है.


सजा सुनाये जाने के दौरान क्या हुआ 


माफिया मुख्तार अंसारी फिलहाल बांदा जेल में बंद है. सुनवाई के दौरान वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ा था. पहले तो मुख्तार ने खुद को बेगुनाह बताया, लेकिन उसके बाद उसने अपने वकील के जरिए अपनी उम्र का हवाला देते हुए सजा को कम किये जाने की गुहार भी लगाई. 


हालांकि सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता विनय कुमार सिंह ने मुख्तार के इस मांग का विरोध किया. कोर्ट ने लंबे आपराधिक इतिहास को देखते हुए उसपर कांग्रेस नेता अवधेश राय मर्डर मामले में धारा 148 आईपीसी के तहत 3 साल की सजा और 20 हजार का जुर्माने लगाया. 


इसके अलावा धारा 302 के तहत मुख्तार अंसारी को आजीवन कारावास और 1 लाख रुपए के जुर्माना अदा करने की भी सजा सुनाई गई. ये सारी सजाएं एक साथ चलेंगी. अगर किसी कारणवश वह जुर्माना अदा नहीं कर पाता है तो उसे छह महीने और जेल में बिताना होगा. 


दरअसल, सजा के साथ जब दोषियों पर जुर्माना लगाया जाता है, तो कैदी का परिवार को कोर्ट में पैसा जमा कराना होता है. यह रकम कोर्ट रजिस्टार के पास नियमित तिथि के भीतर जमा करना होता है. कई बार ऊपरी अदालत में अपील की वजह से परिवार यह रकम जमा नहीं कराता है.




क्या उम्रकैद की सजा 14 साल की होती है?


आम तौर पर लोगों के बीच ये धारणा है कि उम्रकैद की सजा 14 साल की होती है. लेकिन कानून में कहीं नहीं लिखा है कि उम्रकैद की सजा 14 साल की होती है. साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में साफ तौर पर कहा कि आजीवन कारावास का मतलब जिंदगीभर के लिए जेल होता है. 


योगी राज में 5 मामलों में मिली सजा, 22 विचाराधीन


पिछले चार दशकों से अपराध कर रहा पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी को पिछले 9 महीने में 5 मामलों में सजा मिल चुकी है. इससे पहले इस नाम से न सिर्फ पुलिस ही बल्कि सीबीआई भी डरती थी. उदाहरण के तौर पर जब सीबीआई को विधायक कृष्णानंद राय के मर्डर की जांच का आदेश मिला तो सीबीआई ने इस जांच को करने से मना कर दिया था. 


सीबीआई ने एक चिट्ठी लिखकर भेजी थी जिसमें कहा था कि, 'उत्तर प्रदेश में सुरक्षित नहीं हैं, जांच नहीं कर पाएंगे.' जिसके कारण इस केस को ही बाहर ले जाना पड़ा. हालांकि पिछले 6 साल में सरकार की सख्ती ने मुख्तार के साम्राज्य को लगभग ढहा दिया है. मुख्तार पर दर्ज कई मुकदमे पर अब तेजी से ट्रायल पूरा हो रहा है. क्योंकि सरकार और पुलिस अब गवाहों को डरने नहीं देती. मुख्तार अंसारी पर दर्ज 61 मुकदमों में अभी 22 मुकदमे विचाराधीन हैं.




अवधेश राय की हत्या का मामला


 3 अगस्त 1991, मुख्तार अंसारी ने वाराणसी के लहुराबीर इलाके में रहने वाले कांग्रेस नेता अवधेश राय की गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या के बाद अवधेश राय के भाई और पूर्व विधायक अजय राय ने वाराणसी के चेतगंज थाने में क्राइम संख्या 229/ 91 के तहत मुख्तार अंसारी, पूर्व विधायक अब्दुल कलाम, भीम सिंह, कमलेश सिंह और राकेश श्रीवास्तव उर्फ राकेश न्यायिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी. मुख्तार ने इस केस से खुद को बचाने के लिए कोर्ट से केस की पूरी डायरी ही गायब करवा दी थी. 


इस हत्याकांड में शामिल भीम सिंह फिलहाल गाजीपुर जेल में बंद हैं. आरोपी कमलेश सिंह और पूर्व विधायक अब्दुल कलाम की मौत हो चुकी है. इसके अलावा एक और आरोपी राकेश ने मामले में अपनी फाइल अलग करवा कर ली थी जिसका प्रयागराज सेशन कोर्ट में ट्रायल चल रहा है. 




मुख्तार के बाहुबली से नेता बनने की कहानी


मुख्तार अंसारी लगातार चार बार मऊ के विधायक रहे हैं. एक बार बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर विधायक बने, दो बार निर्दलीय मैदान में उतरे और जीत हासिल की और एक बार ख़ुद की बनाई पार्टी कौमी एकता दल से विधायक बने. 


उन्होंने छात्र रहते हुए ही अपनी राजनीति की शुरुआत कर दी थी लेकिन जनप्रतिनिधि बनने से पहले मुख्तार को एक दबंग या माफिया के रूप में जाना जाता था. 


साल 1988 में पहली बार मुख्तार अंसारी का नाम हत्या के एक मामले में आया था. हालांकि उस हत्याकांड में उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाया था, लेकिन इस घटना से मुख़्तार अंसारी चर्चा में आ गए. मुख्तार पर गाजीपुर और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के सैकड़ों करोड़ रुपए के सरकारी ठेके नियंत्रित करने का आरोप है. साल 1990 के दशक में जमीन के कारोबार और ठेकों के कारण वह अपराध की दुनिया में एक चर्चित नाम बन चुका था.


उसने साल साल 1995 में राजनीति में कदम रखा. साल 1996 में वो मुख्तार ने मऊ सीट से पहली बार जीत हासिल की और विधानसभा के लिए चुने गए. उसी वक्त पूर्वांचल के और चर्चित माफिया गुट के नेता ब्रजेश सिंह से मुख्तार अंसारी के गुट के टकराव की ख़बरें भी चर्चा में रहती थी.


अंसारी का मुकाबला करने के लिए ही ब्रजेश सिंह ने बीजेपी नेता कृष्णानंद राय के चुनाव अभियान का समर्थन किया. जिसके परिणाम स्वरूप राय ने साल 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी को हरा दिया था.


साल 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई थी. उस वक्त मुख्तार अंसारी को मुख्य अभियुक्त बनाया गया. कृष्णानंद राय की हत्या के सिलसिले में उन्हें दिसंबर 2005 में जेल में डाला गया था, तब से वो बाहर नहीं आए हैं. उनके खिलाफ हत्या, अपहरण, फिरौती सहित कई आपराधिक मामले दर्ज हैं.


मुख्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल ने साल 2007 में बहुजन समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर लिया. उस वक्त बीएसपी प्रमुख मायावती ने मुख़्तार अंसारी को जनता के बीच ग़रीबों का मसीहा के रूप में पेश किया था. साल 2009 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर उसने वाराणसी में लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन वह उस चुनाव में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से 17,211 मतों के अंतर से हार गए.


2010 तक आते-आते मुख्तार के रिश्ते बहुजन समाज पार्टी से खराब होने लगे और उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. पार्टी से निकाले जाने के बाद तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफ़ज़ाल और सिबगतुल्लाह ने साथ मिलकर साल 2010 में खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया.