Mukhtar Ansari : 'डेढ़ बिस्वा जमीन' का वो किस्सा जिससे पैदा हुए माफिया मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह
Mukhtar Ansari Crime History: उत्तर प्रदेश का कुख्यात माफ़िया डॉन मुख़्तार अंसारी मौत की नींद सो चुका है. आख़िर उसके गुनाहों की दुनिया कैसे शुरू हुई, इस बारे में पूर्व DGP ब्रजलाल ने किताब लिखी है.
Mukhtar Ansari News: उत्तर प्रदेश के कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी का किस्सा खत्म हो चुका है. गुरुवार (28 मार्च) रात अस्पताल में हार्ट अटैक के बाद उसकी मौत हो चुकी है. गुनाहों की दुनिया के बेताज बादशाह रहे मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसके गुनाहों की गिनती खूब हो रही है.
गैंगस्टर से नेता बने मुख्तार अंसारी परिवार के पास गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट दशकों से थी जिसे 1985 में जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने छीन ली तो उन पर एक-47 से इतनी गोलियां चलीं की मौके से 500 खाली खोके बरामद किए गए थे. पूर्वांचल के इस खौफनाक अपराधिक इतिहास का समापन तो अब हो गया है लेकिन आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? चलिए आज हम आपको इस बारे में बताते हैं.
पिता के अपमान का बदला लेने के लिए रखा अपराध की दुनिया में कदम
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी ब्रजलाल ने मुख्तार अंसारी के एक कॉलेज स्टूडेंट से दुर्दांत अपराधी बनने तक के सफर पर किताब लिखी है. इस किताब को उन्होंने नाम दिया है 'डेढ़ बिस्वा जमीन'. आखिर यह डेड बिस्वा जमीन का मुख्तार अंसारी से कैसे नाता है, समझिए. वतन परस्ती के लिए जाने जाने वाले उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में मुख्तार अंसारी जैसे कई लोग थे जिन्होंने यहीं रहकर गुनाहों की अलग दुनिया बनाई, बसाई और तमाम हत्याकांड के जरिये अपराध की उस दुनिया को आबाद रखा. इस जिले का सैदपुर कोतवाली क्षेत्र के मुड़ियार गांव के ही रहने वाले थे साधु सिंह और मकनू सिंह. इन्होंने अपने चाचा रामपत सिंह और उनके तीन बेटों को बर्बर तरीके से मौत के घाट उतरा था. यह पूरा विवाद डेढ़ बिस्वा यानी करीब 5 बीघा जमीन को लेकर था. 80 के उस दशक में मुख्तार अंसारी कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ इलाके में दबंगई की शुरुआत कर चुका था.
इसी दौर में मोहम्मदाबाद से उसके पिता नगर पंचायत के चेयरमैन थे. इलाके में एक और प्रभावशाली शख्स था सच्चिदानंद राय. किसी बात को लेकर सच्चिदानंद और मुख्तार के पिता के बीच विवाद हो गया. सच्चिदानंद ने मुख्तार के पिता को भरे बाजार काफी भला बुरा कहा. इस बात की खबर जब मुख्तार को लगी तो उसने सच्चिदानंद राय की हत्या का फैसला कर लिया, लेकिन मोहम्मदाबाद में राय बिरादरी प्रभावशाली थी इसलिए मुख्तार के लिए उनकी हत्या कर देना आसान नहीं था. उसने अपनी साजिश को अंजाम देने के लिए साधु और मकनू सिंह से मदद मांगी. दोनों ने मुख्तार की पीठ पर हाथ रखा और सच्चिदानंद राय की हत्या हो गई. इसके बाद से मुख्तार अंसारी साधु और मकनू को आपराधिक गुरू मानने लगा.
राजनीतिक गुरुओं ने मांगी रंजीत सिंह की लाश
नए-नए अपराधी बने मुख्तार अंसारी के लिए अब वक्त आ गया था साधु और मकनू को गुरू दक्षिणा देने का. दोनों ने मुख्तार के सामने एक ऐसा प्रस्ताव रखा, जिसने पूरे पूर्वांचल में सबसे खौफनाक आपराधिक इतिहास की नींव तैयार कर दी. सैदपुर के पास मेदनीपुर के छत्रपाल सिंह और रंजीत सिंह दो भाई थे और दोनों दबंग थे, जिनसे साधु और मकनू को चुनौती मिल रही थी. वर्चस्व की जंग में अब कुर्बानी का वक्त आ गया था. इसलिए साधु और मकनू ने एक दिन मुख्तार को बुलाया और उससे कहा कि रंजीत सिंह की लाश मांगी. आपराधिक गुरुओं ने पहली बार कुछ मांगा था, लिहाजा मुख्तार इनकार नहीं कर सका.
रंजीत सिंह की हत्या के लिए मुख्तार ने जो तरीका अपनाया, वो फिल्मों से भी खतरनाक था. मुख्तार अंसारी ने रंजीत सिंह के घर के ठीक सामने रहने वाले रामू मल्लाह से दोस्ती गांठी. उसने रामू और रंजीत के घर की बाहरी दीवार पर सुराख बनवाई और एक दिन इन दोनों सुराखों के पार एक गोली चलाकर कर रंजीत की हत्या कर दी. यही अपराध की दुनिया में मुख्तार की दमदार एंट्री थी जो लगातार कई हत्याओं के साथ और प्रभावी होती चली गई थी.
बृजेश सिंह ने की अपराध गुरुओं की हत्या
जल्द ही इलाके में ये खबर फैल गई कि रंजीत की हत्या किसने की है और किसने कहने पर की. यानी अब मुख्तार और उसके गुरुओं साधु, मकनू का सिक्का गाजीपुर से वाराणसी तक जमने लगा. गिरोह का नाम था साधु मकनू गिरोह और मुख्तार अंसारी उसका गुर्गा था. बाद में साधु और मकनू की भी हत्या हो गई. रणजीत सिंह के बेटे बृजेश सिंह के गिरोह ने यह हत्या करवाई जिसके बाद इसी गिरोह का सरगना मुख्तार अंसारी बना जो उसके अपराध की पहली पायदान थी. बाद में बृजेश सिंह को पुलिस ने अरेस्ट कर जेल में डाल दिया था, जिसके बाद मुख्तार का पूर्वांचल में एकछत्र राज हो गया.