Mulayam Singh Yadav Death: मुलायम सिंह यादव का एक फैसला और वह मुस्लिम मतदाताओं के लिए सबसे पसंदीदा चेहरा बन गए थे. 30 अक्टूबर 1990 में जब उन्होंने पुलिस को अयोध्या में इकठ्ठा होकर विवादित बाबरी मस्जिद पर चढ़ने की कोशिश करने वाले कार सेवकों पर गोलियां चलाने का निर्देश दिया. इस घटना में करीब 30 से 35 लोगों की मौत हुई थी. उनके इस फैसले के बाद वह एक बड़े नेता और मुस्लिमों के चहीते बन गए थे. 


कई लोगों ने इस फैसले को लेकर उनकी निंदा भी की. यहां तक कि विरोधी उन्हें 'मुल्ला मुलायम' कहने लगे. एक तरफ वह उत्तर प्रदेश के 19 प्रतिशत मुस्लिम वोट के एकमात्र दावेदार बन गए थे तो दूसरी तरफ केंद्र और यूपी दोनों में भाजपा द्वारा जनता दल से समर्थन वापस लेने के बाद, मुलायम सिंह की सरकार गिर गई. 


पुलिस फायरिंग की घटना के ठीक दो साल बाद, कारसेवकों का एक और समूह बाबरी पर चढ़ गया और विवादित ढांचा तोड़ दिया गया. सीएम मुलायम ने मुसलमानों से सरकार में विश्वास बनाए रखने की अपील करते हुए कहा, "मस्जिद को नुक्सान नहीं पहुंचने देंगे. लाठीचार्ज के बाद कई कारसेवक तितर-बितर तो हुए, लेकिन मुट्ठी भर लोगों ने बाबरी के गुंबदों को तोड़ डाला. 


मुस्लिमों के समर्थन की ताकत 


राम मंदिर की राजनीति के बढ़ते ढोल की थाप में खुद को किनारे करने वाले मुस्लिम समुदाय के लिए, 1992 में मुलायम ने जिस समाजवादी पार्टी का गठन किया, वह उनकी पसंदीदा पार्टी बन गई. सपा को राज्य में 19 प्रतिशत मुस्लिम वोट के एकमात्र दावेदार के रूप में देखा गया, जिससे मुलायम को एक दुर्जेय मुस्लिम-यादव या 'एम-वाई' वोट बैंक बनाने में मदद मिली. मुलायम के लिए मुस्लिमों के समर्थन की ताकत ने उन्हें 1992 के बाद यूपी के अलावा पूरे देश के लिए जाना-माना नेता बना दिया. 


बसपा के समर्थन से बने दूसरी बार सीएम


माना जाता है कि मुस्लिम समर्थन ने 1993 के चुनावों में सपा को 109 सीटों तक पहुंचाया, जिसमें से उसने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसके बाद उन्हें बसपा के समर्थन से दूसरे कार्यकाल के लिए सीएम बनने में मदद मिली. उनके कई नारों ने भाजपा को बुरी तरह परास्त किया, जैसे- “मिले मुलायम, कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम." मुलायम ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल (2003-2007) तक पूर्ण मुस्लिम समर्थन जारी रखा. 


हिंसक गेस्ट हाउस घटना के खत्म हुआ गठबंधन 


हालांकि बसपा के साथ उनका गठबंधन एक हिंसक गेस्ट हाउस की घटना के साथ खत्म हो गया. हालांकि, दोनों पार्टियां इस घटना के बाद यूपी की सबसे शक्तिशाली पार्टियों के रूप में उभरीं. मुलायम ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल (2003-2007) तक पूर्ण मुस्लिम समर्थन जारी रखा, इस दौरान सपा ने 2004 के चुनावों में 39 सीटों का अपना सर्वश्रेष्ठ लोकसभा प्रदर्शन भी देखा. 


हालांकि, बाद में बसपा प्रमुख मायावती ने राजनेतिक चाल चलते हुए मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने और सपा के वोट काटने के लिए ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारना शुरू कर दिया, जिससे सपा के वोट बैंक में सेंध लगी. तब से बसपा को ही मुस्लिम वोट का हिस्सा मिलता आ रहा है. 


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