(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Mulayam Singh Yadav: दो खेमों में परिवार, अखिलेश के CM बनते ही विवाद... जिंदगी के आखिरी दौर में घर की ही लड़ाई सुलझाते रहे नेताजी
मुलायम सिंह यादव अपनी जिंदगी के आखिरी दौर में घर की लड़ाई को सुलझाने में लगे रहे थे. उनकी कोशिश थी कि घर में फूट न पड़े. उन्होंने शिवपाल और अखिलेश के बीच भी सुलह करवाई थी.
Mulayam Singh Yadav Death: मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर को निधन हो गया. 82 साल की आयु में नेताजी इस दुनिया को अलविदा कह गए. उनके निधन की खबर से पूरे देश में शोक की लहर है. राजनीति के पहलवान कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव बेहद कम उम्र में पॉलिटिक्स में आ गए थे. राजनीति में वे काफी ऊंचे मुकाम तक भी पहुंचे, लेकिन अपने आखिरी दौर में भी वे घर की लड़ाई ही सुलझाते रहे. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के घर में ही फूट पड़ गई.
दो खेमों में बंट गया परिवार
मुलायम सिंह यादव को अपने जीवन के अंतिम 6 सालों में बड़ा झटका लगा. यह झटका उनके लिए व्यक्तिगत था, क्योंकि परिवार के सदस्य ही राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते दो खेमों में बंट गए. नेताजी तीन बार 5 दिसंबर 1989 से 24 जनवरी 1991, 5 दिसंबर 1993 से 3 जून 1996 और 29 अगस्त 2003 से लेकर 11 मई 2007 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे. वह एकमात्र ऐसे नेता थे, जो यूपी विधानमंडल के दोनों सदनों में विपक्ष के नेता रहे.
यहां खास बात यह है कि अपने लंबे राजनीतिक सफर में उन्होंने भाइयों के साथ बेटे-बहू, चचेरे भाई, भतीजे-भतीती और यहां तक की पोते समेत परिवार के कई सदस्यों को राजनीतिक में एंट्री दिलवाई. उनके राजनीतिक करियर का निर्माण भी किया, लेकिन कई मौकों पर घर के इन्हीं सदस्यों में फूट भी दिखाई, जिसे मुलायम सिंह यादव हमेशा भरने की कोशिश करत रहे.
अखिलेश के CM बनते ही शुरू हुआ विवाद
2012 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने पहली बार उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत हासिल किया. यह वही समय था जब मुलायम सिंह यादव ने पार्टी की बागडोर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के हाथों में सौंप दी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार करते हुए उन्होंने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. परिवार में फूट की पहली कहानी यहीं से शुरू होती है. कहा जाता है कि अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव इसके खिलाफ थे.
इसके बाद, 2014 में शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) और रामगोपाल यादव (मुलायम के चचेरे भाई) के बीच भी मतभेद की खबरें सामने आने लगीं. इसके पीछे की वजह यह थी कि मुलायम ने 2014 के चुनाव में फिरोजाबाद सीट से रामगोपाल के बेटे अक्षय को मैदान में उतारा था, जबकि शिवपाल यादव अपने बेटे अक्षय के लिए टिकट चाहते थे. हालांकि, इसमें भी शिवपाल ने कथित तौर पर अखिलेश यादव का हाथ बताया.
मुलायम ने अखिलेश और शिवपाल को गले मिलवाया
तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कई फैसलों से चाचा शिवपाल यादव इत्तेफाक नहीं रखते थे. हालात ये हो गए कि मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को ही पार्टी का अध्यक्ष बना दिया. इसके बाद अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव से सभी जरूरी मंत्रालय छीन लिए. अब अखिलेश के पलटवार से शिवपाल यादव और गुस्से में आ गए और उन्हें सरकार और संगठन के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. यह समय मुलायम सिंह के लिए बेहद कठिन था. अपने भाई और बेटे के बीच यह विवाद देखकर नेताजी ने मोर्टा संभाला. उन्होंने अखिलेश के सभी फैसले रद्द कर भाई का इस्तीफा नामंजूर कर दिया.
इसके बाद मुलायम ने पार्टी दफ्तर में कहा कि शिवपाल यादव यूपी सरकार में मंत्री और प्रदेशाध्यक्ष बने रहेंगे. मुलायम सिंह ने एक पार्टी मीटिंग भी बुलाई और सभी नेताओं के सामने अखिलेश यादव को फटकार लगाई और शिवपाल यादव के योगदान को सराहा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैठक के आखिर में नेताजी ने शिवपाल यादव और अखिलेश यादव को एक दूसरे से गले भी मिलवाया.
फिर अलग हो गए शिवपाल और अखिलेश
हालांकि, बाद में शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया. इसके बाद कई मौकों पर शिवपाल और अखिलेश एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करते दिखाई दिए. इसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव आए और उस दौरान दोनों नेताओं के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ. विधानसभा चुनाव से पहले ही दोनों नेताओं के बीच सुलह हो गई और चाचा-भतीजे ने मिलकर चुनाव भी लड़ा, लेकिन अब फिर दोनों के रास्त लगभग अलग हो चुके हैं.
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