मंबई: एक ओर जहां देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है, तमाम सरकारी एजेंसियां लॉकडाउन पर अमल करवाने या जीवनावश्यक चीजों का इंतजाम करने में व्यस्त हैं तो वहीं कुछ लोग मौके का फायदा उठाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं.


कोरोना की वजह से जो लॉकडाऊन हुआ है उससे हम देख रहे हैं कि प्रकृति रीसेट मोड में आ गई है. डॉल्फिन मछलियां निडर होकर समंदर के किनारे तक आकर खेल रहीं है, कई जगहों पर जानवर बेपरवाह होकर सड़कों पर घूम रहे हैं. ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण कम हो गया है. कुल मिलाकर कोरोना ने हमें भले ही घर के भीतर कैद कर दिया हो लेकिन इसने पर्यावरण को अपना नुकसान ठीक करने का मौका जरूर दिया है.


एक तरफ जहां पर्यावरण का पुनर्उत्थान हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग हैं जो अब भी लालच के मारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आ रहे. जानकारी मिली कि कुछ लोग मुंबई के आरे के जंगल और संजय गांधी नेशनल पार्क के कुछ हिस्सों में बड़े ही सुनियोजित तरीके से पेड़ों को काट रहे हैं और उन्हें नष्ट कर रहे हैं. हमारे पास कुछ तस्वीरें आईं जिनमें दिखाई दे रहा है कि किस तरह हरे भरे आरे के बीच धीरे धीऱे छोटे छोटे मैदान बनते जा रहे हैं.


पहले पेडों को धीरे धीरे करके काटा जाता है और फिर उन्हें जला दिया जाता है. बताया गया कि एक बार जब एक जगह के पूरे पेड़ नष्ट हो जाते हैं तो वहां फिर स्लम माफिया झोपड़ी बना देते हैं. धीरे धीरे वहां पर पूरी झुग्गी बस्ती खड़ी हो जाती है. आगे चलकर स्लम माफिया जब किसी योजना के तहत सरकार झुग्गी में रहने वालों को घर देती है तो वे इसका फायदा उठाते हैं.


हमारे लिए ये बड़ी ही चौंकाने वाली जानकारी थी. जिस आरे में मेट्रो रेल लाईन का कार शेड बनाने को लेकर इतना बवाल हुआ, इतनी राजनीति हुई, इतने पर्यावरण प्रेमियों की गिरफ्तारी हुई वहां गुपचुप इस तरह से पेड़ों का काटा जाना बेहद गंभीर बात थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद तो मेट्रो शेड के लिये पेडों की कटाई रुक गई थी. उद्धव ठाकरे की सरकार ने शेड के निर्माण पर भी रोक लगा दी लेकिन आरे के दूसरे हिस्से में जो हो रहा था उसपर कोरोना की वजह से ज्यादा लोगों की नजर नहीं गई.


पेड़ों की कटाई को लेकर इस जानकारी की तस्दीक करने के लिये हम खुद आरे के जगंल में पहुंचे. आरे का जंगल मुंबई के पश्चिमी उपनगर गोरेगांव से सटा हुआ है. जिस जगह पर पेड़ों के काटे जाने की खबर मिली वहां तक वाहन नहीं जाते थे इसलिये हम पैदल ही वहां पहुंचे. हम जहां पर पहुंचे वहां बताया जाता है कि कुछ महीनों पहले तक कई सारे पेड़ हुआ करते थे लेकिन धीरे धीरे वे पेड़ गायब होते गये. हमने देखा कि कई पेड़ों के कटे हुए हिस्से के पास राख पड़ी हुई थी जो बता ही थी कि यहां कुछ जलाया गया है.


हमने उस जगह आसपास रह रहे लोगों से बातचीत करनी चाही. ज्यादातर लोग हमसे बात करने के लिये कतरा रहे थे लेकिन एक शख्स ने ये कहकर सफाई दी कि जो राख देख रहे हैं वो कचरा जलाने की वजह से है. पेड़ों को काटकर नहीं जलाया गया है. ये आसपास की इमारतों में रहने वाले लोगों की साजिश है कि वो पेड़ों की कटाई का आरोप लगा रहे हैं.


एक शख्स का ये कहना था कि पेड़ों की कटाई का आरोप गलत है लेकिन वापस लौटते वक्त एक स्थानीय निवासी हमारे पास आया और उसने सारा सच बता दिया. उसका कहना था कि इलाके में स्लम माफिया का दबदबा है. वही लोग पेड़ कटवाते हैं औऱ उनकी जगह पर झोपड़े बनवाते हैं.


हमने इस रिपोर्ट की जानकारी मुंबई की मेयर किशोरी पेडणेकर को दी. उन्होंने कहा कि वे तुरंत आरे जंगल से जुडी एजेंसियों से संपर्क करके पेड़ों की कटवाई रुकवाएंगीं और मामले की जांच करवाएंगी. किशोरी पेडणेकर की ओर से निर्देश मिलने के बाद वन विभाग हरकत में आया और इस जगह जाकर जांच शुरू की जहां से पेड़ काटे जावने की शिकायत आई थी.


पेड़ काटने के काम इसके बाद पूरी तरह से रुक गया और आरे जंगल का एक हिस्सा नष्ट होने से बच गया. आरे को मुंबई का फेफड़ा माना जाता है. इस जंगल में कई प्रजाति के पेड़ पौधे और जानवर और पक्षी रहते हैं.


कोरोना जैसी महामारी तो आकर चली जायेगी लेकिन पर्यावरण को जो नुकसान पहुंच रहा है उसके परिणाम लंब वक्त तक हमारी दुनिया देखेगी. दुनिया में जिस तेजी के साथ जल वायु परिवर्तन हो रहा है वो इसी का नतीजा है.