मुंबई की एक अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम (डीवी अधिनियम) के एक आरोपी को बरी कर दिया. इस दौरान कोर्ट ने अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि एक पति द्वारा अपनी मां को समय और पसा देना पत्नी के खिलाफ घरेलू हिंसा नहीं मानी जा सकती.
Bar and bench की रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई के दिंडोशी में एडिशनल सेशन जज आशीष अयाचित ने डीवी अधिनियम के तहत अपने पति के खिलाफ अपराध का आरोप लगाने वाली पत्नी की शिकायत को खारिज करने वाले एक मजिस्ट्रेट के फैसले को बरकरार रखा. शिकायत पर फैसला सुनाते हुए सेशन कोर्ट ने कहा, पूरे सबूतों से पता चला कि महिला की शिकायत यह है कि उसका पति अपनी मां को समय और पैसा दे रहा है, जिसे घरेलू हिंसा नहीं माना जा सकता.
दरअसल, महिला की शादी मई 1992 में हुई थी. उसका जनवरी 2014 में उसके पति के साथ तलाक हो गया था. महिला ने पति और ससुराल वालों पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी. महिला ने दावा किया था कि 1996 से 2004 तक जब उसका पति विदेश में नौकरी कर रहा था, तब वह अपनी मां को पैसा भेजता था.
महिला ने सुरक्षा, निवास और आर्थिक राहत की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट कोर्ट में याचिका दायर की थी. महिला ने मजिस्ट्रेट के पास दर्ज शिकायत में कहा था कि वह अपने पति के साथ अलग रहती है. इसके बावजूद उसका पति अक्सर अपनी मां से मिलने जाता था और उसकी मां उससे पैसे की मांग करती है. इसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया और इसके बाद उसने सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सेशन कोर्ट ने कहा कि महिला ने शिकायत तब दर्ज कराई, जब उसके पति ने तलाक की मांग करने वाला नोटिस भेजा.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महिला ने NRE खाते से पैसे निकाले और अपने नाम पर फ्लैट खरीदा. उसने बहुत अस्पष्ट आरोप लगाए जो विश्वास या सच्चाई से प्रेरित नहीं हैं. महिला ने आरोप लगाया कि उसका पति उसे कोई वित्तीय मदद नहीं दे रहा था, जबकि उसने खुद स्वीकार किया है कि उसने खाते से राशि निकाली है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि महिला अपने ऊपर हुई कथित घरेलू हिंसा को साबित करने में विफल रही है.