मुंबईः कोरोना संकट में लॉकडाउन की वजह से मुंबई के डब्बे वालों की रोजी-रोटी छिन गई है. 5 महीनों से उनके पास कोई रोजगार नहीं. लोकल ट्रेन बंद हैं. दफ्तर बंद हैं, इसलिए उनके खाने के डब्बे पहुंचाने का काम पूरी तरह से ठप हो गया है और इसी के साथ ठप हो गई है उनकी निजी जिंदगी और रोजगार.
वे कैसे अपने परिवार का खर्च चलाएं, उनकी समझ में नहीं आ रहा. वे बार-बार महाराष्ट्र सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनकी ओर ध्यान दिया जाए और उन्हें एक अनुदान के रूप में राशि दी जाए, ताकि वह अपना परिवार और जीवन चला सके.
मुंबई के डब्बा एसोसिएशन ने मांग की है कि सरकार या तो लोकल ट्रेन चलाये ताकि डब्बे वाले खाने का डब्बा पहुंचाने का काम शुरू कर सकें और अपनी रोजी-रोटी को पटरी पर ला सके या सरकार सभी डब्बे वालों को हर महीने ₹3000 की अनुदान राशि देना शुरू करें, ताकि वह अपने परिवार का भरण- पोषण कर सकें. उनके सामने स्थिति बेहद गंभीर हो चुकी है, अब तमाम डब्बे वाले खाने को मोहताज हो रहे हैं क्योंकि उनके सामने अब और कोई दूसरा चारा नहीं है और ना ही रोजगार.
डब्बे वालों के एसोसिएशन के मुताबिक 19 मार्च 2020 के बाद जब से लॉकडाउन लगा और लोकल ट्रेनें बंद हुईं, उनका रोजगार पूरी तरह से छिन चुका है.डब्बे वालों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है. मुंबई की लोकल ट्रेन बंद होने की वजह से उन्हें जो डब्बे पहुंचाने का काम मिल रहा है, वह उसे कर नहीं पा रहे है. सरकार से महाराष्ट्र सरकार से वह बार-बार गुहार भी लगा चुके हैं कि उनकी स्थिति पर ध्यान दें.
मुंबई के डब्बे वाले पूरी दुनिया में अपने मैनेजमेंट के लिए जाने जाते हैं. जिस तरह से वह लोकल ट्रेन के जरिए और अपने कोआर्डिनेशन के बल पर मुंबई के कोने-कोने में मौजूद दफ्तरों में खाने के डब्बे समय पर पहुंचाते हैं और फिर वही डब्बे उनके ग्राहकों के घर पर पहुंच जाते हैं. मुंबई के यह डब्बे वाले किस तरह से काम करते हैं और कैसे टाइम मैनेजमेंट का इस्तेमाल करते हुए समय पर लोगों के खाने का टिफिन उनके दफ्तरों तक पहुंचाते हैं, यह एक दुनिया में मिसाल है. लेकिन लॉकडाउन के संकट ने इन डब्बे वालों का मैनेजमेंट पूरी तरह से बिगाड़ दिया है.
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