Doctor Maria Ejaz Ahmed Success Story: मुंबई के नागपाड़ा की रहने वाली डॉक्टर मारिया एजाज अहमद (Maria Ejaz Ahmed) जीवन के कड़वे अनुभवों और झटकों के बीच होम्योपैथी परीक्षा 2022 में दो स्वर्ण पदक जीतकर सुर्खियों में हैं. उनका अनुभव और कामयाबी की कहानी लोगों को प्रेरित कर रही है. डॉक्टर मारिया ने एबीपी न्यूज के साथ अपने अनुभवों का साझा किया है.


मारिया को सबसे बड़ा झटका कोरोनाकाल के दौरान लगा था, जब उन्होंने अपनी मां को हमेशा के लिए खो दिया. मारिया के मुताबिक, आज वह जो कुछ भी हैं, अपनी मां की बदौलत हैं और उन्हीं का काम आगे बढ़ा रही हैं.


दो स्वर्ण पदक जीते


मारिया के अनुसार, मई 2021 में जब वह पोस्ट-ग्रेजुएट परीक्षा की तैयारी कर रही थीं, तब उनकी मां फरजाना मध्य मुंबई के भीड़भाड़ वाले नागपाड़ा इलाके में क्लीनिक चलाया करती थीं. डॉक्टर फरजाना फिजिशियन थीं लेकिन दूसरों के इलाज के दौरान वह कोविड-19 से संक्रमित हो गईं और इसी कारण उनकी मौत हो गई.


इस कठिन परिस्थिति से गुजरने के बाद मारिया ने खुद को काफी कमजोर पाया लेकिन निराशाजनक और कठिन परिस्थितियों के बावजूद, नागपाड़ा की इस लड़की ने अपनी प्यारी मां को खोने की त्रासदी से अपने शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित नहीं होने दिया. मारिया ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (MUHS), नासिक की ओर से आयोजित एमडी (होम्योपैथी) परीक्षा, 2022 में भाग लिया और दो स्वर्ण पदक जीते.




अपनी मां के रूप में खुद को देखना चाहती हैं मारिया


डॉक्टर मारिया अहमद अब नागपाड़ा में अपना क्लीनिक चलाती हैं. मारिया ने अपनी कहानी एबीपी न्यूज को बताते हुए कहा कि उन्हें किसी निजी या सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल सकती थी लेकिन वह अपनी मां की यादों को फीका नहीं पड़ने देना चाहती थीं. मां ने एक प्रतिष्ठा बनाई थी और अपने पेशेंट के बीच बड़ी सद्भावना की कमान संभाली थी. मारिया ने कहा कि वह मां के अच्छे काम को आगे बढ़ाना चाहती हैं और लोगों की नजर में खुद को अपनी मां की बेटी के रूप में देखना चाहती हैं.


मां को खोने के बाद ऐसी निभाई जिम्मेदारी


मारिया ने अपने दर्दनाक दिनों और रातों को याद करते हुए बताया के उनके पत्रकार पिता एजाज अहमद और कानून के छात्र भाई तल्हा भी काफी कमजोर हो गए थे, जब यह हादसा हुआ. मारिया ने कहा कि उन्होंने हार नहीं मानी. मां के देहांत के बाद क्लिनिक वह जाने लगीं, घर का काम करने लगीं और पिता और छोटे भाई का ध्यान भी रखने लगीं. मारिया ने बताया कि वह अपने माता-पिता की सबसे बड़ी संतान हैं, इसी कारण से उन्हें पूरे जीवन लाड़-प्यार मिला और जब तक उनकी मां थीं, उन्होंने रसोई घर में प्रवेश करने की अनुमति नही दी क्योंकि मां चाहती थीं कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें.




पिता बोले- बेटी ने संभाला


सदमे और दर्द से बाहर आकर मारिया ने चीजों को नियंत्रण में लिया. मारिया ने बताया, "मेरे पिता सदमे में थे और मेरा भाई पूरी तरह टूट चुका था. उन्हें सहारे की जरूरत थी." मारिया के पिता अहमद ने कहा, "मेरा दिल टूट गया था लेकिन मारिया थी जिसने मुझे उम्मीद दी थी. उसने चीजों को संभाला और मुझे अपना काम फिर से शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया. वह एक बहादुर लड़की है. मारिया अपनी मां के इतने करीब थी कि बड़ी होने के बाद भी अपनी मां के साथ सो जाती थी. मां और बेटी एक दूसरे के बेहद करीब थीं. अकेलेपन ने मुझे मार डाला होता लेकिन मारिया ने हमारी दुनिया को फिर से खुशियों से भर दिया."


मां के नक्शेकदम पर डॉ. मारिया


मारिया ने सीएमपी अंधेरी में अपनी बीएचएमएस की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ पूरी की और दो स्वर्ण पदक भी जीते. फिल्हाल वह गुरुमिश्री होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हैं. आज मारिया एमडी होम्योपैथी पीडियाट्रिशियन है और अपनी मां के कदमों पर चलकर डॉक्टर बनकर लोगों की मदद कर रही हैं.


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