मुंबई: पुलिस ने एक ऐसे गैंग का पर्दाफाश किया है जिसके सदस्य हर महीने मुंबई में 4 टन गांजे की सप्लाई करते थे. मुंबई क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट कमिश्नर ऑफ पुलिस मिलन भारंबे ने बताया कि एंटी नारकोटिक्स सेल की घाटकोपर यूनिट को सूचना मिली थी. घाटकोपर यूनिट ने विक्रोली के पास मुंबई ठाणे हाईवे पर जाल बिछाकर एक ट्रक का पीछा किया. जांच में पाया गया कि अंदर नारियल भरा हुआ था और आरोपियों ने नारियल के नीचे कैविटी में 1800 किलोग्राम गांजा छुपा रखा था.


बरामद गांजे की बाजार में कीमत साढ़े तीन करोड़ रुपए होने का अनुमान है. अवैध कारोबार के मामले में पुलिस ने अबतक आकाश यादव और दिनेश सरोज नाम के दो लोगों को गिरफ्तार किया है. ये दोनों ट्रक में गांजे के साथ मौजूद थे. यादव के खिलाफ अलग-अलग पुलिस स्टेशन में तीन मामले दर्ज हैं. भराम्बे ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला कि ये आरोपी हर महीने महाराष्ट्र में 6 टन गांजा सप्लाई करते थे और 4 टन गांजा सिर्फ मुंबई में बेची जाती थी. पुलिस को इस मामले में अब संदीप सातपुते और लक्ष्मी प्रधान नाम के शख्स की तलाश है. सातपुते भिवंडी इलाके में एक गोडाउन का मालिक है और ठाणे के लुइस वाड़ी इलाके में रहता है. आरोप है कि 5 साल से सातपुते गांजा की सप्लाई करता आ रहा है.


कैसे होती थी गांजे की सप्लाई?


भारंबे ने बताया कि सातपुते गांजे की खेप अपने गोडाउन में छुपाता था और फिर वहां से डिस्ट्रीब्यूट करता था. आरोपी हर खेप के लिए एक नए ट्रक और ड्राइवर का चयन करता था. ट्रक भाड़े पर लेते वक्त बताता था कि उसे आंध्र प्रदेश से नारियल की डिलीवरी लेनी है. इसके बाद खाली ट्रक आंध्र प्रदेश के बॉर्डर तक जाता और वहां लक्ष्मी प्रधान के लोग ट्रक ड्राइवर और सहयोगी को होटल में रोक लेते. उनका मोबाइल लेकर ट्रक को खुद चलाते हुए किसी अनजान जगह पहुंचाते. ट्रक की कैविटी में गांजा छुपाया जाता था और पहचान मिटाने के लिए गांजे के ऊपर नारियल बिछा दिया जाता. शुरुआती जांच में पता चला है कि गांजा उड़ीसा राज्य से आता था. फिर यह हैदराबाद, पुणे और सोलापुर के रास्ते मुंबई पहुंचाया जाता था.


नक्सली करते हैं गांजे की खेती?


आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा के जंगलों में नक्सली गांजे की खेती करते हैं. इसके लिए ऐसी जगहों का चयन किया जाता है जहां किसी की पहुंच आसान न हो. इसके अलावा पहाड़ों पर सबकी नजरों से छिप कर गांजे की खेती की जाती है. उन्हें पैसा कमाने और अपनी मुहिम चलाने के लिए खेती का सहारा लेना पड़ता है. उड़ीसा पुलिस ने भी कई कार्रवाई कर नक्सलियों के गांजे की खेती को ध्वस्त किया है. इसके बावजूद नक्सलियों की तरफ से खेती का सिलसिला जारी है. लक्ष्मी प्रधान 1 किलो गांजे के लिए लगभग 8 हजार रुपये खर्च करता था. जिसे सातपुते जैसे सप्लायर को लगभग 12 से 15 हजार रुपए में बेचता. सप्लायर मादक ड्रग्स को बाजार में लगभग 20 हजार रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा करते थे.


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