Mumbai Crime Branch: मुंबई पुलिस के क्राइम ब्रांच की साइबर सेल (Cyber Cell) ने एक अंतरराज्यीय गैंग का खुलासा किया है जो मुंबई के करोड़पति लोगों को अपना निशाना बनाता था. कंपनी के मालिक, सीईओ, नामी कंपनी के सीएफओ को टारगेट करने वाली ठगों की टोली के खिलाफ सिर्फ मुंबई और नवी मुंबई में 16 मामले दर्ज हैं.
 
चौंकाने वाली बात ये है की सभी आरोपी हाई डिग्री होल्डर हैं जिसमें आईआईटी अहमदाबाद के इंजीनियर, एमबीए, एमसीए, मैकेनिकल इंजीनियर, होटल मैनेजमेंट पढ़े हुए आरोपी शामिल हैं. साइबर फ्रॉड करने वाले इन शातिर पढ़े-लिखे आरोपियों सलाखों के पीछे हैं. मुंबई पुलिस की साइबर सेल की विशेष टीम की गिरफ्त में आया जॉन डेविड होटल मैनेजमेंट ग्रेजुएट, नंदकुमार चंद्रशेखर पढ़ाई में एमसीए, पवाथरानी पार्थ सारथी पढ़ाई में ऐमबीए, अयैप्पन मुरूगसेन मैकेनिकल इंजीनियर प्रेमसागर रामस्वरूप स्टूडेंट है और एक फरार आरोपी आशीष रवींद्र नाथन जो आईआईटी अहमदाबाद से इंजीनियर है.


गैंग के पकड़े जाने से 16 केस सुलझे


अब जब एक गैंग में इतने पढ़े-लिखे शातिर जुड़ जाए तो निशाना भी बड़ा होता है. इस गैंग के पकड़े जाने से मुंबई में साइबर अपराध के ऐसे 16 गुनाह के केस सुलझा लिए जिसके लिए मुंबई पुलिस साइबर सेल दिन रात इनके ठगी के तरीके को समझने में पसीना बहा रही थी. मुंबई पुलिस के साइबर सेल के डीसीपी डॉ. बलसिंह राजपूत ने बताया यह गैंग टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट और क्रिएटिविटी का अनोखा शातिर ग्रुप है. ये गैंग बेहद शातिर तरीके से उन पैसे वाले लोगों को निशाना बनाता था जो खुद कंपनी के मलिक या किसी बड़े पद पर नौकरी करते हो. गैंग के सभी सदस्यों को एक कॉर्पोरेट कंपनी की तरह काम सौंपे गए थे. अपने-अपने काम में अब माहिर खिलाड़ी हैं.


डीसीपी डॉ. बलसिंह राजपूत ने बताया, 



  • इस गैंग का एक शख्स उन अमीरों की लिस्ट निकालता था जो इनके टारगेट बनते थे. मुंबई में जो लोग नई कार खरीदते थे उनका डिटेल इनके पास आ जाता था. सेल्स या मार्केटिंग के लोगों से मिलीभगत से यह जानकारी इकट्ठा करते थे. 

  • दूसरा शख़्स सिटी बैंक का मुफ्त डिनर्स क्लब कार्ड देने का लालच देता था. जो झांसे में आ जाता उसे एक लिंक भेजकर उसका डेटा हैक कर लेता था. 

  • इतना ही नहीं अगर टारगेट आईफोन इस्तेमाल करता था तो उसे मुफ्त एंड्राइड फोन भी महज दो घंटे में उपलब्ध कराया जाता था. जिसे दो घंटे में पोर्टर के जरिए टारगेट तक पहुंचाया जाता था. एंड्राइड फोन देने के पीछे मकसद यह रहता था कि कार्ड वेरिफिकेशन के नाम

  • पर सभी जानकारियां हासिल की जा सकें. एंड्राइड फोन में पहले से दो ऐसे ऐप होते थे जिससे टारगेट को ओटीपी या बैंक मैसेज नहीं मिलते थे. 

  • जिस समय टारगेट अपना सिम कार्ड आईफोन से एंड्राइड में लगाता उसी समय गैंग का पहले से तैयार एक सदस्य तनिष्क ज्वैलरी या रिलायंस डिजिटल से लाखों रुपये की ऑनलाइन खरीददारी कर लेता. टारगेट या पीड़ित के क्रेडिट कार्ड से लाखों रुपए की ख़रीद दारी हो जाती. 

  • ऑनलाइन पेमेंट होने के बाद गैंग का एक शख्स डिलीवरी लेने जाता और तनिष्क ज्वैलरी से ज्वैलरी लेकर सोनार को बेच देता. रिलायंस डिजिटल से इलेक्ट्रॉनिक सामान लेकर किसी अन्य को बेच देता. 

  • अब गैंग के बैंकर का रोल सामने आता है. गैंग में एक शख्स को पैसे का लेन देन का काम सौंपा गया है. ठगी के पैसे को एक अकाउंट से दूसरे, दूसरे से तीसरे अकाउंट में ट्रांसफ़र किया जाता था. 

  • गैंग का मास्टरमाइंड पैसों को कैश जमाकर सबके हिस्से को उन तक बांट देता था. 

  • यह जानकार हैरानी होगी कि इस गैंग ने ठगी के लिए अलग-अलग नाम के 1600 सिम कार्ड का इस्तेमाल किया जिसे हरियाणा का सदस्य उपलब्ध कराता था. 


डीसीपी डॉ. बलसिंह राजपूत ने बताया, अब तक कुल 5 आरोपी इस मामले की गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इनमें से एक आरोपी गुजरात के अहमदाबाद, एक हरियाणा, 3 तमिलनाडु, एक को उत्तर प्रदेश से गिरफ्तार किया गया. मास्टरमाइंड अहमदाबाद से है अब तक इस ठगी में 1600 से ज्यादा सिमकार्ड इस्तेमाल किया जा चुका हैं. केस का मास्टरमाइंड आशीष रवींद्र नाथन है जिसने पहला गुनाह 19 साल की उम्र में साल 2009 में किया था तब उसे पकड़ा गया था जिसके बाद उसने गैंग बना लिया. नई गैंग से अब तक करोड़ों रुपए की ठगी कर चुका है. मुंबई पुलिस ने करीब चार लाख कैश, कार, मोबाइल, बिटकॉइन में निवेश किए गए सिंगापुर डॉलर को जप्त किया है.


मुंबई पुलिस अब ये पता लगाने में जुटी है कि यह लोग कैसे पता लगाते थे की विक्टिम ने नई कार खरीदी है? कितने लोगों के साथ इस तरह की ठगी की है और मुंबई के अलावा कहा-कहा ठगी को अंजाम दिया है?