मुंबई: मुंबई में समंदर के बीचों बीच बनाया जाने वाला छत्रपति शिवाजी का स्मारक विवादों में फंस गया है. जबसे स्मारक का बनाया जाना तय हुआ है तबसे लगातार ये एक के बाद एक कई विवादों में फंस गया है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी स्मारक के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है. स्मारक का शिलान्यास पीएम मोदी ने किया था.
छत्रपति शिवाजी का महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश के इतिहास में भी एक अहम और सम्मानजनक स्थान रहा है. उन्ही को समर्पित एक स्मारक बनाने की योजना महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसपी सरकार ने 2008 में बनाई थी. साल 2016 में राज्य की बीजेपी सरकार ने योजना का खांका तैयार किया और स्मारक बनाने की लागत के तौर पर 3600 करोड़ रुपये मंजूर किये गये. गुजरात के केवडिया में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा के बाद विश्व की दूसरी सबसे ऊंची प्रतिमा शिवाजी की लगाई जानी है. प्रतिमा की लंबाई 696 फुट की होगी और इसे मुंबई के गिरगांव चौपाटी के पास एक टापू पर लगाया जायेगा. स्मारक पर सहेज कर रखने के लिये महाराष्ट्रभर की नदियों का पानी और शिवाजी के किलों की मिट्टी लाई गई. साल 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने टापू पर जाकर स्मारक का शिलान्यास भी किया. महाराष्ट्र सरकार इस टिकाने को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करना चाहती है. स्मारक पर एक मोटरबोट के जरिये पहुंचा जा सकेगा. इस टापू पर एक हैलीपेड, म्यूजियम और एक थिएटर भी बनाया जायेगा.
छत्रपति शिवाजी के स्मारक पर काम शुरू होते ही इसको लेकर विवाद भी शुरू हो गया. सबसे पहला ऐतराज कोली समुदाय के मच्छीमारों ने जताया. उनका कहना है कि समुद्र में स्मारक बनाये जाने से उनके व्यवसाय पर असर पड़ेगा और उन्हें मछलियां नहीं मिलेंगीं. जिस जगह पर स्मारक प्रस्तावित है वो मछलियों और केकड़ों के प्रजनन का इलाका है. अपना विरोध जताने के लिये कोली समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन भी किया. छत्रपति शिवाजी के स्मारक का विरोध एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने भी किया. ठाकरे ने कहा कि पहले से ही छत्रपति शिवाजी की इतनी सारी प्रतिमाएं हैं तो फिर एक और प्रतिमा बनाकर क्या हासिल होगा. इस स्मारक पर करोड़ों रुपये बर्बाद करने के बजाय उसे शिवाजी के खस्ताहाल किलों की मरम्मत पर खर्च किया जाना चाहिये. महाराष्ट्र में 300 किले हैं उनमें चंद को छोड़कर ज्यादातर की हालत खराब है.
साल 2017 में मुंबई के पर्यावरण प्रेमियों ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को खत लिखकर स्मारक के प्रति अपना विरोध जताया. इन पर्यावरण प्रेमियों के मुताबिक स्मारक के बनाये जाने से टापू के पास मौजूद जीवित कोरल को नुकसान पहुंचेगा और समुद्री जीव जंतु इससे प्रभावित होंगे. उन्होंने स्मारक के निर्माण को Coastal Regulatory Zone के नियमों के खिलाफ बताया.
इस बीच अक्टूबर 2018 में एक हादसे की वजह से भी ये स्मारक विवाद में आ गया. टापू पर भूमिपूजन के लिये जो मोटरबोट जा रहीं थीं, उनमें से एक मोटरबोट समंदर में पलट गई. उस हादसे में एक शख्स की मौत हो गई. हादसे के बाद सवाल उठाया गया कि क्या मानसून के दौरान टापू पर जाना खतरनाक नहीं हो जायेगा.
इस बीच स्मारक को लेकर एक और विवाद उस वक्त खड़ा हो गया जब स्मारक समिति के अध्यक्ष विनायक मेटे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मेटे बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिव संग्राम के प्रमुख हैं और साल 2015 में देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें स्मारक समिति का अध्यक्ष बनाया था. मेटे का कहना है कि महाराष्ट्र की नई ठाकरे सरकार उनसे सहयोग नहीं कर रही थी. प्रोजेक्ट की देरी के लिये उन्हें जिम्मेदार ना ठहराया जाये इसलिये उन्होने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
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