दक्षिण एशिया में जब बात मां की होती है तो लोकप्रिय संस्कृति में फिल्म दीवार के डायलॉग जुबान पर आ जाते हैं. ये संवाद शशि कपूर और अमिताभ बच्चन के बीच है. जो कुछ यूं हैं-
अमिताभ बच्चन: "आज मेरे पास बिल्डिंग है, प्रॉपर्टी है, बैंक बैलेंस है, बंगला है, गाड़ी है... क्या है तुम्हारे पास?"
शशि कपूर: "मेरे पास माँ है."
लेकिन जब बात फिल्म से ज़रा आगे बढ़कर शायरी में ग़ज़ल का रूप लेती है और मां का जिक्र छिड़ता है. खालिस प्यार की तर्जुमानी चाहिए तो फिर मुन्नवर राना की तरफ रुख करना पड़ता है. शायरी में मां की अज़मत को मुन्नवर ने जिस अज़मत और शान के साथ पेश किया है उसकी मिसाल हिंदू-उर्दू साहित्य में नहीं मिलती.
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई
मुन्नवर राना ने अपनी शायरी में हर मजूं पर शायरी की है और अपने फन और शैली से न सिर्फ शोहरत हासिल की है, बल्कि उस फन को बड़ी बुलंदी तक लेकर गए हैं. लेकिन अपने फन में उन्होंने जिस तरह से मां की हर खूबसूरती को पिरोया है, वो अपने आप में एक शाहकार है.
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मां से जुड़ा कोई ऐसा पहलू नहीं है, जिसका मुन्नवर राना ने बखान नहीं किया हो. न सिर्फ मां की अज़मत को सलाम किया है, बल्कि मां एक औलाद के लिए कितनी बड़ी ताकत होती है, उसे भी जिस अंदाज़ और फन की बुलंदी के साथ अपनी ग़ज़ल में गुनगुनाया है वो अपने आप में मिसाल है.
अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
मुन्नवर राना ने अपनी शायरी से न सिर्फ मां की शान में कसीदे गढ़े बल्कि मां की अज़मत, उसकी शान को कैसे बयान किया जाता है, उसका सलीका भी दिया. अपनी मां से कैसे मुहब्बत की जाती है, अपनी ग़ज़ल से वो तरीका बयान किया. हमें वो सबक़ पढ़ाया जिसके बिना हम अपनी मां को वो दर्जा नहीं दे सकते, जिसकी वह हकदार है. बल्कि मां की अज़मत को बयान करने के लिए प्रकृति से लड़ने का नया रूपक दिया.
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक
मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
मुन्नवर ने ही हमें बताया कि मां के साथ हमें कैसे सुलूक करना चाहिए. ये पता है कि मां हर मर्ज़ की दवा है, लेकिन मां के पास ममता है, उसका क्लेजा अपनी औलाद के दुख के वक्त बहुत कमजोर होता है, इसलिए ये सलीका सिखाया कि ऐसे वक्त में मां के साथ कैसे पेश आया जाता है. मां की ममता को बहुत ही शिद्दत के साथ दुनिया के सामने पेश किया.
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मां अपनी औलाद की फिक्र कैसे करती है. एक मां के लिए औलाद उसकी ममता कैसी होती है. कुछ वक्त के लिए उसका उससे बिछड़ जाना मां को कितना परेशान करता है, उसके शुक्रिए और बयान के लिए जज्बात को पेश करने का हुनर दुनिया ने मुन्नवर राना की जुबानी है जाना.
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
मां का साथ होना क्या मायने रखता है. अगर ये समझना हो और उसे उसके हक के मुताबिक हमें अपने जज्बात की तर्जुमानी करनी हो तो फिर लौटकर मुन्नवर राना के कदमों में जाना होगा और फिर उनके ही अश'आर गुनगनाने होंगे.
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ
माँ की उँगली थाम कर चलना बहुत अच्छा लगा
मां और बेटे की पाकीज़ा मुहब्बत और जज्बातियात के इर्द गिर्द शायरी में जो कलाम मुन्नवर राना ने पेश किए हैं, उसकी मिसाल बहुत कम है. ये उनके ही कलम का जोर है जहां से मां की ममता पर इतने बेहतरीन अश'आर निकले. इसलिए मुन्नवर राना ने अपने एक शेर में अपने फन, शायरी और ग़ज़ल के हवाले से भी मां को याद किया है.
तेरी अज़मत के लिए तुझको कहां पहुंचा दिया
ऐ ग़ज़ल मैंने तुझे नज़दीक मां पहुंचा दिया.