नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के वाराणसी की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में अजीबोगरीब मामला सामने आया है. यहां संस्कृत पढ़ाने वाले फिरोज नाम के एक मुस्लिस शिक्षक का विरोध हो रहा है. फिरोज का कहना है जब वो संस्कृत पढ़ रहे थे तब उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव या विवाद नहीं हुआ. लेकिन जैसे ही मैंने पढ़ाने का फैसला किया मैं मुस्लिम हो गया. बता दें कि साल 2018 में जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से उन्होंने पीएचडी की थी जहां वो संस्कृत पढ़ने वाले अकेले छात्र थे.


पिछले हफ्ते बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने कुलपति के निवास के पास फिरोज की नियुक्ति रद्द करने को लेकर धरना भी दिया था. छात्रों की ओर से की जा रही मांग के बीच विश्वविद्यालय प्रशासन अपने फैसले पर अडिग नजर आ रहा है. विश्वविद्यालय का कहना है कि हमने 'सर्वसम्मति' से कुलपति की अध्यक्षता में एक "पारदर्शी" चयन प्रक्रिया के माध्यम से "सबसे योग्य उम्मीदवार" को नियुक्त किया है.


29 साल के फिरोज जयपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम के गांव बगरू के रहने वाले हैं. यह गांव प्राकृतिक डाई बनाने के लिए मशहूर है. फिरोज ने बताया कि जब मैंने जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में शास्त्री (स्नातक) डिग्री के लिए एडमीशन लिया तो उस वक्त मैं अकेला मुस्लिम छात्र था.


राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान प्राचीन और आधुनिक भाषाओं और साहित्य की शिक्षा देने वाला संस्थान है जिसके देशभर में जयपुर समेत 13 कैंपस हैं. फिरोज बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त होने से पहले तीन साल तक राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर में गेस्ट टीचर थे.


इसी साल 14 अगस्त यानी संस्कृत दिवस पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने फिरोज को 'संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान' से सम्मानित किया था. इस समारोह में कुछ और भी संस्कृत के विद्वानों को अवार्ड दिए गए थे. बचपन से ही फिरोज की रुचि संस्कृत भाषा की ओर रही, उनके पिता रमजान खान गौरक्षा और पालन को बढ़ावा देने के लिए भाजन गाते थे.


फिरोज बताते हैं कि मेरे पिता भजन गाते थे और दो और बड़े भाइयों का रुझान भी संस्कृत की ओर था. मैं संस्कृत पढ़ना चाहता था, इसलिए कक्षा 2 में मेरा दाखिला गाँव के संस्कृत विद्यालय हुआ. इसी सकूल में मेरे भाई भी पढ़ने गए थे. उन्होंने बताया कि संस्कृत के कारण मेरी बौद्धिक वृद्धि हुई और मैं इसे और अधिक सीखने की ओर आकर्षित हुआ. उन्होंने बताया कि बगरू में संस्कृत स्कूल गांव की मस्जिद के बिल्कुल करीब है और इसमें कुछ मुस्लिम बच्चे भी पढ़ते हैं.


फिरोज कहते हैं कि गाँव में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था. वास्तव में तो यह कॉलेज में भी कोई मायने नहीं रखता था. मुझे अपनी धार्मिक पहचान के कारण कभी किसी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा. मैं अपने शिक्षकों का आभारी हूं, खासकर आरएसकेएस के प्रोफेसर राम कुमार शर्मा और हरीश चंद्र तिवारी जिन्होंने मुझे आचार्य (स्नातकोत्तर) में पढ़ाया. अपने पिता और दो बड़े भाइयों की तरह, फिरोज़ भी गाना पसंद करते हैं. वह हर शनिवार शाम को दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले वतावली कार्यक्रम में नियमित रूप से शामिल होते हैं, जहां वे संस्कृत में अनुवादित हिंदी फिल्मी गीत गाते हैं.