नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एक मुस्लिम संगठन ने कहा है कि अगर जेल में किसी निर्दोष विचाराधीन कैदी की कोरोना वायरस संक्रमण के कारण मौत होती है तो यह घोर अन्याय और न्याय प्रणाली पर एक धब्बा होगा.
जमीअत उलेमा-ए-हिन्द ने कोरोना के चलते जेलों में भीड़ कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से खुद संज्ञान लेते हुए दी गई व्यवस्था के क्रियान्वयन का आग्रह किया है. इसमें मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में अनेक कैदियों के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने की खबरों का हवाला दिया.
अधिवक्ता एजाज मकबूल की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि शीर्ष अदालत ने 23 मार्च के अपने आदेश में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे उच्चाधिकार प्राप्त समितियों का गठन करें जो निर्णय कर सकें कि किन कैदियों को महामारी के दौरान जमानत या पैरोल पर रिहा किया जा सकता है.
याचिका में कहा गया कि समितियां कैदियों की रिहाई के लिए मानक तय कर चुकी हैं, लेकिन कैदियों को तत्काल रिहा नहीं किया जा रहा है. शीर्ष अदालत ने 13 अप्रैल के अपने आदेश में स्पष्ट किया था कि उसने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जेलों से कैदियों को ‘‘आवश्यक रूप से’’ रिहा करने का आदेश नहीं दिया था और इसके पूर्व के निर्देश कोरोना वायरस के मद्देनजर जेलों में कैदियों की भीड़ को रोकने पर केंद्रित थे.
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