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अयोध्या पर मुस्लिम पक्षकार की पुनर्विचार याचिका, कहा- फैसले से इंसाफ नहीं हुआ

रशीदी ने यह याचिका मामले के मुख्य पक्षकार रहे दिवंगत एम सिद्धीक के प्रतिनिधि के तौर पर दाखिल की है. 217 पन्ने की याचिका में संविधान पीठ के फैसले के कई बिंदुओं से सहमति जताई गई है. लेकिन कुछ बिंदुओं पर फैसले की कमियां भी गिनाई गई हैं और उनके आधार पर दोबारा सुनवाई की मांग की गई है.

नई दिल्ली: 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर पहली पुनर्विचार याचिका दाखिल हो गई है. यह याचिका जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े मौलाना असद रशीदी ने दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई कमियों से भरा हुआ है. उस पर दोबारा विचार किया जाना चाहिए. तब तक कोर्ट अपने फैसले के अमल पर रोक लगा दें.

कई बिंदुओं पर सहमति जताई-

रशीदी ने यह याचिका मामले के मुख्य पक्षकार रहे दिवंगत एम सिद्धीक के प्रतिनिधि के तौर पर दाखिल की है. 217 पन्ने की याचिका में संविधान पीठ के फैसले के कई बिंदुओं से सहमति जताई गई है. लेकिन कुछ बिंदुओं पर फैसले की कमियां भी गिनाई गई हैं और उनके आधार पर दोबारा सुनवाई की मांग की गई है.

याचिका में कोर्ट के फैसले के जिन हिस्सों से सहमति जताई गई है वह हैं-

निर्मोही अखाड़े की याचिका समय सीमा के परे जाकर दाखिल की गई थी. सुन्नी वक्फ बोर्ड की याचिका समय सीमा के भीतर दाखिल हुई थी. 12वीं सदी के जिस विष्णु हरि मंदिर पर लगे शिलालेख को ढांचे से मिला बताया जा रहा था, उसके वहां से मिलने के सबूत नहीं है. 12वीं सदी से लेकर 1528 में बाबरी मस्जिद बनने तक उस जगह पर क्या हुआ इसका कोई सबूत नहीं है. इस बात के सबूत नहीं है कि मस्जिद को बनाने के लिए मंदिर को ढहाया गया था.

फैसले से इंसाफ ना होने की दलील दी गई. लेकिन इस याचिका में कोर्ट के फैसले की गई कमियों को भी गिनाया गया है. कहा गया है-

हिंदू पक्ष को पूरी जमीन देने का फैसला ऐसा लगता है. जैसे यह 9 नवंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना को मान्यता देता हो. 1934, 1949 और 1992 में वहां जो हुआ, उसे कोर्ट ने अवैध कहा, फिर भी अवैध हरकत करने वालों को जमीन दे दी. यह कहना गलत है कि 1528 से लेकर 1856 तक इमारत में नमाज पढ़े जाने के सबूत नहीं हैं. मुख्य गुंबद पर हिंदू पक्ष के दावे को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया. विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरण को सबूत नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने पूरा न्याय करने के नाम पर मुसलमानों को 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन दी है. लेकिन यह न्याय नहीं है. पूरा न्याय तब होगा जब वहां बाबरी मस्जिद दोबारा बनेगी.

केंद्र सरकार को रोका जाए-

याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट अपने 9 नवंबर के आदेश पर रोक लगा दे. साथ ही, केंद्र सरकार से यह कहे कि फिलहाल उस आदेश के आधार पर वह कोई कदम ना उठाए. गौरतलब है कि रामलला पक्ष को पूरी विवादित जमीन देते समय कोर्ट ने केंद्र सरकार से 3 महीने के भीतर एक ट्रस्ट बनाने और उसे जमीन सौंप देने के लिए कहा था. कोर्ट ने कहा था कि यही ट्रस्ट राम मंदिर के निर्माण और उसके प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाएगा.

पहले बंद कमरे में होगा विचार

पुनर्विचार याचिका के लिए तय नियम के मुताबिक उस पर वही जज विचार करते हैं जिन्होंने मामले की सुनवाई कर फैसला दिया था. बंद चैंबर में जज याचिका को देख कर तय करते हैं कि क्या उसमें कोई ऐसा बिंदु उठाया गया है जिस पर उन्होंने अपने मुख्य फैसले में जवाब नहीं दिया था? क्या कोई ऐसी बात है जिस पर दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है? अगर जजों को ऐसा लगता है तो वह मामले में की खुली अदालत में सुनवाई का आदेश देते हैं. ऐसे में दूसरे पक्ष को भी नोटिस जारी कर कोर्ट में बुलाया जाता है. दोनों पक्षों के वकील जिरह करते हैं.

अगर जजों को ऐसा लगता है कि पुनर्विचार याचिका में कोई भी ऐसी बात नहीं कही गई है, जिसके चलते दोबारा सुनवाई जरूरी हो तो वह पुनर्विचार याचिका को खारिज करने का आदेश दे देते हैं. सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई करने वाली 5 जजों की बेंच के एक सदस्य चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अब रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में पांच जजों का कोरम पूरा करने के लिए उनके बदले किसी और जज को बेंच में शामिल किया जाएगा. पांचों जज बंद चैंबर में पुनर्विचार याचिका की फाइल को देखकर यह तय करेंगे कि उस पर सुनवाई की जरूरत है या नहीं. मुस्लिम पक्ष के वकीलों के मुताबिक अभी कुछ और पक्षकार पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे. हालांकि, मामले का मुख्य मुस्लिम पक्षकार सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड फैसले को स्वीकार करने की बात कह चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने को कहा था.

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