नई दिल्ली: तीन तलाक केस के चौथे दिन आज ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने इसका बचाव किया. सिब्बल ने कहा आस्था के विषय में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए. हालांकि, सिब्बल ने ये माना कि मुसलमान एक साथ तीन तलाक को अवांछित मानते हैं.
''1400 साल पुरानी है तीन तलाक की व्यवस्था''
5 जजों की संविधान पीठ के सामने सिब्बल की दलीलें धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर केंद्रित रहीं. उन्होंने कहा कि तीन तलाक की व्यवस्था 1400 साल पुरानी है. ये सवाल उठाना गलत है कि ये धर्म का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं.
इस पर संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस कुरियन जोसफ ने कहा, "हो सकता है ये परंपरा 1400 साल पुरानी हो. 1400 साल बाद कुछ महिलाएं हमारे पास आई हैं. हमें सुनवाई करनी होगी."
पैगंबर के सहयोगी हज़रत उमर ने दी थी तीन तलाक को मान्यता
सिब्बल ने बताया कि 632 ई. में पैगंबर के निधन के सिर्फ 5 साल बाद 637 में तीन तलाक की व्यवस्था शुरू हुई. पैगंबर के सहयोगी हज़रत उमर ने इसे मान्यता दी. इसलिए, ये आस्था का विषय है. इस पर सवाल उठाना सही नहीं. ये ठीक ऐसे ही है जैसे अगर हिन्दू ऐसा मानते हैं कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ तो इस पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.
सिब्बल ने कहा-क्या कल को इस बात पर कानून बनाया जा सकता है कि दिगंबर जैन साधु नग्न न घूमें? आखिर किस सीमा तक जाकर कानून बनाएंगे? सवाल ये भी है कि सिर्फ हमसे ही सवाल क्यों पूछे जा रहे हैं? खास बात ये है कि कोर्ट खुद संज्ञान लेकर ऐसा कर रही है.
इस पर बेंच के सदस्य जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा- "क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले को नहीं सुनना चाहिए?" सिब्बल ने कहा- "हां, आपको इसे नहीं सुनना चाहिए."
जस्टिस कुरियन जोसफ ने पूछा-क्या ईमेल से भी तलाक हो रहे हैं? सिब्बल ने कहा-तलाक व्हाट्सऐप से भी हो रहे हैं. लेकिन सवाल ये है कि क्या आस्था से जुड़े विषय में कोर्ट दखल दे सकता है.
कुरान और हदीस से लिया गया है पर्सनल लॉ
सिब्बल ने कहा कि पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से लिया गया है. क्या कोर्ट कुरान और हदीस में लिखे लाखों शब्दों की व्याख्या करेगा? संवैधानिक नैतिकता और बराबरी के सिद्धांत को पर्सनल लॉ के मामलों पर लागू नहीं किया जा सकता.
कपिल सिब्बल ने कहा हिन्दु कानूनों में भी महिलाओं से भेदभाव होता है. क्या कोर्ट उसे भी रद्द करेगी? दहेज उन्मूलन कानून के जरिए हिंदुओं में दहेज को अपराध माना गया. लेकिन प्रथा के तौर पर शादी में उपहार का लेन-देन हो सकता है. यानी प्रथा के तौर पर दहेज को सरंक्षण है.
"आस्था के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है"
सिब्बल ने गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा का ज़िक्र किया. कहा- "आस्था के नाम पर लोगों को मारा जा रहा है." कोर्ट ने कहा- "आज के समय की ये एक सच्चाई है. लेकिन जिस मामले को हम सुनने बैठे है, वहां ये उदाहरण उचित नहीं है."
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सिब्बल से कहा कि वो कोर्ट में राजनीतिक बात न कहें. सिब्बल ने जवाब दिया- "मैं कोर्ट में कभी ऐसा नहीं करता." जजों ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा- "आदत आसानी से नहीं जाती."
सिब्ब्ल बार-बार पर्सनल लॉ को संवैधानिक संरक्षण की बात उठाते रहे. कोर्ट ने उन्हें याद दिलाया कि सुनवाई सिर्फ एक बार में तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत पर हो रही है. सिब्बल ने कहा- "एक बार इसे हटाया गया तो दूसरे मसले भी उठने लगेंगे."
इसे गलत और अवांछित मानते हैं मुसलमान
सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसफ ने सवाल उठाया कि अगर तीन तलाक यानी तलाक ए बिद्दत को मान्यता दी गई है तो निकाहनामे इसे शामिल क्यों नहीं किया जाता. सिब्बल ने जवाब दिया कि खुद मुसलमान इसे गलत और अवांछित मानते हैं. इसे खत्म करना चाहते हैं. लेकिन इसे समुदाय पर छोड़ दिया जाना चाहिए. इस पर कोर्ट का आदेश देना सही नहीं होगा.
दिन की सुनवाई खत्म करते वक़्त कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक का समर्थन कर रहे पक्ष कल लंच से पहले अपनी जिरह पूरी कर लें. जमीयत उलेमा ए हिंद के वकील राजू रामचंद्रन ने इससे सहमति जताते हुए कल जल्द अपनी बात पूरी करने की बात कही. कोर्ट ने कहा- लंच के बाद तीन तलाक खत्म करने की पैरवी करने वाले पक्ष मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा ए हिंद की बातों का जवाब दें. माना जा रहा है कि इस सप्ताह के अंत तक कोर्ट इस अहम मसले पर सुनवाई पूरी कर लेगा.