Ahmedabad Pir News: पीर इमामशाह बावा (Pir Imamshah Bawa) की मृत्यु के पांच शताब्दियों के बाद उनके हिंदू अनुयायियों पर सूफी संत का नाम बदलकर सद्गुरु हंसतेज महाराज करने का आरोप लगा है. पीर इमामशाह बावा का धार्मिक स्थल अहमदाबाद के बाहरी इलाके के पिराना (Pirana) गांव में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक रहा है. स्थानीय सैय्यद समुदाय से आने वाले पीर के वंशजों ने इस नामकरण पर कड़ी आपत्ति जताई.
इसके विरोध में उन्होंने शुक्रवार (18 अगस्त) से धार्मिक स्थल परिसर में अनिश्चितकालीन अनशन शुरू करने का ऐलान किया है. टीओआई के अनुसार, इमामशाह बावा रोजा संस्थान के तीन मुस्लिम ट्रस्टियों ने अधिकारियों से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करते हुए गुरुवार को जिला कलेक्टर को अपने अनशन की सूचना दी. इन ट्रस्टियों ने अनशन पर बैठने वाले 25 लोगों के लिए सुरक्षा की भी मांग की है.
मुस्लिम ट्रस्टियों ने जताई आपत्ति
राज्यपाल सहित कई अधिकारियों को दिए गए ज्ञापन में ट्रस्टियों ने हजरत पीर इमामशाह बावा की दरगाह को हिंदू धार्मिक स्थल में परिवर्तित करने के प्रयासों पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि कुछ असामाजिक तत्वों ने 13 अगस्त को समाधि पर और उसके आसपास देवी-देवताओं के पोस्टर चिपकाए थे. 15 अगस्त को समाधि स्थल के बाहर एक होर्डिंग लगाया था. इस होर्डिंग पर लिखा है 'ओम श्री सद्गुरु हंसतेज जी महाराज अखंड दिव्यज्योति मंदिर' और इस स्थल को एक मंदिर के रूप में दर्शाया गया है.
"ये पीर का नामकरण नहीं है"
संत के हिंदू नाम वाले होर्डिंग्स पर मंदिर के ट्रस्टियों में से एक हर्षद पटेल ने कहा कि ये पीर का नामकरण नहीं है. मुस्लिम ट्रस्टी का ऐसा दावा गलत है. हंसतेज महाराज का नाम 4,000 से ज्यादा वर्षों से ग्रंथ में शामिल है. इमामशाह बावा का जिक्र कई पुस्तकों में हंसतेज महाराज के रूप में किया गया है. हमने केवल दो दिन पहले इस नाम का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर और होर्डिंग्स लगाए हैं.
पहले भी हुआ था केस
उन्होंने ट्रस्ट को तीर्थधाम प्रेरणापीठ भी बताया. इमामशाह बावा की मृत्यु 16वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी. पिराना तीर्थ सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक था, जिसमें संत के अधिकांश अनुयायी हिंदू थे, जिन्हें सत्संगी या सतपंथी कहा जाता था. हालांकि, धार्मिक स्थल के मुस्लिम ट्रस्टियों और अनुयायियों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में इमामशाह बावा की हिंदू पहचान का दावा किया गया है, जिस पर पहले भी केस हुआ था.
पिछले साल, सुन्नी अवामी फोरम नामक एक मुस्लिम संगठन ने एक जनहित याचिका दायर की थी और धार्मिक स्थल परिसर के भीतर एक नए मंदिर के निर्माण पर आपत्ति जताई थी. इसने पूजा स्थल अधिनियम, 1991 को लागू करके इस तरह के विकास पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
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