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Muslim Woman Alimony Law: कभी मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ता के मुद्दे ने बदल दी थी देश की राजनीति! अब आया 'सुप्रीम' फैसला

Muslim Woman Alimony Law: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला भी CRPC की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण पोषण मांग सकती है. यह कानून सभी धर्मों पर एकसमान लागू होगी.

Muslim Woman Alimony Law: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जुलाई) को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि एक मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. अदालत ने कहा कि सीआरपीसी का ये प्रावधान सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, फिर वे किसी भी धर्म को मानती हों. अदालत ने ये भी साफ कर दिया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी. 

हालांकि, भले ही आज कोर्ट ने महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का आदेश दे दिया है, लेकिन एक दौर ऐसा भी था, जब इस मुद्दे पर इतनी ज्यादा सियासत हुई कि इसने देश की राजनीति को ही बदल कर रख दिया. दरअसल, हम 1985 के शाह बानो केस की बात कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो को गुजारा भत्ता देना सही ठहराया था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संसद में बदल दिया था. आइए जानते हैं कि कैसे इस फैसले से राजनीति में बड़ा बदलाव हुआ.

क्या था शाह बानो केस? 

शाह बानो मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली एक महिला थीं. उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने उन्हें तलाक दे दिया था. अहमद खान इंदौर के जाने-माने वाले वकील थे, इसके बाद भी उन्होंने शाह बानो और उनके पांच बच्चों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया. शाह बानो ने 1978 में इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने अदालत से गुजारिश की कि उनके पति को उन्हें गुजारा भत्ता देने के लिए निर्देश दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संसद से बदल दिया

साल 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया तो इसके जवाब में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 लागू कर दिया.  इस अधिनियम ने तलाक के बाद केवल 90 दिनों तक मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को प्रतिबंधित कर दिया. उस समय से लेकर अब तक यह मामला काफी सुर्खियों में रहा है. 

इसके बाद साल 2001 में राजीव गांधी सरकार की ओर से लागे गए इस अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसमें दानियल लतीफी ने शाह बानो का प्रतिनिधित्व किया था. कोर्ट ने राजीव गांधी के 1986 के अधिनियम पर प्रतिबंध लगाते हुए उसे निरस्त कर दिया था. इसके यह सुनिश्चित हुआ कि मुस्लिम महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीतने के लिए उचित सहायता मिले.

अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाया

इसके बाद साल 1986 में हिंदुओं को खुश करने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने राम मंदिर का ताला खुलवा दिया था. हलांकि इसका फायदा उन्हें नहीं मिला और 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ऊपर लगे अलग-अलग घोटालों की वजह से राजीव गांधी की सरकार गिर गई.

राम मंदिर का ताला खुलवाने की वजह से उस समय मुस्लिम वोट भी कांग्रेस से छिटका था. उस समय कांग्रेस को बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा था.

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