क्या है मस्जिद में महिलाओं के जाने का मामला, पढ़ें AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट में क्या दिए तर्क
Muslim Women: आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है. इसमें महिलाओं को मस्जिद में जाने को लेकर बोर्ड ने अपने तर्क दिए हैं.
Muslim Women In Mosque: आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने (AIMPLB) बुधवार (8 फरवरी) को मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर हलफनामा दाखिल किया. पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत है.
बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि मुस्लिम महिलाएं नमाज अदा करने के लिए मस्जिद में जाने को स्वतंत्र हैं. यह उन पर निर्भर करता है कि वह अपने अधिकार का प्रयोग करना चाहती हैं या नहीं.
हलफनामे में क्या है?
वकील के जरिए जमा किए गए हलफनामे में पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि मस्जिदें पूरी तरह से निजी संस्थाएं हैं और इन्हें मस्जिदों के मुत्तवली की ओर नियंत्रित किया जाता है. इसमें बोर्ड के बारे में जानकारी देते हुए कहा गया है कि एआईएमपीएलबी विशेषज्ञों की एक संस्था है और इसके पास कोई ताकत नहीं है. संस्था सिर्फ इस्लाम के धार्मिक ग्रंथों में बताए सिद्धांतों के आधार पर अपनी सलाह जारी कर सकती है.
क्या है मामला?
पुणे की फरहा अनवर हुसैन शेख ने साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में भारत की मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश पर कथित रोक को असंवैधानिक बताते हुए अदालत से इस पर निर्देश देने की मांग की थी. इसी याचिका पर कोर्ट ने जवाब मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला और अन्य मामलों से जुड़ी ऐसी ही याचिका 9 जजों की संविधान पीठ के सामने लंबित है. फरहा शेख ने जब याचिका दायर करने के समय कोर्ट से अपनी याचिका को भी 9 जजों की पीठ के सामने जोड़ने की अपील की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया था. जस्टिस शरद अरविंद बोबेडे की पीठ ने कहा था कि उनका मामला संविधान पीठ के पास नहीं जाएगा.
ये की गई थी मांग
याचिकाकर्ता में कुरान और हदीस का हवाला देते हुए कहा था कि इसमें महिलाओं और पुरुषों में भेद नहीं है. पैगंबर मोहम्मद साहब ने विशेष तौर पर पुरुषों को अपनी पत्नियों को मस्जिद में जाने से नहीं रोकने को कहा था. बावजूद इसके महिलाओं को मस्जिदों और दरगाहों में प्रवेश से रोका जा रहा है. याचिका में सर्वोच्च अदालत से इसके खिलाफ आदेश देने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार और मुस्लिम पक्षकारों को नोटिस भेजा था.
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