Mosque For Women: भारत में मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ते नहीं देखा जाता. लोगों का मानना है कि इस्लाम महिलाओं को इसकी इजाजत नहीं देता लेकिन रमजान के इस पवित्र महीने में ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई मुस्लिम महिला मस्जिद में नमाज अदा कर रही हो. बेंगलुरु की रहने वाली आयशा इजहार (34) पहले यूके में रह रही थीं जहां वे नियमित रूप से मस्जिद में अपनी नमाज अदा करती थी और अब भारत में भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ती हैं. आयशा बताती हैं कि वे हर शुक्रवार को अपने घर के पास की एक मस्जिद में नमाज पढ़ने जाती हैं. वहां आयशा ने कई दोस्त भी बनाए हैं. जो अपने जीवन, करियर और शिक्षा पर मिलकर बात करते हैं.
इसी साल फरवरी में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति है. जिसके बाद इस बार रमजान में लखनऊ के ऐशबाग ईदगाह ने महिलाओं के लिए तरावीह पेश करने के लिए एक अलग खंड बनाया. यह एक ऐतिहासिक पहल थी. इस तरावीह में बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंची.दरअसल आयशा को मुस्लिम महिला मस्जिद परियोजना (MWMP) के जरिए एक ऐसी मस्जिद के बारे में पता चला, जिसमें महिलाओं के नमाज अदा करने के लिए एक अलग खंड बनाया गया था.
महिलाओं को मस्जिद तक पहुंचा रहा MWMP
MWMP ने भारत के 15 शहरों की एक सूची बनाई है जिसके तहत वे महिलाओं के नमाज पढ़ने के लिए मस्जिदों को ढूंढने में लोगों की मदद कर रहा है. यह मस्जिदों का दौरा करते हुए महिलाओं के लिए बेहतर सुविधाओं पर बात करती है. इस मुहिम की शुरुआत एक स्टडी सर्कल ने की थी जिसकी नींव सानिया मरियम ने रखी थी. वैसे तो इस सर्कल का मकसद धार्मिक और अकादमिक ग्रंथों पर चर्चा करना था लेकिन धीरे-धीरे इसमें भारतीय महिलाओं के लिए मस्जिदों तक सीमित पहुंच के बारे में बात बात होने लगी. इसी दौरान कई महिलाओं ने विदेशों में मस्जिदों में नमाज अदा करने के अपने अनुभव साझा किए और फिर यह सवाल उभरा कि भारत में महिलाओं के लिए यह विकल्प मौजूद क्यों नहीं है?
महिलाओं के लिए मस्जिद बनाने का अभियान चला रहीं मरियम
केरल में खदीजा मरियम फाउंडेशन की निदेशक हुदा अहसन महिलाओं के लिए मस्जिद बनाने का अभियान चला रही हैं. वे एक ऐसी मस्जिद बनाने का आभियान चला रही हैं जहां इमाम से लेकर सभी समिति सदस्य महिलाएं हों. अहसन के मुताबिक महिलाओं के लिए एक अलग स्थान बनाना एक महत्वपूर्ण कदम होगा और इसके लिए उन्हें किसी पुरुष की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है. हालांकि मुस्लिम महिलाओं में इसे लेकर एक संदेह था कि इस्लाम के तहत महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति है या नहीं. ऐसे में महिलाओं को उल्लेमाओं का हवाला दिया गया.
'महिलाओं के लिए अलग वर्ग बनाना ही काफी नहीं'
जिया उस सलाम की किताब 'वीमेन इन मस्जिद: ए क्वेस्ट फॉर जस्टिस' में लिखते हैं कि कुरान में कहीं ऐसी कोई आयत नहीं जिसमें महिलाओं को मस्जिद जाने से रोका गया हो. लेकिन हमारे देश में, ऐसा लगता है कि एक महिला की इबादत की तुलना में एक पुरुष की इबादत ज्यादा अहम है. दरअसल सलाम, मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं अधिक पहुंच के लिए एक दीर्घकालिक वकील हैं. उनका कहना है कि मौलाना खुद अपनी पत्नियों को उमराह पर मक्का ले जाते हैं, लेकिन भारत वापस आते हैं तो मस्जिदों में उनके प्रवेश का विरोध करते है.
सलाम अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि सिर्फ मस्जिदों में महिलाओं के लिए अलग वर्ग बनाना ही काफी नहीं होगा. बल्कि मस्जिदों में महिलाओं के लिए वुजू करने की जगह और जिस तरह पुरुषों के लिए टोपियां रखी जाती हैं उसी तरह महिलाओं के लिए भी हिजाब रखे होने चाहिए.