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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

आबादी 14%, हिस्सेदारी जीरो; भारत के डिसीजन मेकिंग में कहां खड़ा है मुसलमान?

2011 के जनगणना के मुताबिक भारत में 14 फीसदी से अधिक मुसलमान हैं, लेकिन भारत में डिसीजन मेकिंग बॉडी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग जीरो है. इनमें केंद्रीय कैबिनेट से लेकर कई पोस्ट शामिल हैं.

नई दिल्ली में बीजेपी की 2 दिन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया गया एक बयान सुर्खियों में है. बैठक में पीएम ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा, 'कोई वोट दे या नहीं, हमें सबको साथ लेकर चलना है.' प्रधानमंत्री ने कार्यकारिणी की मीटिंग में कहा- बोहरा, पसमांदा और पढ़े लिखे मुसलमानों तक भी हमें सरकार की नीतियां लेकर जानी हैं. 

पीएम मोदी के इस भाषण की खूब चर्चा हो रही है. राजनीतिक विश्लेषक इसे बीजेपी और संघ की बदली हुई रणनीति के तौर पर देख रहे हैं. जनगणना 2011 के मुताबिक भारत में करीब 14.3 फीसदी मुसलमान हैं. वहीं NSSO की डेटा की मानें तो कुल संख्या में 40.7 फीसदी पिछड़े मुसलमान हैं. 

यानी भारत में मुस्लिम आबादी कुल आबादी का करीब छठा भाग है. अल्पसंख्यकों में सबसे अधिक आबादी मुसलमानों की संख्या ही है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि भारत के डिसीजन मेकिंग में मुसलमान कहां है. इस स्टोरी में हमने इसी की पड़ताल की है. 

टॉप-7 पोस्ट पर 2021 से कोई भी मुसलमान नहीं 
भारत में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को मिलाकर कुल 7 बड़े पोस्ट हैं. इनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, लोकसभा के स्पीकर, मुख्य चुनाव आयुक्त और नेता प्रतिपक्ष (राज्यसभा) प्रमुख हैं.


आबादी 14%, हिस्सेदारी जीरो; भारत के डिसीजन मेकिंग में कहां खड़ा है मुसलमान?

इनमें से कई ऐसे पद हैं, जिस पर सालों से कोई मुसलमान नहीं रहा है. 2021 में कार्यकाल पूरा होने की वजह से गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष पद से हटे थे. इसके बाद से ही टॉप 7 पोस्ट पर एक भी मुसलमान नहीं हैं. 

सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज नहीं
भारत के सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 27 जज हैं, जबकि 8 पोस्ट रिक्त है. इन 27 जजों में एक भी मुस्लिम जज नहीं हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर लंबे समय से घमासान छिड़ा है. जजों की नियुक्ति में डायवर्सिटी नहीं होने का ठीकरा सरकार कॉलेजियम पर फोड़ती रही है. 

देश के किसी हाईकोर्ट में भी स्थायी चीफ जस्टिस मुसलमान नहीं है. जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में जरूर एक्टिंग चीफ जस्टिस मुसलमान हैं. 

राज्यों के मुखिया में भी मुस्लिम हिस्सेदारी नहीं
देश में अभी 28 राज्य और 2 केंद्रशासित प्रदेश में मुख्यमंत्री निर्वाचित हैं. देश के 30 मुख्यमंत्रियों में से एक भी मुख्यमंत्री मुस्लिम नहीं है. मेघालय और मिजोम में ईसाई सिक्किम में बौद्ध और पंजाब में जरूर सिख मुख्यमंत्री हैं. बाकी के 26 राज्यों में हिंदू मुख्यमंत्री हैं. हालांकि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री खुद को नास्तिक बताते हैं यानी किसी धर्म को नहीं मानने वाले.

केंद्रीय कैबिनेट में भी जीरो हिस्सेदारी
वर्तमान में केंद्रीय कैबिनेट में एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है. 2019 में मुख्तार अब्बास नकवी को फिर से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बनाया गया था, लेकिन 2021 के विस्तार में उन्हें हटा दिया  गया. 

अल्पसंख्यक मंत्रालय की कमान अभी स्मृति ईरानी के पास है. अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाले अल्पसंख्यक मंत्रालय में बड़े स्तर (टॉप लेवल) के 43 अधिकारी हैं. मंत्रालय के साइट पर दिए गए जानकारी के मुताबिक अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय में सिर्फ 2 अधिकारी मुस्लिम हैं. 

संविधान की प्रस्तावना में राजनीतिक न्याय का जिक्र
भारत के संविधान की प्रस्तावना में भी राजनीतिक न्याय का जिक्र है. राजनीतिक न्याय से मतलब है देश के सभी नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो. राजनीतिक अधिकार में चुनाव लड़ने और चुनाव में वोट करने से है.

वजह क्या, 3 प्वॉइंट्स...

1. सीटों का परिसीमन बड़ी वजह- जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में कानून विभाग के प्रोफेसर असद मलिक बताते हैं- मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री मुस्लिम नहीं बन पाते हैं, इसकी बड़ी वजह बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी है. परिसीमन की वजह से कई सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत पाते हैं, जिससे विधायक या संसदीय दल की बैठक में मुस्लिम नेता कमजोर पड़ जाते हैं. 

मलिक आगे बताते हैं- जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम मुख्यमंत्री बनते रहे हैं, क्योंकि वहां मुस्लिम आबादी अधिक है. हालांकि, 2019 से वहां चुनाव ही नहीं हो पा रहे हैं. 

2. कोई तय नियम या कानून नहीं- असद मलिक के मुताबिक पहले की सरकार में एक परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या कोई बड़ा पद मुस्लिम नेताओं को मिल जाता था, जिससे बड़े निर्णय में उनकी भागीदारी होती थी. हालांकि, इसको लेकर कोई तय कानून या नियम नहीं है. 

संविधान की बैठक में एससी-एसटी की तरह लोकसभा की कुछ सीटों को मुस्लिम नेता आरक्षित करने की मांग की थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 

3. बीजेपी का उदय- 2014 के बाद बीजेपी लगातार मजबूत होती गई. बीजेपी की लहर की वजह से कई दिग्गज मुस्लिम नेता चुनाव हार गए. इनमें बिहार के अब्दुल बारी सिद्दीकी, यूपी के आजम खान, सलमान खुर्शीद और जम्मू-कश्मीर से गुलाम नबी आजाद के नाम प्रमुख हैं. 

चुनाव में हार के बाद से धीरे-धीरे ये नेता पार्टी के भीतर भी बेअसर होते गए. लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी ने 403 सीटों में से सिर्फ 5 सीट पर मुस्लिम को टिकट दिया था, जिसमें से 3 जम्मू-कश्मीर से थे.

कितनी उम्मीदें, असर क्या?
2008 में अमिताभ कुंडू के नेतृत्व वाली 4 सदस्यीय कमेटी ने अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी थी. इसे कुंडू कमेटी की रिपोर्ट से जाना जाता है. कमेटी ने देश में मुसलमानों के विकास के लिए डायवर्सिटी कमीशन पर जोर दिया था. 

कमेटी ने कहा था कि एजुकेशन से लेकर संसदीय हिस्सेदारी में मुसलमान पिछड़ा है, जिसे बदलने के लिए हरेक जगह पर अमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है. डिसीजन मेकिंग में मुसलमान जब आएंगे, तभी बड़े बदलाव संभव हैं. 

डिसीजन मेकिंग में मुसलमान के नहीं होने से क्या असर हो सकता है? इस सवाल के जवाब में असद मलिक कहते हैं, 'बड़े प्लेटफॉर्म पर अपने जरूरी मुद्दे को मुसलमान नहीं उठा पाएंगे और जब मुद्दा ही नहीं उठेगा, तो उसका हल कैसे निकल सकता है'

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