MUST READ: वो राष्ट्रपति चुनाव जिसमें हुई थी कांटे की टक्कर!
रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना तय है. मीरा कुमार से मुकाबला एकतरफा माना जा रहा है. लेकिन क्या आपको बता एक राष्ट्रपति चुनाव ऐसा था जब दो उम्मीदवारों के बीच आम चुनावों की तरह कांटे की टक्कर हुई.
नई दिल्ली: रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना तय है. मीरा कुमार से मुकाबला एकतरफा माना जा रहा है. लेकिन क्या आपको बता एक राष्ट्रपति चुनाव ऐसा था जब दो उम्मीदवारों के बीच आम चुनावों की तरह कांटे की टक्कर हुई.
हम बात उन राष्ट्रपति की कर रहे हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति बनकर इतिहास रच दिया था. वो राष्ट्रपति जो निर्दलीय चुनाव लड़कर देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान हुए. वो राष्ट्रपति जिन्हें मजदूरों और मजलूमों के हितैषी के तौर पर याद किया जाता है. कहानी देश के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरी की.
आमतौर पर सत्ता में रहने वाली पार्टी आसानी से अपना राष्ट्रपति बना ले जाती लेकिन भारतीय लोकतंत्र के 70 साल के इतिहास में साल 1969 का वो इकलौता राष्ट्रपति चुनाव था जिसमें आम चुनावों की तरह कांटे की टक्कर देखने को मिली. वो चुनाव जिसके बाद दशकों पुरानी पार्टी कांग्रेस के दो टुकड़े हो गए.
देश के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की अचानक मौत के बाद तब के उपराष्ट्रपति वीवी गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया और इसी के साथ देश के अगले राष्ट्रपति की तलाश शुरू हो गई.
12 जुलाई 1969 को राष्ट्रपति उम्मीदवार तय करने के लिए बेंगलुरू में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई गई. बैठक में गैर हिंदीभाषी नेता आंध्र प्रदेश के बड़े नेता नीलम संजीव रेड्डी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे, जबकि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने किसी खास को राष्ट्रपति की कुर्सी पर देखना चाहती थीं. इंदिरा गांधी ने बाबू जगजीवन राम के नाम का प्रस्ताव रखा.
वहां मौजूद के कामराज, एसके पाटिल और तब के कांग्रेस अध्यक्ष एस नजलिंगप्पा समेत कई नेताओं ने संजीव रेड्डी के नाम का समर्थन किया और इंदिरा का प्रस्ताव गिर गया. कांग्रेस ने नीलम संजीव रेड्डी को अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया, लेकिन इंदिरा ने पार्टी का फैसला मानने से इनकार दिया और यहीं से कांग्रेस में टूट की शुरुआत हो गई.
इंदिरा के इशारे पर वीवी गिरि ने उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर राष्ट्रपति के चुनाव में कूद पड़े. इंदिरा के कहने पर सांसदों और विधायकों से अंतरात्मा की आवाज सुनकर वोट देने की अपील की और हुआ भी वही.
कांग्रेस के विधायकों और सांसदों ने इंदिरा की सुनी और वीवी गिरी को वोट दिया. वीवी गिरि को 4 लाख 20 हजार 77 वोट मिले जबकि नीलम संजीव रेड्डी को 4 लाख 5 हजार 427 वोट मिले. 24 अगस्त 1969 को वीवी गिरी सिर्फ और सिर्फ 14650 वोटों से जीतकर देश के चौथे राष्ट्रपति बन गए.
वीवी गिरि का लंबा राजनैतिक सफर रहा. वो सांसद बने, मंत्री बने, कई राज्यों के राज्यपाल भी बने लेकिन आज उन्हें दो बातों के लिए याद किया जाता है. पहला उनके राष्ट्रपति बनने की दिलचस्प दास्तां और दूसरा देश के श्रम सुधार में विशेष योगदान के लिए.
ओडिशा के बेहरामपुर में जन्मे वीवी गिरि ने आयरलैंड से वकालत की पढ़ाई की. देश लौटे तो श्रमिकों के आंदोलन में कूद पड़े. साल 1923 में उन्होंने रेलवे यूनियन स्थापना की. वीवी गिरि जी अखिल भारतीय व्यापार संघ के अध्यक्ष भी थे. लेकिन आप को ये बात जानकार बेहद हैरानी होगी कि रेलवे मजदूरों के जिस यूनियन को वीवी गिरि ने बनाया था उन्हीं के कार्यकाल के दौरान मजदूरों का सबसे बड़ा आंदोलन हुआ.
साल 1974 में रेलवे की सबसे बड़ी हड़ताल हुई. ट्रेनें खड़ी हो गईं. आंदोलन को दबाने के लिए इंदिरा गांधी ने दमन चक्र चलाया. हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और वीवी गिरि चुपचाप उनके हर फैसले को मंजूरी देते रहे. साल 1975 में वीवी गिरि देश के लगातार चौथे ऐसे राष्ट्रपति बने जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.