नई दिल्ली:  भारतीय रेल की सबसे बड़ी समस्या रेल पटरियों पर क्षमता से ज्यादा ट्रैफिक है. लिहाजा रेल मंत्री सुरेश प्रभु पटरियों पर दबाव कम करने के लिए दोहरीकरण के काम में जुटे हैं. साथ ही हजारों किमी का विद्युतीकरण किया जा रहा है. 40 हजार कोचों के आधुनिकीकरण की शुरूआत हो चुकी है. स्टेशनों को वाई-फाई से जोड़ने की मुहिम चल रही है, लेकिन लगता है इन सबके बीच रेल यात्रियों की सुरक्षा को नजरअंदाज किया जा रहा है. तभी तो पुराने दिनों की तरह ही रेल हादसे लगातार हो रहे हैं और सवाल उठने लगे हैं क्या प्रभु जी से उम्मीदों के मुताबिक काम नहीं हो पा रहा ?


9 नवंबर 2014 को सुरेश प्रभु को रेल मंत्री बनाया गया और लगा जैसे सालों से बीमार पड़ी भारतीय रेलवे का प्रभु उद्धार कर देंगे, लेकिन प्रभु के तीन साल के कार्यकाल में भी रेल हादसे बदस्तूर जारी है और जनता सवाल कर रही है कि बुलेट और टैल्गो की बात छोड़िए. प्रभु जी पहले ये तो बताइए कि यात्रीगण की सुरक्षा कब तक पक्की हो जाएगी?


प्रभु के कार्यकाल में भी बड़े-बड़े रेल हादसे हो रहे हैं और बेकसूर मुसाफिर बेमौत मारे जा रहे हैं.




  • 30 मार्च, 2017- यूपी के महोबा में महाकौशल एक्सप्रेस पटरी से उतरी, 50 से ज्यादा लोग घायल.

  • 21 जनवरी 2017- कुनेरू में जगदलपुर-भुवनेश्वर हीराखंड एक्सप्रेस को पटरी से उतरी, 40 से ज्यादा की मौत, 68 लोग घायल.

  • 28 दिसंबर 2016- कानपुर के नजदीक अजमेर-सियालदाह एक्सप्रेस के 15 कोच पटरी से उतरे, 40 से ज्यादा घायल.

  • 20 नवंबर 2016- कानपुर देहात के पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन के 14 डिब्बे पटरी से उतरे, 150 लोगों की मौत, 260 घायल.

  • 20 मार्च 2015- रायबरेली के बछरांवा में जनता एक्सप्रेस पटरी से उतरी, 32 लोगों की मौत,150 से ज्यादा लोग घायल.


ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. प्रभु जी से वो सब हो नहीं पा रहा है जिसकी उम्मीद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे की होगी.


पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट सुरेश प्रभु हिसाब-किताब में माहिर हैं. लिहाजा उन्होंने पद संभालते ही रेलवे की पैसे की तंगी को दूर करने का बीड़ा उठाया. शुरूआत से ही रेलवे को आधुनिक बनाने में जुटे गए, लेकिन नयी तकनीक और नए सिग्नल सिस्टम की बातों का कोई नतीजा नजर नहीं आ रहा.


रेलवे की पुरानी बीमारियां अब भी जस की तस बरकरार




  • हर साल होने वाले रेल हादसे पर लगाम नहीं लग पा रही.

  • रेलवे में कंफर्म टिकट पाने के लिए रेल यात्री लंबा संघर्ष करते हैं.

  • मुसाफिरों को भारतीय रेल वक्त पर मंजिल तक नहीं पहुंचा पाती.

  • सर्दी के मौसम में रेलवे की लेटलतीफी और बढ़ जाती है.

  • रेलवे की कोशिशों के बावजूद कोच के भीतर गंदगी का अंबार लगा रहता है.


सीएजी की रिपोर्ट भी कई बार रेलवे के दावों पर सवाल खड़े कर चुकी है रेलवे कैटरिंग पर सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक-


ट्रेनों में मिलने वाला खाना मुसाफिरों के खाने लायक नहीं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.




  • ट्रेनों और स्टेशनों पर परोसी जा रही चीजें प्रदूषित होती हैं.

  • पैक्ड वस्तुओं को उनके एक्सपाइरी डेट के गुजर जाने के बाद भी बेचा जा रहा है.

  • रेलवे परिसरों और ट्रेनों में साफ-सफाई का बिलकुल ख्याल नहीं रखा जा रहा.

  • तो एसी बोगियों में मिलने वाले चादर और तौलिए की धुलाई पर भी सीएजी सवाल खड़े कर चुका है.


मतलब साफ है कि प्रभु जी से बदलाव हो नहीं पा रहा है. उनका विजन पटरी से उतरता दिख रहा है और मुजफ्फरनगर में रेल हादसे ने विरोधियों को मोदी सरकार पर हमले का एक और मौका दे दिया है. पूर्व मंत्री लालू यादव ने तो प्रभु का इस्तीफा ही मांग लिया है.


अपने कार्यकाल में हुए रेल हादसों से रेल मंत्री ने कोई सबक नहीं सीखा. हर बार सफर को सुरक्षित बनाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं होता और एक नया हादसा हो जाता है.


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