नई दिल्ली: मुजफ्फरपुर के शेल्टर होम में किसी बच्ची की हत्या की पुष्टि नहीं हुई है. सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को आज यह जानकारी दी. करीब 2 साल पहले बिहार के इस बालिका आश्रय गृह में कई बच्चियों के यौन शोषण की खबर ने पूरे देश को चौंका दिया था. तब यह आरोप भी लगे थे कि शेल्टर होम को चलाने वालों ने कुछ बच्चियों की हत्या भी की है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी और इससे जुड़े मुकदमे को दिल्ली ट्रांसफर कर दिया था. कोर्ट समय-समय पर सीबीआई से जांच की स्टेटस रिपोर्ट लेता रहता है.


सीबीआई की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में आज रखी गई रिपोर्ट में यह कहा गया है कि शेल्टर होम से 35 बच्चियों के गायब होने की बात कही गई थी. इनमें से कुछ की हत्या हो जाने की भी आशंका जताई गई थी. लेकिन जांच के दौरान सभी 35 बच्चियां मिल गई. शेल्टर होम के पास से जो दो मानव कंकाल मिले थे, वह किसी बच्ची के नहीं थे. वह एक वयस्क पुरुष और एक वयस्क महिला के कंकाल थे. यह दोनों लोग कौन है इस बारे में जांच अभी जारी है. लेकिन इतना स्पष्ट है शेल्टर होम में किसी भी बच्ची की हत्या नहीं की गई.


मामले की निचली अदालत में सुनवाई पूरी हो चुकी है


गौरतलब है कि सीबीआई ने निचली अदालत में बच्चों के साथ यौन शोषण और बलात्कार जैसी धाराओं में चार्जशीट दाखिल की है. याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि एजेंसी ने गहराई से जांच नहीं की है. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लेटे हुए याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने की इजाजत दी है. वैसे पूरे मामले की निचली अदालत में सुनवाई पूरी हो चुकी है. शेल्टर होम के संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत दूसरे लोगों पर चले मुकदमे का फैसला 14 जनवरी को आना है.


सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर 2018 को दिए आदेश में सीबीआई को मुजफ्फरपुर के अलावा बिहार के 16 और आश्रय गृहों की जांच का आदेश दिया था. आज एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि इनमें से 12 मामलों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और शोषण के आरोपों की पुष्टि हुई है. चार मामलों में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई, उनमें निचली अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की गई है. सीबीआई के लिए कोर्ट में पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने यह भी बताया कि 17 शेल्टर होम की जांच के दौरान 25 डीएम और 46 दूसरे सरकारी अधिकारियों को लापरवाही का दोषी पाया गया है. राज्य सरकार को उन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश भेजी गई है.


गौरतलब है कि सबसे पहले टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सर्विस यानी TISS ने सरकार को सौंपी एक रिपोर्ट में बिहार के आश्रय गृहों में यौन दुर्व्यवहार, मारपीट, शोषण जैसी बातों की जानकारी दी थी. इसके बाद बिहार पुलिस ने जांच शुरू की. इस बीच कुछ याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. उन्होंने प्रभावशाली लोगों के मामले में शामिल होने का आरोप लगाया. राज्य पुलिस की तरफ से की जा रही जांच पर असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच सीबीआई को सौंप दी थी. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये पर नाखुशी जताते हुए कहा था, "अधिकारियों का रवैया अनाथ बच्चों के लिए उपेक्षा भरा है. हम जानना चाहते हैं कि आखिर सरकार किस तरह से काम कर रही है. दिल्ली और पटना की दूरी ज़्यादा नहीं है. हम चीफ सेक्रेट्री और दूसरे अधिकारियों को यहां बुलाकर खड़ा कर सकते हैं. अनाथ बच्चों के यौन शोषण और उन्हें यातना दिए जाने के मामले में हम किसी को कोई रियायत नहीं देंगे."


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