नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को ख़ारिज़ करने के अपने फैसले को संविधान सम्मत बताया है. वेंकैया नायडू के मुताबिक उन्होंने फैसला जल्दबाजी में नहीं बल्कि सोच समझ कर लिया है.
सुप्रीम कोर्ट के वक़ीलों ने की मुलाक़ात
वेंकैया नायडू ने कल यानि सोमवार को महाभियोग के नोटिस को ख़ारिज़ किया था. आज उनसे सुप्रीम कोर्ट के दस वक़ीलों ने उनसे मुलाक़ात कर उन्हें इस फ़ैसले पर मुबारकवाद दी. नायडू ने कहा कि उन्होंने संविधान और नियमों के मुताबिक़ अपना काम किया है. नायडू ने वक़ीलों से कहा, "मैंने वही किया जिसकी राज्यसभा के सभापति के तौर पर मुझसे अपेक्षा थी. मैंने अपनी ज़िम्मेदारी निभाई और मैं इससे संतुष्ट हूं.''
जल्दबाज़ी में नहीं लिया फ़ैसला
नायडू ने इस बात को ग़लत बताया कि उन्होंने किसी जल्दबाज़ी में ये फ़ैसला किया है. उन्होंने वक़ीलों से कहा कि क़रीब एक महीना पहले से ये मामला मीडिया में सुर्ख़ियां बनने लगा था और तब से ही उन्होंने इससे जुड़े नियमों और परंपराओं के बारे में अध्ययन करना शुरू कर दिया था.
नायडू के मुताबिक़ मामले की गंभीरता और परिणाम को देखते हुए इसका जल्द निपटारा करना ज़रूरी था. उन्होंने वक़ीलों से कहा कि राज्यसभा के सभापति के पद को एक पोस्ट ऑफिस की तरह व्याख्या करना ठीक नहीं है. उसकी एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी भी है.
उन्होंने कहा, ''महाभियोग के नोटिस में उठाए गए ज़्यादातर मुद्दे सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली से जुड़े थे और उनका निपटारा आंतरिक तौर पर ही होना चाहिए. नहीं तो इसे न्यायपालिक के काम में हस्तक्षेप माना जाएगा.''
पहले भी ख़ारिज़ हुए हैं महाभियोग के नोटिस
मुलाक़ात के दौरान वक़ीलों ने कहा कि पहले भी महाभियोग प्रस्ताव से जुड़े नोटिस ख़ारिज़ किए गए हैं. उन्होंने लोकसभा के पूर्व स्पीकर जी एस ढ़िल्लों के उस फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के तब के जज जस्टिस जे सी शाह के ख़िलाफ़ महाभियोग के नोटिस को ख़ारिज़ कर दिया था. जस्टिस जेसी शाह बाद में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे. इसी तरह जस्टिस पी डी दिनाकरन के ख़िलाफ़ याचिका तीन दिनों में ही स्वीकार कर ली गई थी.