नाबार्ड एक ऐसा बैंक है जो ग्रामीणों को उनके विकास एवं आ‍ार्थिक रूप से उनकी जीवन स्तर सुधारने के लिए उनको ऋण उपलब्‍ध कराती है. कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्रामीण उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य ग्रामीण शिल्पों के विकास के लिए ऋण की सुविधा को सुविधाजनक बनाने के लिये इसकी स्थापना की गई थी.


ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में इस बैंक योगदान बहुत ही सराहनीय माना जाता है लेकिन इसी बैंक में काम करने वाले कर्मचारी अब बैंक की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं को लेकर परेशान हैं. जिसके चलते वो करीब डेढ़ साल से लड़ रहे हैं लड़ाई और अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिये आये दिन मुंबई के नाबार्ड बिल्डिंग के गेट पर आंदोलन के लिये उन्हें बैठना पड़ रहा है.


सरकार ने बात नहीं सुनी तो तेज करेंगे आंदोलन- बैंक कर्मचारी


नाबार्ड के बैंक कर्मचारियों के मुताबिक अगर सरकार उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं देती तो उन्हें अपना आंदोलन तेज करना पड़ेगा. जिसका असर ग्रामीण विकास के लिये नाबार्ड की तरफ से चल रही योजनाओं पर भी पड़ सकता है. नाबार्ड के सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी एवं कर्मचारी अपने यूनाइटेड फोरम के बैनर के तहत करीब डेढ़ साल से आंदोलन कर रहे हैं. आंदोलन कर रहे कर्मचारियों के मुताबिक सन 1982 में भारतीय रिजर्व बैंक के प्रबंध तंत्र ने भारतीय रिजर्व बैंक से नाबार्ड में जाने वाले अपने स्टाफ सदस्यों को यह आश्वासन दिया था कि नाबार्ड में जाने के बाद भी उनके वेतन, भत्ते और सेवानिवृत्त के लाभों को भारतीय रिजर्व बैंक के उनके सहयोगियों के समकक्ष बनाया रखा जाएगा.



नाबार्ड अधिनियम 1981 की धारा 50 के तहत यह आश्वासन लिखित रूप में भी दिया गया था. नाबार्ड और कर्मचारी संगठनों के बीच हुए पिछले द्विपक्षीय समझौतों में पेंशन सहित सभी सेवा शर्तों के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ समानता और एकरूपता बनाई रखी गई थी जिससे इस आश्वासन को और मजबूत बनाया गया. साथ ही, सन 1993 में बनी नाबार्ड पेंशन नियमावली भी भारतीय रिजर्व बैंक की पेंशन नियमावली के तर्ज पर ही तैयार की गई थी.


कर्मचारियों के साथ किए गए वादों को निभाया नहीं जा रहा


नाबार्ड कर्मचारियों का आरोप है कि भारत सरकार के अनुमोदन से पिछले आठ वर्षों में भारतीय रिजर्व बैंक की पेंशन नियमावली में किए गए संशोधनों को वित्तीय सेवाएं विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के नाबार्ड के अधिकारी और कर्मचारियों के लिए लागू करने के लिए मंजूरी नहीं दी जा रही है. इससे भारतीय रिजर्व बैंक से नाबार्ड में आए अधिकारियों और कर्मचारियों सहित नाबार्ड के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के पेंशन के विषय में भारतीय रिजर्व बैंक के साथ असमानता पैदा हुई है.


इससे नाबार्ड के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ किए गए वादों को निभाया नहीं जा रहा है और यह नाबार्ड अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन है. इसलिए नाबार्ड के सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी और कर्मचारी असंतुष्ट है और आंदोलन कर रहे हैं. नाबार्ड के कर्मचारियों का आरोप है कि उच्च पदों पर सेवानिवृत्त हुए उन वरिष्ठ अधिकारियों को भी सम्मान नही मिल रहा है. उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के उनके समकक्ष सेवानिवृत्त अधिकारियों की तुलना में बहुत ही कम पेन्शन मिलती है. इससे उनकी वित्तीय सुरक्षा का प्रश्न उत्पन्न हुआ है और बुढ़ापे में उन्हें कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है.


भारत सरकार ने इस विषय पर कोई निर्णय नहीं लिया 


नाबार्ड के नाखुश कर्मचारियों के मुताबिक 2019 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच ने भारत सरकार को इन विषयों पर 4 महीने के भीतर निर्णय लेने के लिए निर्देश दिए थे. डेढ़ वर्ष  बीत चुका है परंतु भारत सरकार ने इस विषय पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. नाबार्ड अधिकारी कर्मचारियों का यूनाइटेड फोरम और नाबार्ड के अधिकारी कर्मचारियों  का मानना है कि नाबार्ड का प्रबंध तंत्र भी उनकी मांगों के प्रति गंभीर नहीं है, वह भारत सरकार से इस बात को लेकर नियमित संपर्क नहीं कर रहा है. इसी लिये मजबूरन नाबार्ड के कार्यरत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को मिलकर अपने दफ्तर के बाहर धरना आंदोलन करने की नौबत आ गयी है जो भविष्य में और बड़ा हो सकता है.


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