Nagaland Assembly Election 2023: नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पिछले 8 साल में बीजेपी सेवन-सिस्टर्स के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर के 7 राज्यों में अपना जनाधार लगातार बढ़ा रही है. इसी का नतीजा है कि फिलहाल यहां के 6 राज्यों की सरकार में उसकी हिस्सेदारी है. इनमें से असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मणिपुर में अपने बलबूते बीजेपी सरकार चला रही है. वहीं मेघालय और नागालैंड (Nagaland) में गठबंधन सरकार में शामिल है. 


2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्वोत्तर के राज्यों में पार्टी की जमीन को मजबूत करने पर ज़ोर दे रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते हैं कि वो पूर्वोत्तर के राज्यों को 'विवादों का बॉर्डर नहीं विकास का कॉरिडोर बनाने में जुटे हैं.  इसके जरिए वे इन राज्यों के लोगों को भरोसा देते रहे हैं कि अतीत में पूर्वोत्तर की अनदेखी हुई है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. प्रधानमंत्री  मोदी के इस इरादे और प्राथमिकता से बीजेपी को भी इन राज्यों में पैर जमाने में आसानी हुई है. 


नेफ्यू रियो के पास 5वीं बार सीएम बनने का मौका


नागालैंड में इस साल एक ऐसी घटना हुई, जिससे मौजूदा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) की ताकत और बढ़ गई . वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी NPF के 21 विधायक अप्रैल 2022 में नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) में शामिल हो गए. इसमें नेता प्रतिपक्ष टी आर जेलियांग भी शामिल थे.  इससे NDPP विधायकों की संख्या बढ़कर 41 हो गई और मुख्य विपक्षी दल NPF के पास सिर्फ एक ही विधायक बच गया.  NPF ने पहले ही कह दिया है कि वो इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी. हालांकि उसके लिए अब यहां की राजनीति में फिर से जड़े जमाना बेहद मुश्किल लग रहा है. नेफ्यू रियो को बीजेपी का साथ भी मिलता रहेगा. इससे नेफ्यू रियो के पास 5वीं बार मुख्यमंत्री बनने का मौका है.  एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन का मकसद सत्ता में बने रहना है. वहीं कांग्रेस अपनी खोई जमीन को वापस पाने की कोशिश करेगी.  


नागालैंड में बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में


अगले साल एक बार फिर से बीजेपी को पूर्वोत्तर के 3 राज्यों में सत्ता बरकरार रखने के लिए विरोधी दलों की चुनौतियों से जूझना होगा. नागालैंड में बीजेपी ने धीरे- धीरे करके सत्ता में भागीदारी को सुनिश्चित किया है.  पिछली बार के चुनाव में 12 सीट जीतकर बीजेपी ऐसी स्थिति में पहुंच गई कि उसके बिना कोई भी दल सरकार नहीं बना सकता था. इस बार भी बीजेपी  नेफ्यू रियो की NDPPसे मिलकर चुनाव लड़ेगी. पिछले साल इस तरह की खबरें आ रही थी कि बीजेपी अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहती है, लेकिन सत्ता में बने रहने के लिए फिलहाल बीजेपी को ये सही नहीं लग रहा है. इसलिए वो NDPP का साथ नहीं छोड़ना चाहती है. इस साल जुलाई में ही दोनों दलों ने साझा बयान जारी कर बता दिया था कि बीजेपी 20 सीटों पर और NDPP 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.  


कांग्रेस के लिए 2023 की राह है मुश्किल


एक समय था जब नागालैंड की राजनीति में कांग्रेस की तूती बोलती थी. हालांकि कांग्रेस के लिए इस बार यहां के चुनाव में कोई मौका नहीं दिख रहा है. कांग्रेस के पास एक भी विधायक नहीं है. पिछले पांच साल में उसके कई नेता सत्ताधारी पार्टी का दामन पकड़ चुके हैं. कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर बड़े जनाधार वाला अब कोई भी नेता नहीं बचा है. इसके बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के थेरी का मानना है कि नागालैंड के लोग नेफ्यू रियो से ऊब चुके हैं और नागा समस्या के समाधान के लिए लोग कांग्रेस पर ही भरोसा जताएंगे. कांग्रेस ने कुछ दिन पहले ही  प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के थेरी की अगुवाई में पीएसी गठित की है. इसमें पुराने दिग्गज नेता और 5 बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रह चुके एस सी जमीर को भी शामिल किया है. 


नागालैंड में टीएमसी भी ढूंढ रही है मौका


ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की नजर भी नागालैंड में अपनी पैठ बढ़ाने पर है. इस बार वो भी चुनाव लड़ेगी. ममता बनर्जी का मानना है कि नागालैंड में उनकी पार्टी  NPF और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर अपनी जड़े मजबूत कर सकती है.  अलग राज्य की मांग कर रहे  नागा समूहों के बीच भी टीएमसी अपना दायरा बढ़ा रही है.


RPP से बड़े दलों को हो सकता है नुकसान


इस बार नागालैंड के चुनावी बिसात में एक नए दल राइजिंग पीपुल्स पार्टी (RPP) की इंट्री हो रही है. ये दल 2021 में अस्तित्व में आया है. नागालैंड में उग्रवादी और चरमपंथी समूहों की ओर से लोगों से की जाने वाली जबरन उगाही का विरोध करने के मकसद से RPP का उदय हुआ था. इनमें नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड (NSCN) जैसे चरमपंथी समूह भी शामिल हैं.  RPP संस्थापक और अध्यक्ष जोएल नागा ने नागा समस्या का हल हुए बिना चुनाव नहीं कराने की  मांग की है. ये चाहते हैं कि राज्य में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए. 


ग्रेटर नागालैंड या नागालिम की मांग से जुड़ा मुद्दा


नागा बहुल इलाकों को लेकर एक ग्रेटर नागालैंड या नागालिम (Nagalim) राज्य बनाने की मांग वहां के नागा समुदाय और नागा संगठन लंबे  वक्त से कर रहे हैं. ग्रेटर नागालैंड की अवधारणा में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर कुछ इलाके भी शामिल हैं. नागा समूह इस अलग राज्य के लिए अलग संविधान और अलग झंडा  चाहते हैं. 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड ( NSCN) ने अलग होने की मांग को लेकर सशस्त्र आंदोलन शुरु कर दिया. बाद में मतभेद होने पर ये दो गुटों गुट NSCN (IM) और NSCN (Khaplang) में बंट गया.   NSCN (IM) गुट ने 1997 में केंद्र सरकार के साथ युद्धविराम से जुड़े करार पर भी हस्ताक्षर किए.  खापलांग गुट ने भी 2000 में इस पर सहमति जताई, लेकिन बाद में वो इससे पलट गया. नागा मुद्दे के स्थायी समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में 3 अगस्त 2015 को  एनएससीएन-आईएम और केंद्र सरकार के बीच समझौता हुआ था. ये करार 18 साल तक चली 80 दौर की बातचीत के बाद संभव हो पाया था. ये एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट था जिसके तहत भविष्य में नागा मुद्दे का स्थायी समाधान निकालने की राह ढूंढनी थी. हालांकि  1997 के करार को अब 25 साल हो गए हैं और 2015 के करार के 7 साल से ज्यादा हो गए हैं. फिर भी इसका स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है. ये इस बार के चुनाव में बड़ा मुद्दा रहेगा. एनएससीएन-आईएम अभी भी अलग झंडे और संविधान की मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं है. शांति प्रकिया में ये मांग ही सबसे बड़ी बाधा है.


फ्रंटियर नागालैंड का मुद्दा भी छाया रहेगा


इस बार के चुनाव में फ्रंटियर नागालैंड के नाम से अलग राज्य की मांग भी बड़ा मुद्दा होगा. पूर्वी हिस्से के 7 नागा समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाला ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ENPO)ने पहले ही कह दिया है कि अगर केंद्र फ्रंटियर नागालैंड नहीं बनाता है, तो वो चुनाव का बहिष्कार करेगा. ENPO इसके लिए पूर्वी नागालैंड के जिलों में जनमत संग्रह की माग कर रहा है. यहां के कुल 16 जिलों में से छह किफिरे, लोंगलेंग, मोन, नोक्लाक, शामतोर और त्युएनसांग में ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन का बड़ा जनाधार है. इन जिलों में चांग, ​​खियामनिउंगन, कोन्याक, फोम, संगतम, तिखिर और यिमखिउंग समूह के लोग रहते हैं. राज्य की 60 में 20 सीटें इन छह जिलों में आते हैं. इनमें से 15 सीटें फिलहाल एनडीपीपी के पास है. वहीं बीजेपी के पास 4 और एक सीट निर्दलीय के पास है. मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो पहले कह चुके हैं कि राज्य के पूर्वी हिस्से के लोगों की ओर से अलग राज्य की मांग करना गलत नहीं है.  अलग राज्य की मांग से होने वाले नुकसान से बचने के लिए मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो सभी दलों और नागा समूहों से इस मसले पर साथ आकर बातचीत करने पर ज़ोर दे रहे हैं. 


2018 में  एनडीपीपी-बीजेपी ने जीती बाजी


2018 में नागालैंड में  नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF)और एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन के बीच मुख्य मुकाबला था.  इस विधानसभा चुनाव में एनडीपीपी के नेफ्यू रियो  नॉर्दर्न-2 अंगामी सीट से निर्विरोध निर्वाचित हुए थे. उनके खिलाफ किसी ने भी नामांकन नहीं किया था. इस वजह से 2018 में नागालैंड की 60 में 59 सीटों पर वोट डाले गए थे. 


एनडीपीपी को बीजेपी के साथ से मिला लाभ 


2018 के चुनाव में नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP)को 18 और उसकी सहयोगी बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली. एनडीपीपी को 25.3% और बीजेपी को 15.31% वोट मिले. नागा पीपुल्स फ्रंट (NPF)  26 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. वोट शेयर में उसका हिस्सा 38.78% था, लेकिन एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन आसानी से बहुमत हासिल करने में कामयाब रही.  पिछली बार कांग्रेस का यहां से सफाया हो गया. उसे एक भी सीट नसीब नहीं हुई. 18 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद उसे सिर्फ दो फीसदी वोट मिले.  नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPEP)को दो सीटें और जेडीयू को एक सीट पर जीत मिली. निर्दलीय के खाते में एक सीट गई थी.


2018 में बीजेपी का वोटशेयर बढ़ा


एक और कारण था जिसकी वजह से पिछले चुनाव में बीजेपी का जनाधार बढ़ा. इस चुनाव से पहले जनवरी 2018 में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के एल चिशी (KL Chishi) 12 दूसरे नेताओं के साथ  बीजेपी में शामिल हो गए थे. के एल चिशी वहां के कद्दावर नेता माने जाते थे. इस वजह से 2018 के चुनाव में बीजेपी को लाभ भी पहुंचा था. हालांकि बाद में उन्होंने मार्च 2019 में फिर से कांग्रेस का हाथ थाम लिया. इस चुनाव से पहले बीजेपी ने सत्ताधारी पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट के साथ गठबंधन को खत्म कर दिया था. बीजेपी नई बनी पार्टी एनडीपीपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लडी.  


नागालैंड में नेफ्यू रियो का चलता है सिक्का


मौजूदा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो पिछले 20 साल से नागालैंड की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे हैं. 2018 में वे चौथी बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बने थे. एनडीपीपी बनाने से पहले नेफ्यू रियो NPF के सबसे बड़े नेता थे. 2002 में NPF में शामिल होने से पहले नेफ्यू रियो कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते थे.  अक्टूबर 2002 में नागालैंड पीपुल्स काउंसिल (NPC) का नाम बदलकर NPF कर दिया गया था. नेफ्यू रियो का ही करिश्मा था कि 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नागालैंड की सत्ता से बाहर चली गई. इससे पहले कांग्रेस यहां लगातार दस साल से सत्ता पर काबिज थी. 2003 में नेफ्यू रियो पहली बार नागालैंड के मुख्यमंत्री बने. 2017 में नेफ्यू रियो ने NPF से भी नाता तोड़ लिया और बागियों के साथ मिलकर नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) की नींव रखी. 2018 में बीजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में कामयाब हुए.


2003 से लगातार तीन बार NPF ने जीती बाजी 


कांग्रेस छोड़ने के बाद नेफूयो रियो ने NPF के लिए ऐसी सियासी जमीन तैयार कर दी कि अगले तीन चुनाव में वो नागालैंड की सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही. 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों में  जीत दर्ज कर NPF ने सरकार बनाई.  2013 में NPF को 38 सीटों  (47% वोट) पर जीत मिली. वहीं 2008 में उसे 26 सीटें (33.62%वोट) मिली थी. 2003 में NPF को  19 सीटें (29.76%वोट) हासिल हुई थी. इन चीन चुनावों में एनपीएफ का वोटशेयर नागालैंड में लगातार बढ़ रहा था. 


नागालैंड में बीजेपी का राजनीतिक सफर


1987 में बीजेपी पहली बार यहां के सियासी दंगल में उतरी थी. बीजेपी दो सीटों पर लड़ी. बीजेपी को किसी सीट पर जीत नहीं मिली और  दोनों सीट को मिलाकर सिर्फ 926 वोट पा सकी. 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 6 सीटों पर लड़ी लेकिन किसी पर भी जीत नहीं  सकी. उसे सिर्फ आधा फीसदी वोट (3,755 वोट) ही मिल पाए. बीजेपी को विधानसभा में पहली सीट 2003 के चुनाव में नसीब हुई. इस बार नागालैंड में बीजेपी 7 सीटें  जीतने में कामयाब हुई . उसे 10.88% वोट हासिल हुए. 2008 में बीजेपी के जनाधार में एक बार फिर से गिरावट आई. 2008 में बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली . उसे 5.35% वोट हासिल हुए. 2013 में तो बीजेपी सिर्फ एक सीट पर सिमट गई और उसका वोटशेयर 1.75% तक पहुंच गया. हालांकि 2018 में नेफ्यू रियो की पार्टी से गठबंधन से नागालैंड की राजनीति में बीजेपी का दखल बढ़ गया. इस बार 12 सीट जीतने के साथ बीजेपी पहली बार 15 फीसदी से ज्याद वोट हासिल करने में कामयाब रही. 


2003 से बीजेपी की सत्ता में भागीदारी


2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद  NPF और  BJP ने मिलकर डेमोक्रिटिक एलायंस ऑफ नागालैंड बनाया. उस वक्त एनपीएफ को बहुमत नहीं मिल पाई थी. इस एलांयस के बाद वहां नेफ्यू रियो की अगुवाई में सरकार बनी. उसके बाद से 2018 तक इसी की सत्ता चलते रही. 2018 चुनाव के पहले नेफ्यू रियो की पार्टी NDPP और बीजेपी का गठबंधन हो गया. इस तरह से  करीब 20 साल या लगातार चार टर्म से बीजेपी नागालैंड की सरकार का हिस्सा है.  


नागालैंड की सियासत में कांग्रेस की तूती बोलती थी
करीब 20 साल से कांग्रेस नागालैंड की सत्ता से बाहर है. एक वक्त था जब नागालैंड की सियासत में कांग्रेस की तूती बोलती थी. कांग्रेस पहली बार 1977 में नागालैंड के राजनीतिक गलियारे में उतरी. उस वक्त नागालैंड की सियासत में United Democratic Front का कब्जा था.  1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 37 उम्मीदवार उतारे और उनमें से 15 को जीत मिली. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बहुमत हासिल करने में कामयाब रही.लेकिन नागालैंड के लोगों को कांग्रेस के तौर पर नया विकल्प भी दिखने लग गया. 1982 में हुए अगले चुनाव में कांग्रेस को 24 सीटें मिली. 1987 में 34 सीट जीतकर पहली बार कांग्रेस नागालैंड में सरकार बनाने में कामयाब हुई. दो साल बाद ही नागालैंड में फिर से चुनाव हुए. 36 सीट जीतकर 1989 में कांग्रेस सत्ता बरकरार रखने में सफल रही. इसके बाद 1993 (35 सीट) और 1998 (53 सीट) में भी कांग्रेस सत्ता में बनी रही. नागालैंड में लगातार चार बार कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई. 


कांग्रेस नेता एस सी जमीर का था दबदबा  


कद्दावर नेता एस सी जमीर का जलवा था, जिसकी वजह से 1987 से 2003 तक नागालैंड की सत्ता पर कांग्रेस विराजमान रही. एससी जमीर 1961 में  नागालैंड से पहले लोकसभा सांसद बने थे. 1970 तक वे लोकसभा सांसद रहे. राज्यसभा के सांसद रह चुके एस सी जमीर नागालैंड के पांच बार (1980, 1982–1986, 1989–90 और 1993–2003)मुख्यमंत्री रहे हैं. शुरुआत में दो बार वे Progressive United Democratic Front के सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री बने. 1989 में उनकी पार्टी का कांग्रेस में विलय हो गया. वे तीन बार कांग्रेस सदस्य के तौर पर मुख्यमंत्री बने. जमीर 1993 से 2003 तक लगातार 10 साल मुख्यमंत्री रहे.


1998 के चुनाव का दिलचस्प किस्सा
नागालैंड का 1998 का विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प था. इसमें  कांग्रेस ने रिकॉर्ड तोड़ जीत हासिल की. कांग्रेस यहां की 53 सीट जीतने में कामयाब रही. निर्दलीय के खाते में 7 सीटें गई. दरअसल इस चुनाव में कांग्रेस और निर्दलीय के अलावा किसी ने हिस्सा ही नहीं लिया.  1997 में भारत-नागा (Indo-Naga) युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर हुआ. नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) और भारत सरकार के बीच ये करार हुआ था. इस समझौते के मुताबिक NSCN-IM को भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला रोक देना था. उसके बाद NSCN और Naga Hoho (एक आदिवासी निकाय) ने मांग की कि आगामी चुनावों को शांति वार्ता के खत्म होने तक टाल दिया जाए. नागा समूहों ने पार्टियों से चुनाव से दूर रहने की धमकी देते हुए हिंसा करने की बात कही.
चुनाव टाला नहीं गया और 1998 में  चुनाव हुआ. सिर्फ कांग्रेस और निर्दलीय ही चुनाव लड़े. इसका कांग्रेस को जमकर फायदा मिला. 


2003 से कांग्रेस का गिरने लगा ग्राफ 
2003 के चुनाव से कांग्रेस का सियासी ढलान शुरू हो गया. सीटों के साथ-साथ वोटशेयर भी तेजी से नीचे आ गए. 2003 में कांग्रेस 53 सीट से घटकर 21 सीट (35.86% वोट) पर पहुंच गई. 2008 में कांग्रेस को 23 सीटें (36.28% वोट) हासिल हुई. 2013 में कांग्रेस ने 8 सीटों (24.89% वोट) पर जीत दर्ज की. कांग्रेस के ये 8 विधायक बाद में NPF में शामिल हो गए थे.  2018 में कांग्रेस 18 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन उसे किसी भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई.


नागालैंड को 1963 में राज्य का दर्जा मिला. 1964 में यहां पहली बार चुनाव हुए. नागालैंड में विधानसभा की कुल 60 में से 59 सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित है. यहां 88 फीसदी लोग ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं. 


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