2022 में आंशिक ढील अब पूरे नगालैंड से AFSPA हटाने की बात; पूर्वोत्तर में क्यों चुनावी मुद्दा बन गया है यह कानून?
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विकास, पूर्वी नागालैंड के अधिकारों से जुड़े कुछ मुद्दे हैं. जिनको चुनाव के बाद हल कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि आने वाले तीन चार सालों में अफस्पा हटा दिया जाएगा.
नगालैंड में 27 फरवरी को 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान होना है, जिसके नतीजे 2 मार्च को आएंगे. इससे पहले प्रचार के लिए नगालैंड गए देश के गृह मंत्री अमित शाह ने आने वाले 4 सालों में अफस्पा हटाने का वादा किया है.
दरअसल नगालैंड के तुएनसांग में एक रैली को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आने वाले तीन-चार सालों में नगालैंड से AFSPA हटा दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि नगा शांति समझौते को लेकर बातचीत जारी है.
बता दें कि उत्तर पूर्वी राज्यों में लोग काफी लंबे समय से अफस्पा कानून हटाने की मांग कर रहे हैं और यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी है. अमित शाह ने कहा कि पिछले कुछ सालों में पूर्वोत्तर में हिंसा में 70 प्रतिशत की कमी आई है. इसके अलावा सुरक्षा बलों की मौत में भी 60 प्रतिशत की कमी आई है और नागरिकों की मौत भी 83 फीसदी कम हो गई है.
अमित शाह ने कहा कि विकास, पूर्वी नगालैंड के अधिकारों से जुड़े कुछ मुद्दे हैं. जिनको चुनाव के बाद हल कर दिया जाएगा. ऐसे में जानते हैं कि आखिर क्या है ये विवादित अफस्पा कानून, इसके नाम से ही क्यों भड़क जाते हैं लोग?
पहले समझते हैं कि क्यों पड़ी थी AFSPA की जरूरत?
आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट ( AFSPA) को साल 1958 में लागू किया गया था. इसका काम उग्रवाद और स्थानीय अलगाववादी गुटों के विद्रोह को खत्म करना और देश में आंतरिक शांति बहाल करना था. हालांकि इस एक्ट को प्रवर्तनीय किया गया था. ताकि इसमें बदलाव किया जा सके.
क्या है AFSPA?
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट को मूल स्वरूप अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था. उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे.
साल 1947 में देश के आजाद होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया. साल 1958 में अफस्पा को एक अध्यादेश के जरिए लाया गया. इसे तीन महीने बाद ही संसद की स्वीकृति मिल गई और अफस्पा 11 सितंबर 1958 को कानून के रूप में लागू हो गया.
पहले तो इस कानून को पूर्वोत्तर और पंजाब के अशांत क्षेत्रों में लागू किया गया. इस कानून को जिन जगहों पर लागू किया गया था उनमें से ज्यादातर की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सटी थीं.
अशांत क्षेत्रों में इस एक्ट के जरिए कुछ विशेषाधिकार दिए गए थे. इस एक्ट के तहत कुछ मामलों में अफस्पा के सुरक्षाबलों को असीमित अधिकार दिया गया. जिसमें बिना किसी वारंट के किसी की भी जांच कर लेना. कभी भी किसी के भी घर की तलाशी ले लेना शामिल था. इस एक्ट के तहत अफस्पा के सुरक्षाबलों के पास इतनी शक्ति होती है कि वह शक के आधार पर किसी भी संदिग्ध ठिकानों को तबाह कर सकते हैं.
यह एक्ट पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा कश्मीर में भी लागू है. और इसे समय-समय पर निरस्त करने की मांग उठाई जाती रही है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इस धारा का दुरुपयोग होता रहा है. कई मामलों में सुरक्षाबलों ने इस अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया है.
किन क्षेत्रों में लगाया जाता अफस्पा एक्ट
जब किसी भौगोलिक क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है और सरकार चाहती है कि वहां शांति व्यवस्था बनी रहे. ऐसे स्थिति में यह कानून प्रासंगिक हो जाता है. मेघालय से साल 2018 में, त्रिपुरा से साल 2015 में और 1980 के दशक में मिजोरम से इस एक्ट को पूरी तरह हटा लिया गया था.
ये अशांत क्षेत्र क्या होते हैं?
अशांत क्षेत्र यानी का मतलब है वो इलाका जहां शांति बनाए रखने के लिए सैन्य बलों की मदद सबसे जरूरी है. कानून की धारा 3 के तहत, किसी भी क्षेत्र में अलग अलग धार्मिक, नस्ली, भाषा या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के सदस्यों के कारण हो रहे मतभेदों या विवादों के कारण उसे अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया जाता है. केंद्र सरकार, राज्य के राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल किसी भी क्षेत्र को अशांत घोषित कर सकते हैं.
वर्तमान में किन किन राज्यों में लागू है ये अफस्पा कानून?
AFSPA को पूर्वोत्तर के कई राज्यों में लागू किया गया है. हां ये बात अलग है कि समय-समय पर स्थिति की समीक्षा कर इसे हटा भी दिया जाता है. इस कानून को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़ जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में लागू किया गया था.
फिलहाल, अफस्पा जम्मू-कश्मीर, नगालैंड, असम, मणिपुर (राजधानी इम्फाल के सात विधानसभा क्षेत्रों को छोड़कर) और अरुणाचल प्रदेश के में लागू है.
अफस्पा के तहत विशेष शक्तियां
1. अफ्स्पा कानून के तहत सशस्त्र बालों को अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने की विशेष शक्तियां दी गई है. इस कानून से मिलने वाले अधिकार का इस्तेमाल कर सशस्त्र बल किसी भी इलाके में पांच लोग या पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा सकते हैं.
2. अगर सशस्त्र बलों को इस बात की भनक लग जाए कि कोई व्यक्ति कानून तोड़ रहा है तो वह उसे उचित चेतावनी देने के बाद बल का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा सशस्त्र बलों के पास गोली चलाने का भी अधिकार है.
3. अफस्पा कानून के तहत सशस्त्र बलों को केवल शक होने पर बिना किसी वारंट के किसी की भी गिरफ्तारी कर सकते हैं और उसके घर में तलाशी ले सकते हैं.
कानून के गलत इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है
पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में स्थानीय पुलिस या भारतीय सेना के खिलाफ ये आरोप लगता रहा है कि यहां सेना फ़र्ज़ी मुठभेड़ों करते हैं जिसमें स्थानीय नागरिकों की हत्या भी हो जाती है. इन राज्यों के स्थानीय लोग इस बात से भी आहत हैं कि कई ऐसी मुठभेड़ें है जो फर्जी साबित हो चुका है लेकिन इसके बाद भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. मणिपुर में ऐसे कई परिवार हैं जिन्होंने सालों से इंसाफ का इंतज़ार किया है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इम्फाल शहर से कुछ दूर सेकता गाँव में रीटा फैरोइजाम भी उन तमाम महिलाओं में से हैं जो आज भी अपने परिवार से किसी को खो देने के बाद इंसाफ का इंतज़ार कर रही हैं. साल 2004 में रीटा के पति सानाजीत की एक सैनिक कार्रवाई में मौत हो गई थी. इस मामले की जांच हुई और सीबीआई ने इसे फर्जी मुठभेड़ करार दिया और भारतीय सेना के अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की सिफारिश. हालांकि केंद्र सरकार ने अफस्पा कानून का हवाला दिया और भारतीय सेना में किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई.
अफस्पा को लेकर कब-कब हुआ है विरोध?
आयरन लेडी: देश में अफस्पा के विरोध की कहानी जब भी सुनाई जाएगी सबसे पहला नाम मणिपुर की आयरन लेडी इरोम शर्मिला का लिया जाएगा. साल 2000 के नवंबर महीने में सैन्य बलों ने एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को गोली मार दी थी. जब यह घटना हुई तब इरोम शर्मिला भी वहीं मौजूद थीं. उन्होंने इसका विरोध करते हुए भूख हड़ताल शुरू कर दिया और पूरे 16 सालों तक हड़ताल पर रही. हालांकि अगस्त 2016 में जब उन्होंने भूख हड़ताल खत्म किया उसके बाद उन्होंने चुनाव भी लड़ा था, जिसमें उन्हें नोटा (NOTA) से भी कम वोट मिले.
साल 2004 में 10-11 जुलाई के बीच रात में 32 साल के थंगजाम मनोरमा का कथित तौर पर सेना के जवानों ने रेप कर हत्या कर दी थी. मनोरमा का शव क्षत-विक्षत हालत में बरामद हुआ था. इस घटना से नाराज होकर 15 जुलाई 2004 को करीब 30 मणिपुरी महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था.
नगालैंड में चुनाव
नगालैंड में 27 फरवरी को 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान होना है, जिसके नतीजे 2 मार्च को आएंगे. 59 सीटों के लिए चुनाव मैदान में कुल 183 उम्मीदवार हैं और इनमें सिर्फ चार महिला उम्मीदवार हैं. यहां फिलहाल नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी की सरकार है और नेफ्यू रियो मुख्यमंत्री के पद पर हैं.
एनडीपीपी साल 2017 में अस्तित्व में आई थी. एनडीपीपी ने तब 18 और बीजेपी ने 12 सीटें जीती थीं. दोनों दलों ने चुनाव से पहले गठबंधन किया था. सरकार में एनडीपीपी, बीजेपी, NPP शामिल हैं. पिछले साल ही NDPP और बीजेपी ने संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. दोनों दलों ने संयुक्त बयान में कहा था कि NDPP 40 और बीजेपी 20 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेगी.