(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
नमक हराम ड्योढ़ी: विश्वासघात की सबसे बड़ी कहानी की गवाह, जिसके चलते भारत हुआ गुलाम
खंडहर बन चुकी यह ड्यूढ़ी पयर्टकों को आज भी उन घटनाओं की याद दिलाती हैं जिन्होंने इस देश का इतिहास हमेशा के लिए बदलकर रख दिया.
भारतीय इतिहास में मीर जाफर एक ऐसा नाम है जो 'विश्वासघाती' के तौर पर याद रखा जाता है. वह बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था, लेकिन बाद में उसने कुछ ऐसा किया कि उसका नाम इतिहास में गद्दारी का प्रतीक बन गया. मीर जाफर दिन-रात एक ही सपना देखता था कि किसी भी तरह वह बंगाल का नवाब बन जाए. आखिरकार अंग्रेजों की मदद से उसने यह सपना पूरा कर लिया. अंग्रेज अफसर रॉबर्ट क्लाइव ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने का लालच दे दिया था.
23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान में हुआ. अंग्रेजों और बंगाल के नवाब सिराजउद्दौला के बीच जो युद्ध हुआ है उसने इतिहास की धारा ही मोड़ कर रख दी. इस युद्ध में मीर जाफर अंग्रेजों से जाकर मिल गया. सिराजउद्दौला की हार हुई. इस जीत के साथ ही भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के स्थापना की शुरुआत माना जाता है.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के लागबाग इलाके में एक हवेली है, जिसे मीर जाफर की हवेली माना जाता है. मीर जाफर की गद्दारी की वजह से ही इस हवेली को 'नमक हराम ड्योढ़ी' कहा जाता है.
इसी हवेली में मीर जाफर के बेटे मीर मीरन ने नवाब सिराजुद्दौला को जान से मारने का हुक्म दिया था. जुलाई 1757 को सिराजुद्दौला इसी 'नमक हराम ड्योढ़ी' में फांसी पर लटकाया गया था और अगले दिन उनकी लाश को हाथी पर चढ़ाकर पूरे मुर्शिदाबाद में घुमाया गया था. खंडहर बन चुकी यह ड्यूढ़ी पयर्टकों को आज भी उन घटनाओं की याद दिलाती हैं जिन्होंने इस देश का इतिहास हमेशा के लिए बदलकर रख दिया.
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