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दिल्लीः नंदिता दास की किताब 'Manto & I' लॉन्च हुई, फिल्म डायरेक्टर ने कहा- 2012 के बाद देश में बढ़ा है अलगाव
एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में नंदिता दास ने बताया कि ये किताब एक कलाकार का सफर है, ये किताब सआदत हसन मंटो के बारे में तो है ही लेकिन उससे ज्यादा ये मंटो फ़िल्म के बनने की कहानी है.
नई दिल्लीः 2018 में आई नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की फ़िल्म 'मंटो' कैसे बनी, फिल्म के बनने में किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा, पर्दे के पीछे कितनी मेहनत लगी? इन तमाम सवालों का जवाब आपको मिलेगा 'मंटो' फ़िल्म की राइटर और डायरेक्टर नंदिता दास की किताब 'Manto & I' में. आज दिल्ली में नंदिता दास की किताब की लॉन्चिंग हुई, लॉन्चिंग के मौके पर फ़िल्म और उसके बनने के सफर के दौरान की तमाम यादें साझा कीं.
एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में नंदिता दास ने बताया कि ये किताब एक कलाकार का सफर है, ये किताब सआदत हसन मंटो के बारे में तो है ही लेकिन उससे ज्यादा ये मंटो फ़िल्म के बनने की कहानी है. इसमें उन्होंने बताया है कि ये फ़िल्म किस तरह बनी, इसमें कितने लोग जुड़े, पर्दे के पीछे की क्या-क्या कहानियां रहीं. लोग पर्दे पर फिल्म देखकर उसकी बुराई तो कर देते हैं लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि इसे बनाने में कितनी मेहनत लगी है या क्या-क्या उतार-चढ़ाव रहे हैं, क्या कुछ हास्यास्पद हुआ है, क्या परेशानियां आईं! इस किताब में फ़िल्म बनाने में लगे मेरे 6-7 साल की कहानी है.
नंदिता दास ने कहा कि आज सआदत हसन मंटो की पहले से ज्यादा जरूरत है, 2012 में जब इस फ़िल्म को बनाने के बारे में उन्होंने सोचना शुरू किया उसके बाद से अब तक मंटो और उनकी सोच की प्रासंगिकता बढ़ी है. नंदिता दास कहती हैं कि मंटो इंसानियत को हमेशा महत्व देते थे, उन्होंने अपनी एक कहानी में लिखा था कि 'ये मत कहो कि एक लाख हिन्दू मरे हैं, ये मत कहो कि एक लाख मुसलमान मरे हैं, ये कहो कि दो लाख इंसान मरे हैं.' आज की परिस्थितियों में उस इंसानियत को फिर से जगाने की बेहद जरूरत है क्योंकि आज एक-दूसरे को धर्म, राष्ट्रीयता, रंग और लिंग के आधार पर बांटा जा रहा है. 2012 के बाद से हम लोग अलगाव बढ़ा रहे हैं लेकिन अच्छे लोग भी हैं और ये दुनिया अच्छे लोगों की वजह से ही चल रही है.
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शशांक शेखर झा, एडवोकेटAdvocate
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