नई दिल्लीः 17 सितंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 69 वां जन्मदिन है. नरेंद्र मोदी भले ही 70 वें साल में प्रवेश कर रहे हों, लेकिन युवाओं के दिलों पर वे राज करते हैं. साहसिक निर्णय लेना और सपनों को पूरा करना उन्हें चिर युवा बनाता है. कुछ मामलों में तो वे युवाओं को चुनौती देते नज़र आते हैं. उनकी इन्हीं विशेषताओं में से एक विशेषता है, नई तकनीक से घुल-मिल जाना और देश के लिए उसका भरपूर उपयोग करना.


साल 2001 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने. बहुत कम लोग जानते हैं कि "लीडर मोदी" के "टेक्नोक्रेट मोदी" बनने के सफर की शुरुआत गांधी नगर से ही हुई. हम "टेक्नोक्रेट मोदी" इसलिए कह रहे हैं क्योंकि नरेंद्र मोदी आज तकनीक के अभिनव प्रयोगों के पर्याय बन गए हैं.


गांधीनगर से शुरू हुआ तकनीक का प्रयोग


गुजरात के मुख्यमंत्री बनते ही, उन्होंने सरकार में तकनीक और विज्ञान के प्रथम प्रयोग की शुरुआत गांधीनगर से ही की. विज्ञान और तकनीक उनके जीवन में ऑक्सीजन की तरह घुले हुए है. आम तौर पर उनके जेनरेशन के नेता नई तकनीक से संघर्ष करते ही नज़र आते हैं. जबकि नरेंद्र मोदी, सरकारी कामकाज और तकनीक का समन्वय कर सरकार चलाने में माहिर हैं.


साल 2001 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात में हर विभाग का आकलन करना शुरू किया. किस विभाग में कितना पोटेंशियल है, किस विभाग में कहां कमी हैं. इसी दौरान उन्हें विधायकों के माध्यम से कई इलाकों में विद्यालयों की कमी की जानकारी मिली. नरेंद्र मोदी ने इसका सही-सही आकलन करने के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का सहारा लिया.


सेटेलाइट के जरिए गुजरात के स्कूलों की हुई मैपिंग


सेटेलाइट के ज़रिए पूरे गुजरात के विद्यालयों की मैपिंग करवाई. ये पहला प्रयोग था जब किसी सरकार ने विद्यालयों की स्थापना और उनके घनत्व की जानकारी के लिए सेटेलाइट का सहारा लिया था. नतीजे भी मुख्यमंत्री मोदी के लिए चौंकाने वाले थे.


गुजरात के आदिवासी इलाकों खास तौर पर अम्बाजी (बनासकाठा) से लेकर उमरगांव (बलसाड़) की पट्टी में 30-30 किलोमीटर तक 12 वीं तक के विद्यालय नहीं थे. इसके बाद मोदी ने सैटेलाइट की मदद से विद्यालयों के लिए स्पॉट तय किये और 12 वीं तक के 25 नए विद्यालय खोले गए.


मछुआरों के लिए किया सैटेलाइट का उपयोग


"टेक्नोक्रेट मोदी" ने अंतरिक्ष विज्ञान या स्पेस टेक्नोलॉजी का दूसरा प्रयोग मछुआरों के लिए किया. समंदर में फिश कैचमेंट एरिया, मछलियों के मूवमेंट के कारण बदलता रहता है. कैचमेंट एरिया 40-50 किलोमीटर तक शिफ्ट हो जाता है. मछुआरों को सिर्फ भाग्य पर निर्भर रहना पड़ता है. सैटेलाइट के ज़रिए मछलियों के कैचमेंट एरिया की अचूक सूचनाएं मछुआरों तक पहुंचाने का काम भी नरेंद्र मोदी ने शुरू किया. पीएम मोदी से सीख कर, कई राज्य सरकारें सैटेलाइट का प्रयोग मछुआरों के लिए भी करने लगे.


प्रधानमंत्री हर महीने राज्य के अधिकारियो की बैठक लेते है. ये बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए होती है. इसमें केंद्र की योजनाओं की प्रगति की समीक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद करते हैं. एक बड़ी रोचक घटना है. बैठक के दौरान पीएम के संज्ञान में आया कि चंडीगढ़ में हर महीने 30 लाख लीटर केरोसिन इस्तेमाल होता है.


केरोसिन के कालाबजारी पर लगाम


अब पीएम मोदी खुद चंडीगढ़ रहे हैं, उनके मन में सवाल उठा आखिर उच्च माध्यम वर्ग के शहर में कौन हैं जो केरोसिन का इस्तेमाल करते हैं. ये केरोसिन, राशन की दुकानों से दिया जाता था. प्रधानमंत्री ने सबसे पहले वहां के राशन की दुकानों और उपभोक्ताओं को आधार से लिंक करवाया. 6 महीने के भीतर केरोसिन की खपत गिर कर कुछ हज़ार लीटर पर आ गयी.


नरेंद्र मोदी यहीं चुप नहीं बैठे, उन्होंने अब उन लोगो की सूची बनवाई जो अभी भी केरोसिन इस्तेमाल कर रहे थे और उन्हें उज्ज्वला योजना में गैस दी गयी. इस तरह तकनीक का इस्तेमाल कर न केवल सरकारी खजाना बचाया बल्कि प्रदूषण भी रोका. ये सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तकनीक की समझ और सूझ-बूझ से संभव हुआ.


गुजरात के गांधीनगर में देश की उत्कृष्ट फोरेंसिक इंस्टीटूट है, तेलगी घोटाले का खुलासा इसी लैब की रिपोर्ट के बाद हुआ था, नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस इंस्टीटूट को यूनिवर्सिटी बनाया. लेकिन क्यों ?


आजकल क्राइम टेक्नोलॉजी ड्रिवेन हो गए हैं. खास तौर पर सायबर क्राइम के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, ऐसे मामलों को सटीक सबूतों के साथ हल करने के लिए टेक्नोलॉजी की भी उतनी ही ज़रूरत हैं.


ये पूरी दुनिया में अकेली फ़ॉरेंसिक यूनिवर्सिटी है, इसमें 60 देशों के छात्र और विशेषज्ञ पढ़ने आ रहे हैं. अब इंटरपोल भी भारत की तकीनीकी विशेषज्ञता की मदद ले रहा. ये नरेंद्र मोदी की टेक्नोलॉजी इनोवेशन और इनोवेटिव सोच का नतीजा है.


अब हम आपको थोड़ा पीछे भी ले चलते हैं.


बात साल 1999 के आस पास की है तब नरेंद्र मोदी बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री थे. वे दिल्ली में अशोक रोड के पार्टी कार्यालय में रहते थे. एक शाम पत्रकार संजय बरागटा उनसे मिलने पहुंचे, नरेंद्र मोदी ने बातचीत में उनकी कमीज़ की पॉकेट में रखे 'नोट पैड' को देखा. मोदी ने उत्सुकतावश पूछा, नया "नोट पैड" लाये हैं क्या ?


उस समय देश में नोट पैड नए-नए आये थे. नोट पैड हाथ में लेते ही बोले अच्छा अपग्रेड वर्जन है. संजय बरागटा चौंक गए लोग नोट पैड के बारे में कम जानते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी तब भी कम्प्यूटर और तकनीक की जानकारी में सबसे आगे रहते थे.


अधिकारियों को मिली विभागीय ट्रेनिंग


प्रधानमंत्री का पदभार सभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने एडवांस तकनीक के प्रयोग की कक्षा भी लगवाई. सभी अधिकारी भी तकनीक का इस्तेमाल करें इसके लिए जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के अधिकारियों से लेकर राज्य स्तर पर भी विभागीय ट्रेनिंग दी गयी.


केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं को भष्टाचार से बचाने के लिए "टेक्नोक्रेट मोदी" ने सीधे तकनीक से जोड़ दिया है. मसलन स्वच्छ भारत योजना के "हर घर टॉयलेट" को 'जियोटेगिग' से जोड़ा गया है. इसमें जिस व्यक्ति के घर में टॉयलेट बनाया जाता है, उस जगह की फोटो खींच कर साइट पर अपलोड की जाती है. फ़ोटो अपनी जिओ लोकेशन के साथ अपलोड होती है.


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