नई दिल्ली: आज होने वाली कैबिनेट की बैठक में मोदी सरकार एक अहम फैसला कर सकती है. सूत्रों के मुताबिक़ आवश्यक वस्तु कानून 1955 में संशोधन के प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर लग सकती है. सम्भावना है कि क़ानून में बदलाव करने के लिए एक अध्यादेश को मंज़ूरी मिल सकती है ताकि ये तुरन्त प्रभावी हो सके. इन बदलावों पर काफ़ी दिनों से चर्चा हो रही है और सरकार इसे कृषि क्षेत्र और फ़सलों की सप्लाई चेन में एक बड़े सुधार की तरह पेश कर रही है.


स्टॉक सीमा लगाने का प्रावधान होगा ख़त्म


कानून में बदलाव करके दाल, आलू, प्याज़ और तिलहन समेत 8 आवश्यक वस्तुओं को स्टॉक होल्डिंग सीमा के दायरे के बाहर कर दिया जाएगा. इसका मतलब ये होगा कि कोई व्यापारी अपनी इच्छा के मुताबिक़ किसानों से वस्तुएं ख़रीद कर अपने स्टॉक में रख सकेगा. वर्तमान व्यवस्था के मुताबिक़ सरकार समय समय पर महंगाई रोकने के लिए इन वस्तुओं पर स्टॉक सीमा लगाती है. हालांकि पिछले सालों में दाल और प्याज़ जैसी वस्तुओं की बढ़ती महंगाई को रोकने के लिए सरकार ने इन प्रावधानों का इस्तेमाल कर क़ीमत नीचे लाने में काफ़ी हद तक सफलता भी पाई है. ऐसे में इस फैसले से इन वस्तुओं की जमाखोरी और कृत्रिम तरीके से दाम बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. ख़ासकर तब इन वस्तुओं की पैदावार कम हुई हो.


आपात परिस्थितियों में कानून का उपयोग होगा


हालांकि सूत्रों के मुताबिक़ सरकार ने प्राकृतिक आपदा या सूखा जैसे समय में या किसी अन्य कारण से इन वस्तुओं की क़ीमत अप्रत्याशित रूप से बढ़ने पर स्टॉक सीमा लगाने का विकल्प खुला रखेगी. इसके लिए सरकार ने एक फार्मूला भी तैयार किया है. इसके मुताबिक़ अगर इन 8 वस्तुओं की क़ीमत का पिछले 1 साल या पिछले पांच साल के औसत दाम, जो भी कम हो , को आधार बनाया जाएगा. अगर आलू , प्याज़ और टमाटर जैसे जल्दी नष्ट होने वाले सामानों के मामले में क़ीमत 50 फ़ीसदी और दाल और तिलहन जैसी वस्तुओं के मामले में 100 फ़ीसदी से भी ज़्यादा बढ़ती है तो फिर सरकार के पास क़ीमत नियंत्रित करने के लिए स्टॉक सीमा लगाने का अधिकार होगा.


एपीएमसी कानून में भी बदलाव की चर्चा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का सिलसिलेवार ऐलान करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस क़ानून में बदलाव का ज़िक्र किया था. सीतारमण ने कहा था कि ये क़ानून उस वक़्त बना था जब देश में अनाज की कमी थी जो अब नहीं है. उनका कहना था कि क़ानून के इन प्रावधानों के चलते किसानों को अपनी फ़सल का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है. हालांकि वित्त मंत्री ने इस क़ानून में बदलाव के साथ साथ कृषि उत्पाद बाजार समिति क़ानून में भी बदलाव की बात कही थी ताकि किसानों को उनकी फ़सल का उचित दाम और इन फ़सलों की सप्लाई चेन में संतुलन बिठाया जा सके. कृषि उत्पाद बाज़ार समिति क़ानून में भी जल्द ही बदलाव की संभावना है.


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