21 साल बाद अहमदाबाद की निचली अदालत ने गुजरात के नरोदा गाम दंगा मामले में सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया है. इन आरोपियों में गुजरात के पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी, विश्व हिंदू परिषद के जयदीप पटेल जैसे बड़े नाम भी शामिल थे. एसआईटी कोर्ट के फैसले पर पीड़ित पक्ष सवाल उठा रहे हैं, जबकि आरोपियों के परिवार इसे न्याय बता रहा है.
एसआईटी कोर्ट के फैसले पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- नरोदा गाम में एक 12 साल की बच्ची समेत 11 लोगों की मौत हुई थी. 11 साल बाद कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया है. इस फैसले के बाद क्या हमें कानून की शासन पर जश्न मनाना चाहिए या इसके निधन पर निराश होना चाहिए.
साल 2002 में गोधरा में ट्रेन जलने के बाद गुजरात में 9 जगहों पर भीषण दंगा हुआ था. उसमें एक नरोदा गाम भी शामिल था. दंगे में 11 लोग जलाकर मारे गए थे. कोर्ट के फैसले पर सरकारी वकील ने कहा है कि हम पूरी रिपोर्ट सरकार को भेजेंगे और अगर अनुमति मिली तो हाईकोर्ट में इसे चुनौती देंगे.
नरोदा गाम दंगा मामले में एसआईटी कोर्ट ने आरोपियों को भले ही बरी कर दिया है, लेकिन कई ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब नहीं मिला है. इस स्टोरी में आइए इन्हीं सवालों के बारे में विस्तार से जानते हैं...
1. 11 लोगों का हत्यारा कौन?
साल 2002 में गुजरात में 9 बड़े दंगे हुए, जिसमें गोधरा, गुलबर्ग सोसायटी, नरोदा पाटिया, बेस्ट बेकरी, नरोदा गाम, ओडे विलेज और दीपडा दरवाजा प्रमुख हैं. सभी 9 जगहों पर हुए इस भीषण दंगे में 324 लोग मारे गए थे. नरोदा गाम में 11 लोगों की मौत हुई थी.
गुजरात दंगे की जांच के लिए 2009 में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी ने कमान संभाली थी. नरोदा गाम का फैसला सबसे अंत में आया है. इससे पहले के सभी 8 केसों में 154 लोग दोषी ठहराए गए और उन्हें उम्रकैद तक की सजा मिली. हालांकि, 148 लोग बरी भी हुए.
गुजरात दंगे से जुड़े नरोदा गाम केस पहला है, जिसमें एक भी दोषी को सजा नहीं हुई है. ऐसे में सवाल उठता है कि नारोद गाम में मारे गए 11 लोगों की हत्या किसने की?
नरोदा पाटिया में 97 लोग मरे थे, जिसमें 32 दोषी ठहराए गए थे. सरदारपुरा में 33 की मौत हुई थी, 17 दोषी करार दिए गए, जबकि ओडे विलेज में 23 लोगों की हत्या मामले में 9 दोषियों को सजा सुनाई गई थी.
इसी तरह दीपडा दरवाजे में 11 लोग मारे गए थे. कोर्ट ने इस मामले में 22 लोगों को दोषी करार दिया था. गुलबर्ग सोसाइटी में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले में 24 दोषियों को सजा मिली.
नरोदा पाटिया में बाबू बजरंगी और माया कोडनानी निचली अदालत से दोषी करार दी गई थी. हालांकि, हाईकोर्ट ने 2018 में कोडनानी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था. नरोदा पाटिया और नरोदा गाम का दंगा एक ही वक्त हुआ था.
2. नानावती कमीशन की रिपोर्ट का क्या?
गुजरात में दंगे के बाद जांच के लिए जस्टिस जीटी नानावती और जस्टिस अक्षय मेहता आयोग बनाया गया. आयोग ने प्रत्यक्षदर्शियों, पुलिस के जवानों और पीड़ित परिवारों के बयान के आधार पर 142 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की.
आयोग की इस रिपोर्ट में नरोदा गाम दंगे का भी जिक्र है. रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों के हवाले से कहा गया है कि जब नरोदा पाटिया में दंगा भड़क रहा था, उसी वक्ता नरोदा गांव से भी दंगा होने की सूचना आई थी. नरोदा गाम में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ता ही शामिल थे.
नरोदा पुलिस स्टेशन में उस वक्त तैनात अधिकारियों ने कहा कि नरोदा पाटिया में दंगा कंट्रोल के लिए सारे पुलिसकर्मी को तैनात कर दिया गया था, जिस वजह से वहां पुलिस नहीं भेजा जा सका. आयोग ने लिखा है कि नरोदा गाम में लोग उपद्रवियों के रहम पर जिंदा थे.
हालांकि, आयोग ने इस मामले में कोई भी निष्कर्ष नहीं दिया था और कोर्ट का हवाला देते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था. अब जब फैसला आया है तो नानावती आयोग की यह रिपोर्ट सवाल उठा रही है.
3. स्टिंग में गुनाह कबूल रहा था बाबू बजरंगी
2007 में तहलका मैगजीन के पत्रकार आशीष खेतान ने गुजरात दंगे को लेकर एक स्टिंग ऑपरेशन किया था. इस स्टिंग में बाबू बजरंगी समेत गुजरात दंगे के कई आरोपी अपना गुनाह कबूल करते दिखे थे. उस वक्त कांग्रेस ने स्टिंग ऑपरेशन को सच करार देते हुए नरेंद्र मोदी का इस्तीफा मांगा था.
स्टिंग ऑपरेशन आने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी दाखिल की थी, जिसके बाद कोर्ट ने एक एसआईटी का गठन किया था. अब जबकि इस मामले में फैसला आ गया है और बाबू बजरंगी बरी हो गए हैं तो सवाल उठता है कि स्टिंग में फिर क्या था?
9 चार्जशीट दाखिल, 5 मजिस्ट्रेट बदले
नरोदा गाम केस में 9 चार्जशीट दाखिल किया गया, जिसमें से 3 चार्जशीट एसआईटी की ओर से दाखिल किया गया था. सुनवाई के दौरान 2 सरकारी वकील केस से अलग हो गए. करीब 180 गवाहों को कोर्ट में पेश किया गया.
एसआईटी कोर्ट में 13 साल तक चली इस सुनावाई के दौरान 5 मजिस्ट्रेट बदल गए. पीड़ित पक्ष ने मजिस्ट्रेट बदलने को लेकर कई बार सवाल उठाया था. पीड़ित पक्ष का कहना था कि मजिस्ट्रेट बदलने से सारी प्रक्रिया फिर से शुरू करनी पड़ती है.
इस केस में गृहमंत्री अमित शाह ने 2017 में माया कोडनानी के पक्ष में गवाही दिया था. शाह ने कहा था कि दंगे के दिन कोडनानी को मैंने विधानसभा में और हॉस्पिटल में देखा था.
सुप्रीम कोर्ट की एसआईटी, सजा दिलाने में फिसड्डी
2008 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अरिजीत पसायत की बेंच ने गुजरात दंगे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठन का आदेश दिया था. कोर्ट ने कहा था कि पूरे मामले की जांच नए सिरे से की जाएगी.
कोर्ट ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन, पूर्व पुलिस महानिदेशक सीबी सत्पथी के अलावा गुजरात के तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारी गीता जौहरी, शिवानंद झा और आशीष भाटिया को एसआईटी में शामिल किया था.
शुरू में एसआईटी ने इस मामले में काफी तेजी दिखाई, लेकिन धीरे-धीरे गुजरात दंगे से जुड़े अधिकांश केस ठंडे बस्ते में चला गया. गुजरात दंगे में एसआईटी ने जितने लोगों को अभियुक्त बनाया, उनमें से 70 फीसदी सबूत के अभाव में बरी हो गए.
नरोदा गाम केस में एसआईटी ने 327 लोगों के बयान दर्ज किए गए थे. एसआईटी ने माया कोडनानी को भी मामले में पूछताछ के लिए बुलाया था और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था.
नरोदा गाम केस में कब क्या हुआ?
28 फरवरी, 2002: गोधरा में ट्रेन जलने और उसमें 58 लोगों के मारे जाने के बाद विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने बंद बुलाने का ऐलान किया. एसआईटी के एफआईआर के मुताबिक इसी दौरान नरोदा गाम में हिंसा भड़की और 11 लोग मारे गए.
मई 2009: सुप्रीम कोर्ट से एसआईटी गठन के आदेश के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने नरोदा गाम मामले में सुनवाई के लिए एस एच वोरा को जज नियुक्त किया.
मई 2009: एसआईटी ने शुरुआती जांच के बाद गुजरात के पूर्व मंत्री माया कोडनानी, विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल, बाबू बजरंगी और अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया. कोडनानी की गिरफ्तारी हुई.
जुलाई 2010: नरोदा गाम में दाखिल सभी चार्जशीट के बाद इस मामले में आरोपियों की कुल संख्या 86 हुई. लालू प्रसाद यादव ने लालकृष्ण आडवाणी की भी गिरफ्तारी की मांग की.
अगस्त 2017: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई में चल रही लेटलतीफी पर फटकार लगाई और कहा कि 4 महीने में सुनवाई पूरी कीजिए.
सितंबर 2017: अमित शाह ने माया कोडनानी के पक्ष में गवाही दी. शाह ने अदालत को बताया कि जिस दिन दंगा हुआ, उस दिन कोडनानी को मैंने अस्पताल और विधानसभा में देखा था.
अगस्त 2018: अदालत ने तहलका के पूर्व पत्रकार आशीष खेतान के स्टिंग ऑपरेशन की सीडी देखी, जिसमें 2002 के दंगों के मामलों के कुछ आरोपी दिखे थे.
5 अप्रैल 2023: एसआईटी कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.
20 अप्रैल, 2023: स्पेशल कोर्ट ने नरोदा गाम मामले में कोडनानी और बजरंगी समेत सभी 67 आरोपियों को बरी किया.