लखनऊ: कभी बीएसपी सुप्रीमो मायावती की परछाई रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी की आज घरवापसी हो गयी है. उन्होंने आज कांग्रेस का हाथ थाम लिया है. उनके साथ बीएसपी के कुछ पूर्व नेता भी पार्टी में शामिल हुए. कांग्रेस महासचिव ग़ुलाम नबी आज़ाद ने ये डील कराई. वैसे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के समाजवादी पार्टी में जाने की भी चर्चा थी. अखिलेश यादव से भी मुलाक़ात हुई, लेकिन बात नहीं बनी. 35 साल पहले नसीमुद्दीन कांग्रेस पार्टी में ही थे. वे यूथ कांग्रेस के मंत्री भी रहे.


पिछले साल यूपी में विधानसभा चुनाव के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बीएसपी से बाहर कर दिया गया था. तब मायावती ने उनपर पैसा वसूलने से लेकर ठगी तक के आरोप लगाए थे. जवाब में नसीम ने कहा था बहिनजी मेरा मानसिक उत्पीड़न करती थीं. बीएसपी से बाहर होने के नौ महीने बाद अब वे कांग्रेस के नेता बन गए हैं. बुंदेलखंड से पार्टी के नेताओं ने नसीमुद्दीन के कांग्रेस में आने का विरोध किया. लेकिन ग़ुलाम नबी आज़ाद ने राहुल गांधी को राजी कर लिया.


बीएसपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी पार्टी के मुस्लिम चेहरा माने जाते थे. पार्टी से निकाले जाने तक वे राष्ट्रीय महासचिव थे. मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं, सभी सरकारों में नसीमुद्दीन कैबिनेट मंत्री रहे. बड़े-बड़े विभाग उनके पास हुआ करते थे. मंच पर मायावती के लिए कुर्सी और तौलिये से लेकर संगठन तक का सारा कामकाज नसीमुद्दीन ही देखा करते थे.


नसीमुद्दीन सिद्दीकी के राजनैतिक सफर की शुरुआत अच्छी नहीं रही. 1988 में नगर निगम का चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. फिर बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के साथ जुड़ गए. 1991 में वे बीएसपी के विधायक बन गए, लेकिन दो साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में नसीम हार गए. फिर मायावती ने उन्हें एमएलसी बना दिया. वे आज भी विधान परिषद के सदस्य हैं. 1996 में जब मायावती बिल्सी से विधानसभा का चुनाव लड़ रही थीं तो नसीमुद्दीन उनके इलेक्शन मैनेजर थे.


मायावती ने उनकी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को एमएलसी बनाया था. नसीमुद्दीन के बेटे अफजल भी लोकसभा का पिछ्ला चुनाव लड़े लेकिन हार गए. अगले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अपना घर मजबूत करने में जुटी है.